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लेबनान के विस्थापितों की सहायता के लिए एडबॉट बनाने वालीं हनिया ज़तारी

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पिछले साल ठंड के मौसम में लेबनान के उद्योग मंत्रालय में बतौर मैकेनिकल इंजीनियर काम करने वालीं हनिया ज़तारी ने देश में युद्ध के दौरान अपने इंजीनियरिंग कौशल का इस्तेमाल किया.

दक्षिणी लेबनान के सिडोन की रहने वाली हनिया ज़तारी ने व्हाट्सऐप पर एक चैटबॉट बनाया, जिससे लोगों तक ज़रूरी सहायता पहुंचाना आसान हो गया.

युद्ध की वजह से अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए लोगों का ज़िक्र करते हुए हनिया कहती हैं, “उन्होंने अपना घर, अपनी बचत, अपना काम और जो कुछ भी उन्होंने बनाया था, सब खो दिया.”

23 सितंबर को इसराइल ने लेबनान के सशस्त्र समूह हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ हमलों को तेज़ कर दिया.

अक्तूबर 2023 में हिज़्बुल्लाह के इसराइल पर हमले के बाद से ही इसराइल इसके साथ संघर्ष कर रहा है.

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लेबनान सरकार के अनुसार, “एक दिन में 492 लोग मारे गए थे जो कि पिछले 20 सालों में लेबनान संघर्ष का सबसे घातक दिन है.”

इसराइली रक्षा बलों (आईडीएफ़) के लेबनान के अंदर हिज़्बुल्लाह के 1600 ठिकानों पर हमला करने के बाद हज़ारों परिवार सिडोन छोड़कर भाग गए हैं.

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हनिया का क्या कहना है?

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हनिया का कहना है कि कई विस्थापितों ने स्कूलों और अन्य सार्वजनिक भवनों में पनाह ली. लेकिन घर छोड़कर भागने वाले कई दूसरे लोगों को कहीं और किराए पर या आपने रिश्तेदारों के साथ रहने पर मजबूर होना पड़ा.

ये वो लोग थे, जिन्हें सरकार से सीधे सहायता नहीं मिल पा रही थी और हनिया जिनकी मदद करना चाहती थीं.

अपनी प्रोग्रामिंग कौशल का इस्तेमाल करते हुए हनिया ने सहायता की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम करने के लिए एक ‘एडबॉट’ बनाया.

यह एडबॉड एक तरह का चैटबॉट है. यह एक तरह का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित सिस्टम है जो यूजर्स के साथ ऑनलाइन बातचीत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. यह व्हाट्सऐप से लिंक्ड होता है.

यह लोगों से उनके नाम और जगह का नाम पूछने के साथ-साथ उन्हें किस तरह की सहायता चाहिए जैसे आसान सवालों के साथ प्रोग्राम किया गया है.

इसके बाद यह जानकारी एक गूगल स्प्रेडशीट पर दर्ज की जाती है. इसका इस्तेमाल हनिया, उनके दोस्तों और परिवार के सदस्यों से बनी वॉलेंटियर की टीम खाना, कंबल, गद्दे, दवा और कपड़े जैसी सहायता पहुंचाने के लिए करती है.

वॉलेंटियर्स यह काम अपनी इच्छा से बिना किसी सैलरी के कर रहे हैं. हनिया ने अपने खाली समय का इस्तेमाल सेलबेल.ईयू बेवसाइट का इस्तेमाल करके बॉट बनाने में किया.

इसका इस्तेमाल आमतौर पर मेटा के प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक मैसेंज़र पर कस्टमर से जुड़ने के लिए अलग-अलग बिज़नेस ग्रुप करते हैं.

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इस एडबॉट को चलाने के लिए मदद कहां से मिल रही है?

विस्थापितों के लिए लाए गए गद्दे

हनिया बताती हैं, “बॉट जिसका इस्तेमाल आज भी किया जा रहा है, सहायता पहुंचाने को और भी कुशल बनाता है. क्योंकि यह व्हाट्सऐप पर सहायता की मांग का जवाब देने में लगने वाले समय को कम करता है.”

हनिया कहती हैं, “मुझे सच में उनके (विस्थापितों के) नाम जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मुझे बस यह जानना है कि वह (विस्थापित) कहां हैं ताकि मैं डिलिवरी पहुंचा सकूं.”

हनिया बताती हैं, “जैसे कि अगर बेबी फ़ॉर्मूला यानी बच्चों के लिए दूध या मिल्क पाउडर की मांग है तो चैटबॉट बच्चे की उम्र और आवश्यकता की मात्रा के बारे में पूछेगा. ताकि हम और हमारी टीम इसे पहुंचा सकें.”

हनिया कहती हैं कि यह प्रोजेक्ट विदेशों में रहने वाले लेबनानी लोगों से मिले दान के पैसे से चल रहा है. उन्होंने एक पब्लिक डैशबोर्ड बनाया है, जिसमें यह बताया गया है कि प्रोजेक्ट पर कितनी रकम खर्च हो रही है. साथ ही उन्होंने और उनकी टीम ने कितनी सहायता पहुंचाई है.

इस ख़बर के लिखे जाने तक हनिया 5 या 10 लोगों के परिवारों को 78 खाने के पार्सल, 900 गद्दे और 323 कंबल, सिडोन और लेबनान के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचा चुकी हैं.

हनिया ज़तारी का बयान

पिछले अक्तूबर में, 47 वर्षीय ख़ालदून अब्बास और उनका परिवार नज्जरीह में अपना घर छोड़कर भाग गया. उन्हें आईडीएफ़ की एक कॉल मिली जिसमें उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए घर छोड़ देने को कहा गया था.

सत्रह लोगों का समूह जिनमें नौ से 78 साल की उम्र के लोग शामिल थे, सिडोन में एक किराए के तीन बिस्तर वाले अपार्टमेंट में एक ही छत के नीचे सोते थे.

ख़ालदून का कहना है कि वह, उनकी पत्नी और उनके बच्चे, साथ ही उनके भाई का परिवार उन गद्दों पर सोता था, जिन्हें उन्होंने फ्लैट के दालान में एडबॉट का इस्तेमाल करके मांगा था.

इसके अलावा ख़ालदून ने कंबल, खाना और डिटर्जेंट की भी मांग की थी. अपने पड़ोसियों की तरह वह अपने घर नहीं जा पाए हैं. उनका घर 11 दिनों बाद एक इसराइली हमले में नष्ट हो गया.

आईडीएफ़ ने बीबीसी से उन हमलों के बारे में कहा था कि वह “आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाकर किया गया हमला था.”

हालांकि बीबीसी ने जब ख़ालदून से इन आरोपों के बारे में पूछा तो उन्होंने हिज़्बुल्लाह या किसी भी और संगठन के साथ संबंध से साफ़ इनकार कर दिया.

शहर में भारी मात्रा में आ रहे लोगों का ज़िक्र करते हुए हनिया कहती हैं, “यह पहली बार नहीं है जब सिडोन ने विस्थापितों के लिए अपने दरवाज़े खोले हैं.”

सिडोन लंबे समय से लेबनान-इसराइल सीमा पर अपने घरों को छोड़ने वाले आंतरिक रूप से विस्थापितों को पनाह देने के लिए जाना जाता रहा है.

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लेबनान में कब शुरू हुआ संघर्ष

यह तस्वीर 13 जनवरी 2025 को लेबनान के शेमा से ली गई है

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हालिया संघर्ष अक्तूबर 2023 में शुरू हुआ था. जब इसराइल और हमास के बीच युद्ध लेबनान में भी फ़ैल गया. और हमास के सहयोगी हिज़्बुल्लाह ने ग़ज़ा के समर्थन में इसराइल पर रॉकेट दागे थे.

इसराइल के साथ संघर्ष पर लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि करीब चार हज़ार लोग मारे गए हैं और 10 लाख से भी ज़्यादा विस्थापित हुए हैं. हालांकि मंत्रालय ने यह नहीं बताया है कि इनमें कितने नागरिक हैं और कितने लड़ाके हैं.

वहीं इसराइल की बात करें देश के उत्तरी हिस्से से लगभग 60 हज़ार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है. इसराइली अधिकारियों का कहना है कि 80 से ज़्यादा सैनिक और 47 नागरिक मारे गए हैं.

अंतरराष्ट्रीय संगठन इस्लामिक रिलीफ़ का बयान

पिछले साल नवंबर में इसराइल और लेबनान के बीच युद्ध विराम पर सहमति बनी थी. कुछ झड़पों के बाद काफ़ी हद तक इसे बरकरार रखा गया है.

हालांकि ज़मीनी स्तर पर लोगों का कहना है कि सहायता के प्रावधानों या स्तर में सुधार नहीं हुआ है.

अंतरराष्ट्रीय एनजीओ इस्लामिक रिलीफ़ ने बीबीसी को बताया कि, संघर्ष, विनाश और निकासी के आदेशों ने लेबनान में चल रहे विस्थापन को बढ़ावा दिया है. इससे बदलती स्थिति के बीच लोगों की ज़रूरतों का आकलन करना और उनको पूरा करना मुश्किल हो गया है.

लेकिन यह केवल युद्ध नहीं है जो सहायता पहुंचाने में रुकावट डाल रहा है.

हनिया के साथ काम करने वाले वालेंटियर बिलाल मेरी का कहना है कि उनके सामने कई समस्याएं सहायता की ज़्यादा मांग और कम आपूर्ति की वजह से आ रही हैं.

बिलाल इसकी वजह साल 2019 से ही देश में फ़ैली भारी आर्थिक उथल-पुथल को मानते हैं. जिसका मतलब है कि लेबनान की सरकार को सामानों के लिए कर्ज़दाताओं और सहायता संगठनों से मिलने वाले फ़ंड पर बहुत ज़्यादा निर्भर होना पड़ रहा है.

लेकिन इन स्थितियों में एनजीओ भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. यूनिसेफ़ लेबनान का कहना है कि उन्हें जितने फ़ंड की ज़रूरत है, उसका केवल 20 फ़ीसदी ही मिल पा रहा है.

जिसकी वजह से उनके पास फंड की भारी कमी है. जिसका मतलब है कि परिवारों को जब ज़रूरत है तब उनको सहायता नहीं मिल पा रही है.

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लेबनान के लिए कितना कारगर है यह एडबॉट

यह तस्वीर 13 जनवरी 2025 को लेबनान के शेमा से ली गई है

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लेकिन क्या वित्तीय संकट और युद्ध से जूझ रहे देश में, यह एडबॉट कोई ठोस बदलाव ला सकता है?

यह पहली बार है जब थिंक टैंक ओवरसीज़ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता जॉन ब्रायंट ने मानवीय क्षेत्र में किसी चैटबॉट का इस तरह से इस्तेमाल के बारे में सुना है.

उनका कहना है कि जिस सांस्कृतिक संदर्भ में यानी कि जिस तरह से इसका इस्तेमाल हो रहा है वह सराहनीय है. यानी लोगों के आपस में बातचीत करने के तरीके को समझकर उनकी भाषा में ही बातचीत की जा रही है.

हालांकि जॉन ब्रायंट भी इस काम को व्यापक तौर पर लागू करने के बारे में अनिश्चितताओं का ज़िक्र करते हैं. क्योंकि लेबनान में इसके ज़रिए जो काम किया जा रहा है, उसे दुनिया के दूसरे हिस्सों में आसानी से दोहराया नहीं जा सकता है.

क्योंकि टेक्नोलॉजी के ज़रिए अकसर एक समान और तैयार तरीके से समाधान दिया जाता है.

जॉन ब्रायंट कहते हैं, इसके सिस्टम में एक लोकल डिज़ाइनर, लोकल ट्रांसलेटर (अनुवादक) और लोकल स्तर पर लोगों से बातचीत करने वाले शामिल हैं. जो डिजिटल टूल्स को इस्तेमाल करने लायक बनाते हैं.

भले ही यह एडबॉट लेबनान की सभी समस्याओं का समाधान नहीं है, लेकिन इसने इस्तेमाल करने वाले परिवारों के जीवन को थोड़ा आसान ज़रूर बना दिया है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

SOURCE : BBC NEWS