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हीरा है सदा के लिए

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23 मिनट पहले

अगस्त 2024 में बोत्सवाना के तत्कालीन राष्ट्रपति मैक्गवेत्सी मसीसी ने खदान से निकाले गए दुनिया के दूसरे सबसे बड़े हीरे को पत्रकारों के सामने पेश किया. यह हीरा लगभग पांच सौ ग्राम वज़नी था.

पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के कई बेहद बड़े हीरे दक्षिणी अफ़्रीका के देश बोत्सवाना की खदानों से निकले हैं. हीरा खनन उद्योग दशकों से देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा रहा है, लेकिन अब इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

इसकी एक वजह यह है कि प्रयोगशालाओं में बनाए जा रहे हीरों से इस उद्योग को कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है.

तो इस सप्ताह ‘दुनिया जहान’ में हम यही समझने की कोशिश करेंगे कि क्या बोत्सवाना में हीरों का भविष्य सुरक्षित है?

विकास में हीरे की भूमिका

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बोत्सवाना की पूर्व उप वित्त मंत्री और सरकारी थिंकटैंक बोत्सवाना इंस्टिट्यूट फ़ॉर पॉलिसी एनालिसिस की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर ग्लोरिया सोमोलोकी बताती हैं कि रूस के बाद, बोत्सवाना हीरा खनन उद्योग में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण देश है.

वो बताती हैं कि बोत्सवाना खेती पर निर्भर एक ग़रीब देश था जहां लोगों की प्रति व्यक्ति आय पचास डॉलर से भी कम थी. सितंबर 1966 में बोत्सवाना ब्रिटेन से आज़ाद हो गया और उसके कुछ महीने बाद ही वहां हीरे की पहली खदान का पता चला.

वो कहती हैं, “हीरा खदान की खोज बहुत सही समय पर हुई क्योंकि उस समय देश सूखे की चपेट में था और भुखमरी से जूझ रहा था. उस समय देश का नेतृत्व भी निस्वार्थी नेताओं के हाथ में था जिन्होंने डीबीअर्स के साथ साझेदारी करके एक सरकारी कंपनी डेबस्वाना की स्थापना की. यानी डीबीअर्स और बोत्सवाना.”

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डेबस्वाना बोत्सवाना की चार हीरा खदानों का कामकाज नियंत्रित करती है. डीबीअर्स हीरा उद्योग से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है जिसकी स्थापना साल 1888 में हुई थी. चौदह साल पहले बोत्सवाना सरकार ने डीबीअर्स के 15 प्रतिशत शेयर्स ख़रीद लिए थे.

डीबीअर्स कंपनी का मार्केटिंग स्लोगन था ‘ए डाइमंड इज़ फॉर एवर’. डीबीअर्स के साथ साझेदारी की वजह से बोत्सवाना ने हीरों की मार्केटिंग के कई हथकंडे सीखे.

डॉक्टर ग्लोरिया सोमोलोकी का कहना है, “बोत्सवाना नया-नया आज़ाद हुआ देश था और हमारे पास मार्केटिंग के नेटवर्क नहीं थे. ना ही हीरा खनन का हुनर था. लेकिन डीबीअर्स के साथ भागीदारी शुरू होने के बाद सैकड़ों लोगों को इसका प्रशिक्षण मिला. बोत्सवाना में कई लोग खदान इंजीनियर हैं जिनमें से कई आज ऊंचे पदों पर हैं.”

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हीरे के निर्यात से बोत्सवाना को अरबों डॉलर मिलने लगे. डॉक्टर ग्लोरिया सोमोलोकी कहती हैं कि हीरा उद्योग ने बोत्सवाना को एक ग़रीब देश से मध्यम आय वाले देश में बदल दिया है और देश की प्रति व्यक्ति आय अब छह हज़ार डॉलर तक पहुंच गई है.

बोत्सवाना सरकार हीरा उद्योग और खदानों से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा देश की 25 लाख की आबादी के लिए सार्वजनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने पर ख़र्च करती है.

डॉक्टर ग्लोरिया सोमोलोकी का कहना है, “इस भागीदारी से देश का कायापलट हो गया है. मिसाल के तौर पर आज़ादी के समय देश में पचास किलोमीटर से भी कम पक्की सड़क थी जो कि अब दस हज़ार किलोमीटर से अधिक हो गई है. इस देश में दस से भी कम स्कूल थे जबकि आज 8 सौ से ज़्यादा स्कूल हैं. देश में एक भी यूनिवर्सिटी नहीं थी, अब तीन नेशनल यूनिवर्सिटी हैं.”

कई साल से हीरा उद्योग में मज़दूरों के शोषण और उसकी आय का इस्तेमाल क्षेत्रीय संघर्षों में होने की बात होती रही है.

मगर डॉक्टर ग्लोरिया सोमोलोकी का कहना है कि बोत्सवाना में स्थिति बिल्कुल अलग रही है जहां इस उद्योग का इस्तेमाल विकास के लिए हुआ है जिससे देश में स्थिरता आई और लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हुई हैं.

लेकिन साल 2024 की पहली तिमाही में बोत्सवाना को हीरों से होने वाली कुल आय 1.29 अरब डॉलर थी. जबकि इससे एक साल पहले इसी समय वह 2.5 अरब डॉलर थी. इस घटती आय से पता चलता है कि दुनिया में हीरा उद्योग के सामने ख़तरा मंडरा रहा है.

हीरे के प्रति लोगों की बदलती दिलचस्पी

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लैब में बने हीरों की मार्केटिंग करने वाली लंदन स्थित कंपनी किमाय की सह संस्थापक जेसिका वार्च कहती हैं कि पिछले छह साल में लैब में बने हीरों की तरफ़ लोगों का रुझान बढ़ा है.

आख़िर दुनियाभर में लैब में बनाए गए हीरे होते क्या हैं?

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जेसिका वार्च कहती हैं, “टेक्नोलॉजी की मदद से आज हम लैब में खदान जैसा पर्यावरण बना सकते हैं. लैब में बना हीरा खदान से निकाले गए हीरे जैसा ही होता है. किसी जेमोलोजिस्ट के लिए भी खदान से निकले हीरे और लैब में बने हीरे के बीच फ़र्क़ करना मुश्किल होता है.”

लैब या प्रयोगशाला में हीरा बनाने के दो तरीके़ हैं. एक तरीक़ा यह है कि खदान से निकाले गए हीरे के छोटे टुकड़े को एक उच्च तापमान वाले कमरे में कार्बन गैस में रखा जाता है.

गर्मी की वजह से गैस के मॉलिक्यूल या अणु बदलते हैं और हीरे के छोटे टुकड़े से चिपक जाते हैं, जिससे एक बड़ा हीरा तैयार होता है. दूसरा तरीक़ा यह है कि धातु के बक्से में अत्यधिक तापमान में शुद्ध कार्बन गैस छोड़ी जाती है. गर्मी और दबाव से इस कार्बन से हीरा तैयार होता है.

धरती के नीचे कार्बन के अणु भारी दबाव की वजह से एक-दूसरे से चिपकते हैं और हीरा बनता है. लेकिन उसमें अरबों साल लग जाते हैं.

जेसिका वार्च कहती हैं कि लैब में हीरा तैयार करने में छह से 12 हफ़्ते का समय लगता है और इससे पर्यावरण को नुक़सान भी कम पहुंचता है.

खदान से निकले हीरों की तरह यह हीरे भी परफ़ेक्ट नहीं होते, उनके रंग में फ़र्क होता है. खदान से निकले हीरों की तरह इन्हें भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त लैब में भेजा जाता है जो अमेरिका की ग़ैर सरकारी संस्था जेमोलोजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ़ अमेरिका के अधीन हैं.

यह संस्था इन जवाहरातों का परीक्षण करके सर्टिफ़िकेट जारी करती है. इस सर्टिफ़िकेट में लिखा होता है कि हीरा लैब में बना है या खदान से निकाला गया है.

लेकिन लैब में गैस को ऊंचे तापमान में रखकर हीरा बनाया जाता है जिसमें ऊर्जा की बड़ी खपत होती है. तो क्या इससे पर्यावरण को नुक़सान नहीं पहुंचता?

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जेसिका वार्च बताती हैं, “हम ऐसी लैब्स के साथ काम करते हैं जो रिन्यूएबल एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन खदान से हीरा निकालने में भी काफ़ी अधिक ऊर्जा ख़र्च होती है. किसी भी नए उत्पाद बनाने में ऊर्जा तो ख़र्च होती ही है, हम यह कोशिश ज़रूर कर सकते हैं कि वह साफ़ ऊर्जा हो.”

1950 के दशक में लैब में हीरे बनने शुरू हुए थे. हीरा सबसे सख़्त खनिज है और इसका इस्तेमाल मशीनों में होने लगा. गहनों में इस्तेमाल करने के लिए पिछले कुछ साल में लैब में बने हीरों को बनाने की तकनीक में काफ़ी सुधार आया है.

लैब में सबसे अधिक हीरे चीन और भारत में बनाए जाते हैं. साल 2018 में अमेरिका की फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने अपनी हीरे की परिभाषा से ‘प्राकृतिक स्रोत’ शब्द को हटा दिया.

दुनिया की गहने बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी पैंडोरा ने अपने गहनों में सिर्फ़ लैब में बनाए गए हीरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. लेकिन क्या लैब में बने हीरों का उद्योग प्राकृतिक हीरा उद्योग की जगह ले सकता है?

जेसिका वार्च ने कहा, “मैं नहीं कह सकती कि लैब के हीरों को पूरी तरह खदानों के हीरों की जगह ले लेनी चाहिए या नहीं. लेकिन खदान उद्योग को अब सोचना चाहिए कि उनके कामकाज के तरीक़ों को बदलने का समय आ गया है.”

“लंबे समय से इस उद्योग में पर्यावरण के लिए हानिकारक और अनैतिक तरीके़ अपनाए जाते रहे हैं. हां, मैं यह ज़रूर कह सकती हूं कि लैब में बने हीरे खदान से निकाले गए हीरों के बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा हथियाने की ओर बढ़ रहे हैं.”

मांग में गिरावट

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ईडन गोलान साल 2001 से हीरा उद्योग का विश्लेषण करते रहे हैं और इस विषय पर लिखते रहे हैं. वह कहते हैं कि ‘दुनियाभर में हीरे की मांग में कई कारणों से कमी आई है. साल 2020 में कोविड महामारी के दौरान भी हीरे की मांग कम हो गई थी क्योंकि लोगों ने ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों पर पैसे ख़र्च करना कम कर दिया था.’

ईडन गोलान का कहना है कि ‘चीन दुनिया में हीरे का दूसरा सबसे बड़ा ख़रीदार है. विश्व में बिकने वाले कुल हीरे का लगभग 30 प्रतिशत चीन में बिकता है. इसलिए वहां मांग घटने से हीरा उद्योग पर बुरा असर पड़ा.’

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ईडन गोलान के मुताबिक़, “मांग घटने का दूसरा कारण है इंटरनेट. जहां लोग लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉल पर एक-दूसरे से बात कर रहे थे और कुछ अलग दिखना चाहते थे. कुछ लोगों ने लैब में बने बड़े हीरे की अंगूठियां ख़रीदनी शुरू कर दीं.”

“उस समय तक, ख़ासतौर पर अमेरिका में, लोगों में लैब में बने हीरे के प्रति कुछ संकोच था कि यह वाक़ई में असली हीरे जैसा है या नहीं. लेकिन एक-दूसरे की देखा-देखी लोग लैब में बने हीरे को लेकर सहज होते गए.”

इसके बाद लैब में बने हीरों की बिक्री में बड़ा उछाल आया.

ईडन गोलान कहते हैं कि ‘अमेरिका में यह रुझान काफ़ी बड़ा था. पांच साल बाद, अमेरिका में हीरे की कुल मांग में 15 प्रतिशत हिस्सा लैब में बने हीरों का है. यही रुझान यूके और ऑस्ट्रेलिया में भी दिखाई दे रहा है.’

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ईडन गोलान के अनुसार, अमेरिका में हीरे की ख़रीदारी ज़्यादातर सगाई की अंगूठी के लिए होती रही है. फ़िलहाल, अमेरिका में बिकने वाली सगाई की पचास प्रतिशत अंगूठियों में लैब में बना हीरा इस्तेमाल होता है.

आज से तीस साल पहले अमेरिका में सगाई की अंगूठी पर लोग औसतन तीन से चार हज़ार डॉलर ख़र्च करते थे. आज लोग सगाई की अंगूठी में प्राकृतिक हीरे के लिए छह से सात हज़ार डॉलर ख़र्च करते हैं, जबकि लैब में बने हीरे की अंगूठी पर औसतन 2200 डॉलर ख़र्च होते हैं.

ऐसे में ईडन गोलान हीरा उद्योग के भविष्य को लेकर कितने आशावान हैं?

ईडन गोलान का जवाब था, “मुझे काफ़ी आशा है क्योंकि पिछले दो-तीन साल में हीरा उद्योग के एक बड़े तबके ने व्यापार के तरीके़ में काफ़ी सुधार लाने के प्रयास शुरू किए हैं क्योंकि लैब में बने हीरे की वजह से हीरा उद्योग पर सुधार के लिए काफ़ी दबाव आया है.”

“मिसाल के तौर पर पहले किसी हीरे के स्रोत के बारे में पुख़्ता जानकारी मुश्किल से मिलती थी. एक हज़ार डॉलर या उससे कम क़ीमत का हीरा ख़रीदने वाले लोग लैब में बने हीरे ख़रीद लेते हैं.”

“लेकिन जो 2500 डॉलर का हीरा ख़रीदना चाहते हैं वे प्राकृतिक हीरा ही पसंद करते हैं. तो हीरा व्यापार की इस कैटेगरी में प्राकृतिक हीरे की मांग अच्छी है.”

लेकिन सवाल यह भी है कि बोत्सवाना सरकार की ओर से यह प्रयास हीरा उद्योग को बचाने के लिए काफ़ी होगा?

हीरा उद्योग का विकल्प क्या होगा?

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बोत्सवाना की एक आर्थिक सलाहकार संस्था ईकनसल्ट के प्रबंध निदेशक डॉक्टर कीथ जेफ़र्स कहते हैं कि बोत्सवाना दूसरे उद्योगों पर ध्यान देकर अब अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता ला रहा है, मगर इसकी रफ़्तार कुछ धीमी है.

इसका एक कारण यह है कि हीरा उद्योग दशकों से देश का सफल उद्योग रहा है और सरकार यह सोचती रही कि शायद उसे इसके विकल्प ढूंढने की जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.

उन्होंने कहा, “बोत्सवाना में दो-तीन साल पहले हीरे का जितना उत्पादन हो रहा था, उसके मुक़ाबले साल 2025 में वह 60 प्रतिशत रह गया है. लगभग बीस साल पहले देश के सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत हिस्सा हीरा उत्पादन से आता था, अब वह घटकर 25 प्रतिशत रह गया है.”

“लेकिन अभी भी यह देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है. देश की आय का एक तिहाई हिस्सा हीरा उद्योग पर लगने वाले टैक्स से आता है. वहीं हीरा निर्यात देश के कुल निर्यात का 80 प्रतिशत हिस्सा है.”

हीरा उद्योग पर छाए संकट के बादलों की वजह से देश को जल्द ही दूसरे उत्पादों के निर्यात के बारे में सोचना पड़ेगा.

डॉक्टर कीथ जेफ़र्स कहते हैं कि दूसरे उद्योगों में भी विकास हो रहा है. फ़िलहाल देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात तांबा है.

पर्यटन भी देश का एक बड़ा उद्योग है. दरअसल, पर्यटन उद्योग में हीरा उद्योग से अधिक रोज़गार है. इसके अलावा कारख़ानों में बनने वाले दूसरे उत्पाद भी देश की आय के लिए महत्वपूर्ण हैं.

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डॉक्टर कीथ जेफ़र्स का कहना है, “कारख़ानों में बनने वाले उत्पाद देश के कुल निर्यात का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा हैं. इन्हें ज़्यादातर हमारे पड़ोसी देश दक्षिण अफ़्रीका को निर्यात किया जाता है. अब अपेक्षा की जा रही है कि कॉल सेंटर और डिजिटल सेवाएं भी विकसित हो सकती हैं. मुझे लगता है हमें इन सभी उद्योगों को हीरा उद्योग के विकल्प की तरह देखना चाहिए.”

देश की आज़ादी के बाद से सत्ता में रही बोत्सवाना डेमोक्रेटिक पार्टी पिछले साल हुए चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हो गई. अब एक नई गठबंधन सरकार सत्ता में आ गई है.

डॉक्टर कीथ जेफ़र्स का कहना है कि नई सरकार को विरासत में अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई समस्याएं मिली हैं. सरकार को बड़े बजट घाटे से निपटना है. सरकार को आपूर्ति करने वाली कई कंपनियों का भुगतान नहीं हो पाया है.

फ़रवरी में हीरा कंपनी डीबीअर्स और बोत्सवाना सरकार ने दस साल के लिए एक बिक्री समझौता किया है. इसके तहत डीबीअर्स को साल 2054 तक के लिए खदानों के ठेके मिल गए हैं. सरकार ने एक आर्थिक विकास कोष बनाया है जिसमें शुरुआत में डीबीअर्स साढ़े सात करोड़ डॉलर का निवेश करेगी.

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डॉक्टर कीथ जेफ़र्स मानते हैं कि इससे विकास में मदद मिलेगी और हीरा खनन उद्योग कम से कम अगले बीस से पच्चीस साल तक सुरक्षित रहेगा. लेकिन बोत्सवाना की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान धीरे-धीरे घटता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि यह उद्योग पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा, लेकिन धीरे-धीरे इसकी जगह दूसरे उद्योग ले सकते हैं.

तो क्या बोत्सवाना में हीरे सदा के लिए हैं? दुनिया में प्राकृतिक हीरे की घटती मांग की वजह से बोत्सवाना को दूसरे आर्थिक विकल्पों के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ रहा है. दूसरी तरफ़ लैब में बने हीरों की मांग लगातार बढ़ रही है.

लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि बोत्सवाना का हीरा उद्योग ख़त्म हो जाएगा. बल्कि सरकार उसे पटरी पर बनाए रखने के लिए बड़े निवेश पर विचार कर रही है. साथ ही खदानों से निकाले गए हीरों की मार्केटिंग रणनीति में भी सुधार लाया जा रहा है.

मगर लैब में बने हीरों की चुनौती से निपटना इतना आसान भी नहीं होगा.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS