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Autism Prevention in Children: ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल विकार है जो जन्मजात होता है. इसमें बच्चे का व्यवहार, दूसरे से बात करने की प्रवृति, सामाजिक संबंध और सोचने के तरीके में खतरनाक तरीके से कमी आ जाती है. यह विकार जन्म से ही होता है और जीवन भर रहता है, लेकिन इसके लक्षण समय के साथ बदल सकते हैं.इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. इसमें बच्चा अलग तरह का हो जाता है. अगर किसी बच्चे को ऑटिज्म होता है तो उसे बोलने में दिक्कत होती है, कुछ सीखने में देरी होती है, दूसरों के साथ बात करने में कठिनाई होती है. ऐसे बच्चे किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाते हैं और किसी चीज रुचियां विकसित नहीं कर पाते हैं.ऐसे व्यक्ति में चेहरे का भाव, शरीर की भाषा और सामाजिक संकेतों को समझने में कठिनाई महसूस होती है. ऑटिज्म का पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है लेकिन अगर शुरुआत में इसकी पहचान कर ली जाए तो इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है.ऐसे में एम्स के डॉक्टर ने इस शुरुआत में पहचानने का तरीका बताया है.

6 महीने में लक्षण
एम्स के बाल रोग विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया है कि अगर आप थोड़ी सी सावधानी बरतें तो ऑटिज्म के लक्षणों को वैक्सीनेशन के दौरान ही पहचान की जा सकती है. उन्होंने बताया कि यह ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चा अन्य लोगों के साथ घुल-मिल नहीं पाता और बोलने में परेशानी होती है. यह स्थिति “रुचि के कुछ निश्चित पैटर्न के साथ आती है और उनमें सेंसरी इश्यू हो सकते हैं. इसके लिए 2 साल के भीतर बच्चे में ऑटिज्म की पहचान करना जरूरी है. डॉ. शेफाली गुलाटी ने कहा कि अगर 6 महीने के अंदर बच्चा अपने नाम पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है या एक साल तक उसने बड़बड़ाना शुरू नहीं किया है तो इस बात की आशंका ज्यादा है कि उसे ऑटिज्म हो. वहीं अगर बच्चा 16 महीने की उम्र में शब्द नहीं बोल रहा है और 24 महीने की उम्र में दो शब्द नहीं बोल रहा है या कुछ शब्दावली भूल गया है, तो उसमें ऑटिज्म का संदेह हो सकता है.

वैक्सीनेशन के समय पहचान जरूरी
डॉ. शेफाली गुलाटी ने कहा कि जब भी बच्चे टीकाकरण के लिए आते हैं तभी इन सबकी पहचान जरूरी है. अगर टीकाकरण केंद्र पर डॉक्टर सही से ध्यान दें तो ऑटिज्म की पहचान इसी समय हो सकती है.चूंकि इस बीमारी में शीघ्र इलाज की जरूरत होती है, इसलिए पहचान बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि अगर शुरुआत में इसकी पहचान हो जाती है तो शुरू में कुछ दवाइयां बी दी जा सकती है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस उम्र में पता लग जाए तो बीमारी के लक्षणों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है. अगर किसी बच्चे को ऑटिज्म है तो माता-पिता को उसके प्रति बेहद सकारात्मक होने की जरूरत है. उन्‍होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऑटिज्म से पीड़ित ये बच्चे बाकी बच्चों से अलग हैं. हर किसी में अलग-अलग विविधता होती है जिसे स्वीकार करना होगा. शुरुआत से ही पहले घर में उसके लिए उचित व्यवहार किया जाना चाहिए, फिर स्कूल और समाज में उसके प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए. डॉ. गुलाटी ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को हर तरह से सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है.

एक लाख 140 लोगों में ऑटिज्म
द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ऑटिज्म भारत में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य बोझ है.ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) 2021 पर आधारित अध्ययन से पता चला है कि भारत में 2021 में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर एएसडी के 708·1 मामले थे. इनमें से 483·7 महिलाएं थीं, जबकि 921·4 पुरुष थे. भारत में 2021 में एएसडी के कारण प्रति 100,000 व्यक्तियों में से लगभग 140 लोग खराब स्वास्थ्य और विकलांगता से पीड़ित थे. विश्व स्तर पर अनुमान है कि 2021 में 61.8 मिलियन लोग या हर 127 व्यक्तियों में से एक ऑटिस्टिक था. (इनपुट-एजेंसी)

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