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शादी की रस्में भी साथ निभाई गईं

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राजस्थान के कोटा में चालीस साल पुरानी हिंदू-मुस्लिम दोस्ती ने एक बेमिसाल उदाहरण पेश किया है.

एक हिंदू और एक मुस्लिम दोस्त ने अपने-अपने बेटों की शादी का एक ही कार्ड छपवाया और एक ही रिसेप्शन कार्यक्रम रखा.

अब्दुल रऊफ अंसारी और विश्वजीत चक्रवर्ती के परिवारों ने मिलकर रिश्तों का ऐसा जश्न मनाया, जिसकी हर ओर चर्चा हो रही है.

अब्दुल रऊफ अंसारी के बेटे यूनुस परवेज और विश्वजीत चक्रवर्ती के बेटे सौरभ की हाल में शादी हुई. दोनों का एक ही शादी कार्ड छपा और एक ही रिसेप्शन पार्टी रखी गई.

शादी का कार्ड सोशल मीडिया में वायरल हुआ, लोगों ने देशभर से फोन कर बधाई दी

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‘यूनुस वेड्स फरहीन’ और ‘सौरभ वेड्स श्रेष्ठा’, दोनों नाम एक ही कार्ड में थे, जो सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना.

कार्ड में यूनुस की शादी के इस्तकबाल कार्यक्रम में विश्वजीत और उनके परिवार का नाम था, वहीं सौरभ की शादी के दर्शनाभिलाषी में अब्दुल रऊफ अंसारी का परिवार शामिल रहा.

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19 अप्रैल को था रिसेप्शन

शादी में दोनों परिवारों ने एक साथ तैयारियां की और रीति रिवाज निभाए

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कोटा जंक्शन के नज़दीक जनकपुरी कॉलोनी में अब्दुल रऊफ अंसारी और विश्वजीत चक्रवर्ती के घर हैं.

करीब चालीस साल से दोनों दोस्त हैं. ईद हो या दिवाली, हर त्योहार साथ मनाते हैं.

17 अप्रैल को यूनुस की निकाह में सौरभ, और 18 अप्रैल को सौरभ की बारात में यूनुस नाचते दिखे. 19 अप्रैल को रिसेप्शन में दोनों परिवारों के रिश्तेदार एक साथ बधाइयां देते नजर आए.

विश्वजीत कहते हैं, “हमने एक ही कार्ड इसलिए छपवाया क्योंकि बच्चों में कोई फर्क नहीं. हम दो नहीं, एक ही परिवार हैं. रिश्तेदार भी एक-दूसरे को जानते हैं.”

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अब्दुल रऊफ अंसारी कहते हैं, “हमने कुछ सोचकर नहीं, बल्कि परिवार होने के नाते एक कार्ड छपवाया. इससे खुशियां और बढ़ गईं.”

वो आगे बताते हैं, “शादी का कार्ड छापने वाले ने कहा कि वो ऐसा कार्ड पहली बार छाप रहा है. उसने रिकॉर्ड के लिए कुछ कॉपी अपने पास रख लीं. जो हमें जानते हैं, वे बेहद खुश हुए.”

यूनुस परवेज कहते हैं, “हमारे बड़े भाई-बहन की शादी में भी कार्ड में बड़े पापा विश्वजीत का नाम इस्तकबाल में था. जो हमें जानते हैं, उन्हें पता है कि वो मेरे बड़े पापा जैसे हैं.”

चालीस साल पुरानी दोस्ती

अब्दुल रऊफ अंसारी और विश्वजीत चक्रवर्ती की दोस्ती को लोग बेमिसाल बताते हैं.

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अब्दुल रऊफ और विश्वजीत एक-दूसरे को दोस्त नहीं, बल्कि भाई मानते हैं. उनके परिवार भी खुद को जुदा नहीं समझते.

विश्वजीत चक्रवर्ती बताते हैं, “हम शुरू से ही साथ हैं, पता ही नहीं चला कब बड़े हो गए. शादियां भी हो गईं. घर पास ही बनाए, बिज़नेस भी साथ करते हैं और हम दोस्त नहीं, भाई हैं.”

अब्दुल रऊफ अंसारी कहते हैं, “हमारे रिश्तेदार एक-दूसरे से परिचित हैं और दोस्त भी कॉमन हैं. हमारे बच्चे भी भाई-बहन की तरह रहते हैं. दो दिखते हैं, लेकिन हम एक ही परिवार हैं.”

अजमेर के केकड़ी से रिटायर्ड एडिशनल एसपी जसवंत सिंह राठौड़, जो अंसारी और चक्रवर्ती के कॉमन दोस्त हैं, बताते हैं, “2010 में बतौर इंस्पेक्टर कोटा में रहा, तभी से दोनों परिवारों से रिश्ते हैं. नाम अलग हैं, लेकिन परिवार एक है. दोस्ती मिसाल है.”

कोटा में हुई इस शादी की सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा है.

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विश्वजीत के बेटे सौरभ कहते हैं, “हम बचपन से साथ हैं. यूनुस (अब्दुल रऊफ के बेटे) और उनके भाई-बहन, हम सब भाई-बहन की तरह पले-बढ़े हैं. हमारे दोस्त भी कॉमन हैं. हम साथ ही रहे हैं, असल में हम एक ही परिवार हैं.”

सौरभ गर्व से कहते हैं, “हम हमेशा परिवार की तरह रहेंगे. जयपुर में पढ़ाई के दौरान मैं और यूनुस साथ ही रहते थे. हमने कभी दोस्त नहीं माना, भाई ही समझा.”

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गंगा-जमुनी तहज़ीब

यूनुस और सौरभ जयपुर में पढ़ाई के दौरान साथ ही रहते थे.

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अब्दुल रऊफ अंसारी और विश्वजीत चक्रवर्ती की दोस्ती और उनके परिवारों की एकता की हर कोई मिसाल दे रहा है.

शादी कार्ड से लेकर रिसेप्शन तक की योजना को भाईचारे की मिसाल माना जा रहा है.

जसवंत सिंह राठौड़ कहते हैं, “मैं इस क़दम को मिसाल मानता हूं. हमारे देश की जो गंगा-जमुनी तहज़ीब है, ये उसका बड़ा उदाहरण है.”

वो आगे कहते हैं, “मैं पुलिस में रहा हूं. कम्युनल टेंशन के वक्त ऐसे आयोजन कानून-व्यवस्था को भी मज़बूत संदेश देते हैं.”

सौरभ के मामा, करीब 75 वर्षीय कमल कांत चक्रवर्ती, कोलकाता से इस शादी में शरीक होने आए.

उन्होंने कहा, “मैंने अपने जीवन में इतना प्यार और घनिष्ठता नहीं देखी. मैं ख़ास तौर पर यह शादी देखने आया हूं. कोलकाता में भी हिंदू-मुस्लिम साथ देखे हैं, पर इतनी गहरी दोस्ती नहीं देखी. यह बेमिसाल है.”

कोटा में विश्वजीत चक्रवर्ती और अब्दुल रऊफ अंसारी की दोस्ती की मिसाल दी जाती है

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जब देश के किसी कोने से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव की ख़बर आती है क्या उसका असर इस दोस्ती पर पड़ता है?

अब्दुल रऊफ कहते हैं, “हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हम उस बारे में नहीं सोचते. हम सिर्फ एक परिवार हैं और सबको ऐसे ही मिलकर रहना चाहिए.”

यूनुस कहते हैं, “हमारे दोस्तों के बीच कभी धर्म या जाति आड़े नहीं आई. हम बेहद प्यार से रहते हैं. सौरभ और मैं हमेशा साथ ही रहे हैं.”

जब पूछा गया कि उनकी दोस्ती और परिवार से क्या संदेश देना चाहेंगे, तो अब्दुल रऊफ अंसारी ने कहा, “जैसे हम परिवार की तरह रह रहे हैं, वैसे ही सबको भी प्रेम से साथ रहना चाहिए.”

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