Source :- LIVE HINDUSTAN
बजट से पहले कराए गए एक सर्वेक्षण में लोगों ने कहा कि अब इनकम टैक्स दरों मे ढील देने का वक्त आ गया है और इसमें रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह सर्वेक्षण मिंट ने नवंबर और दिसंबर में ऑनलाइन आयोजित किया गया था, जिसमें प्रिंट और डिजिटल पाठकों से पूछा गया कि सरकार को बजट की सालाना प्रक्रिया को क्या दिशा देनी चाहिए।
पाठकों से पूछा गया कि क्या बजट लोकलुभावन होना चाहिए? क्या इनकम टैक्स स्लैब में ढील देने का समय आ गया है? क्या महिलाओं और किसानों को बजट में अतिरिक्त ध्यान दिया जाना चाहिए? गौरतलब है कि इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की एक अग्रिम प्रति इस महीने की शुरुआत में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को प्रस्तुत की गई थी।
सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक लोगों ने दीर्घकालिक लक्ष्यों की तुलना में अल्पकालिक सरकारी योजनाओं को प्राथमिकता दी गई। विकास को बढ़ावा देने के लिए लोकलुभावन उपायों पर लोगों के विचार अलग-अलग थे।
हालांकि रोजगार सृजन सभी के लिए उच्च प्राथमिकता थी। उत्तर देने वालों में इनकम टैक्स दरों में हाल ही में हुए बदलावों को लेकर व्यापक असंतोष था, खासकर वेतनभोगी पेशेवरों इनके लेकर काफी निराश थे।
इसके अलावा, ओल्ड बनाम न्यूटैक्स रिजीम पर मिली-जुली राय थी। कई लोग उच्च कर दर वाली लेकिन कर छूट देने वाली पुरानी प्रणाली के पक्ष में थे, जबकि बड़ी संख्या में लोग इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 80सी के तहत अधिक छूट की उम्मीद कर रहे थे।
रोजगार को लेकर चिंता दिखाई दी
बजट में रोजगार सृजन कितना महत्वपूर्ण है, यह पूछे जाने पर, 73% उत्तरदाताओं ने अधिकतम पांच की रेटिंग चुनी। लोगों से एक से पांच के पैमाने पर जवाब मांगे गए थे। पांच सर्वोच्च प्राथमिकता थी।
दिलचस्प बात यह है कि 18-25 वर्ष की आयु वर्ग और छात्रों के उत्तरदाताओं के लिए यह प्रतिशत 64% से भी कम हो गया। सभी उत्तरदाताओं में से केवल 3% ने कहा कि सरकार को आगामी बजट में रोजगार सृजन को कम प्राथमिकता देनी चाहिए यानी उन्होंने एक और दो रेटिंग का विकल्प चुना।
टैक्स की पहेली सुलझाई जाए
पिछले बजट में इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव किया गया था और वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए मानक कटौती बढ़ाई गई थी। सर्वेक्षण में इस बदलाव को बहुत कम प्रतिक्रिया मिली। हर चार में से एक ने कहा कि नई कर दरों में छूट संतोषजनक थी, जबकि लगभग दो-तिहाई ने असंतोष व्यक्त किया।
इसके अलावा, 9.4% उत्तरदाता इसको लेकर असमंजस में थे, जबकि 3.1% ने इस पर कोई राय व्यक्त नहीं की। वेतनभोगी वर्ग में असंतोष विशेष रूप से स्पष्ट था, जिनमें से 75% ने कहा कि दरों में बदलाव संतोषजनक नहीं था। प्रति वर्ष 25 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले लोगों के लिए संतुष्टि का स्तर 10% तक गिर गया।
न्यू और ओल्ड टैक्स रिजीम को लेकर उलझन
सर्वेक्षण में नई तथा पुरानी दोनों कर व्यवस्थाओं को लेकर लोगों में असमंजस दिखाई दिया। लगभग 55% लोगों ने कहा कि उन्हें पुरानी कर व्यवस्था पसंद है, जबकि लगभग 45% इस बात पर सहमत थे कि नई कर व्यवस्था बेहतर है। 25-35 लाख रुपये सालाना आय वाले लोगों में पुरानी व्यवस्था को प्राथमिकता देने वालों की संख्या बढ़कर 67% हो गई और कुल वेतनभोगी वर्ग में यह संख्या 61% हो गई।
दूसरी ओर, न्यू टैक्स रिजीम को लगभग 60% रिटायर लोगों ने पसंद किया। इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये की छूट सीमा बढ़ाने के सवाल पर, 77% उत्तरदाताओं ने कहा कि आगामी बजट में सीमा बढ़ाई जानी चाहिए। पूंजीगत लाभ कर के सवाल पर, 40% लोग इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20% कर के पक्ष में थे, जबकि 36% लोगों ने इंडेक्सेशन लाभ के बिना 12.5% कर का विकल्प चुना।
लोकलुभावन योजनाओं के पक्ष में राय
लोकलुभावन योजनाओं को लेकर लोगों की राय बंटी हुई थी। आंकड़ों से पता चला कि 41% लोगों का मानना था कि उपभोग में मंदी के दौरान लोकलुभावन बजट दिया जाना चाहिए, जबकि 38% लोग इससे असहमत थे और 21% लोग कोई फैसला नहीं ले पाए। लोगों की आय का दायरा बढ़ने के साथ में लोकलुभावन बजट को लेकर समर्थन धीरे-धीरे कम होता गया।
सालाना 25 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले लगभग 45% लोगों ने कहा कि यदि उपभोग वृद्धि में मंदी आती है तो लोकलुभावन बजट के लिए कोई जगह नहीं है। करीब 42% पुरुष लोकलुभावन बजट के पक्ष में थे जबकि 35% महिलाएं इसके पक्ष में थीं। इस विचार को वृद्ध उत्तरदाताओं, विशेषकर 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों से मौन प्रतिक्रिया मिली।
निकट भविष्य पर ध्यान दे बजट
पिछले कुछ वर्षों से नीति निर्माण में 2047 के लिए भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य चर्चा का विषय रहे हैं। लेकिन लगभग 54% उत्तरदाताओं का मानना है कि सरकार दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करने के बजाय तत्काल भविष्य के लिए योजना बनाए।
सर्वेक्षण में उत्तर देने वाले 44% लोगों ने कहा कि सरकार को बजट प्राथमिकताएं निर्धारित करते समय अगले पांच वर्षों को लक्ष्य बनाना चाहिए, जबकि लगभग 10 में से एक व्यक्ति चाहता था कि सरकार एक वर्ष की छोटी अवधि के लिए प्राथमिकताएं तय करे। सिर्फ 17% लोगों ने कहा कि योजना की समय-सीमा दो दशक होनी चाहिए।
ऑनलाइन पोल के बारे में जानें
ऑनलाइन पोल लाइवमिंट वेबसाइट पर पोस्ट किया गया था और 28 नवंबर से 30 दिसंबर 2024 तक आयोजित किया गया था। इसमें 7,051 उत्तरदाताओं ने हिस्सा लिया। 68% से ज्यादा उत्तरदाता 15 बड़े टियर-I और टियर-II शहरों यानी मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, पटना, सूरत, इंदौर, कानपुर और नागपुर से थे। सभी उत्तरदाताओं में से लगभग 85% पुरुष थे। उनमें से आधे यानी 51% सैलरीड क्लास से थे, 10% व्यवसायी थे और 19% छात्र थे। लगभग 33% ने प्रति वर्ष ₹15 लाख से अधिक की कमाई बताई, जबकि लगभग 40% ने ₹10 लाख या उससे कम वार्षिक आय बताई।
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