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एक घंटा पहले
पहलगाम हमले के बाद बढ़े तनाव के बीच भारत ने सिंधु जल संधि को ‘निलंबित’ कर दिया और ‘एक बूंद भी पानी न जाने देने’ की बात कही है.
उधर पाकिस्तान ने कहा है कि अगर पानी रोकने या मोड़ने की कोशिश की गई तो वह इसे ‘युद्ध की कार्रवाई’ मानेगा. साथ ही उसने शिमला समझौते समेत सभी द्विपक्षीय समझौतों से हटने की धमकी दी है.
भारत और पाकिस्तान के बीच 65 साल पहले हुई इस जल संधि के तहत दोनों देशों के बीच नदियों के जल प्रबंधन को लेकर समझौता हुआ था और इसके बाद दोनों देशों के बीच साल 1965, 1971 और 1999 में तीन बड़े युद्ध हुए लेकिन इस संधि पर असर नहीं पड़ा.
लेकिन जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों के मारे जाने के बाद भारत ने जिन कड़े क़दमों का एलान किया उनमें यह सबसे बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है.
भारत ने कहा है कि उसका यह फ़ैसला तब तक जारी रहेगा जब तक “पाकिस्तान विश्वसनीय और स्थाई रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को छोड़ नहीं देता.”
पाकिस्तान ने भारत के आरोपों का खंडन करते हुए पहलगाम हमले को लेकर सबूत मांगे हैं और इसमें किसी तरह का हाथ होने से इनकार किया है.
अब सिंधु और अन्य नदियों के पानी से वंचित किए जाने को टालने के लिए पाकिस्तान कई क़दमों पर विचार कर रहा है. ऐसे में पाकिस्तान के पास इस कार्रवाई को टालने के लिए क्या रास्ते हैं?
वर्ल्ड बैंक के सामने मुद्दा उठाने का विकल्प

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने बीबीसी से एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत की ओर से सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मध्यस्थता के लिए पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक जाएगा.
ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा, ”हम इस मामले को लेकर वर्ल्ड बैंक जाएंगे क्योंकि उसकी मध्यस्थता में यह संधि हुई थी. यह संधि 1960 में हुई थी और ये काफी लंबे समय से सफल रही है. लेकिन वो (भारत) इससे एकतरफ़ा पीछे नहीं हट सकता.”
पिछले सप्ताह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा था, “अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत भारत इंडस बेसिन संधि (सिंधु जल संधि) पर रोक नहीं लगा सकता. ऐसा करना समझौते से जुड़े क़ानून का घोर उल्लंघन होगा.”
पाकिस्तान पहले ही जल संकट से जूझ रहा है और इस संधि के निलंबित किए जाने से उसकी मुसीबत बढ़ सकती है.
यह संधि पाकिस्तान में कृषि और हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के लिए बहुत अहम है और पाकिस्तान में 80 प्रतिशत सिंचाई के पानी की आपूर्ति इन्हीं नदियों के पानी से होती है.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में चुनौती

पाकिस्तान के विधि और न्याय राज्य मंत्री अक़ील मलिक ने बीते सोमवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है.
अक़ील मलिक ने कहा, “पाकिस्तान तीन अलग अलग क़ानूनी विकल्पों पर विचार कर रहा है जिनमें इस संधि के मध्यस्थ रहे वर्ल्ड बैंक के सामने भी मुद्दा उठाना शामिल है.”
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीजे) में भी इस मुद्दे को उठाने पर विचार कर रहा है.
उनके अनुसार, पाकिस्तान वहां ये आरोप लगा सकता है कि भारत ने साल 1969 वियना कन्वेंशन के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ (संधि के नियम) का उल्लंघन किया है.
मलिक ने कहा कि पाकिस्तान किस केस को आगे ले जाएगा, इस पर ‘जल्द’ फ़ैसला होगा और हो सकता है कि एक से अधिक फ़ोरम पर इस मुद्दे को उठाया जाए.
उन्होंने कहा, “क़ानूनी रणनीति से जुड़ा सलाह मशविरे का काम लगभग पूरा हो चुका है.”
हालांकि इस पर भारत की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाने का विकल्प

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अक़ील मलिक का कहना है कि पाकिस्तान के पास चौथा विकल्प इस मुद्दे को कूटनीतिक रूप से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना है.
उन्होंने कहा, “पाकिस्तान इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने पर भी विचार कर रहा है. हमारे पास सभी विकल्प मौजूद हैं और हम सभी उचित और सक्षम फ़ोरम पर इन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं.”
मलिक ने सिंधु जल संधि को एकतरफ़ा निलंबित किए जाने को लेकर भारत पर आरोप लगाए, “संधि को एकतरफ़ा ख़त्म नहीं किया जा सकता, इस संधि में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.”
सिंधु जल संधि को निलंबित करने के साथ ही भारत ने इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग के रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को भी वापस बुलाने का फैसला किया था. दोनों उच्चायोग में ये पद खत्म कर दिए गए थे.
दोनों उच्चायोगों से इन सैन्य सलाहकारों के पांच सपोर्ट स्टाफ़ को भी वापस लेने का फैसला किया गया था.
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के विकल्प

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अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी दोनों देशों से तनाव कम करने की अपील की है. ईरान ने तनाव कम करने के लिए भारत और पाकिस्तान में अपने बेहतर राजनयिक रिश्तों को इस्तेमाल करने की पेशकश की थी.
पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में भूमिका निभाने वाले सऊदी अरब ने भी पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों से बात की है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने क्षेत्रीय तनाव को लेकर कई देशों से बातचीत का सिलसिला बढ़ा दिया है. बीते दो दिनों में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने खाड़ी और मध्य पूर्व समेत कई देशों के प्रतिनिधियों से फ़ोन पर बात की है, जिसमें यूएई, ईरान, कुवैत, क़तर, बहरीन और मिस्र शामिल हैं.
डार ने चीन के विदेश मंत्री से भी बात की है. चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़, चीन के विदेश मंत्रालाय के प्रवक्ता ने पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच में मदद करने की पेशकश की है. साथ ही दोनों देशों से बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने की अपील की.
समाचार एजेंसी रायटर्स के मुताबिक़, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि विदेश मंत्री मार्को रूबियो जल्द ही भारत और पाकिस्तान के अपने समकक्षों से बात करेंगे और तनाव को कम करने की अपील करेंगे.
रविवार को अमेरिका ने कहा था कि वो दक्षिण एशिया के परमाणु हथियार संपन्न इन दोनों पड़ोसियों से कई स्तरों पर संपर्क में है और उसने दोनों देशों से ज़िम्मेदारी भरे समाधान की अपील की है.
सिंधु जल संधि के क्या हैं प्रावधान

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दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर नौ साल तक वार्ता चली और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब ख़ान और भारत के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू के बीच सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि पर समझौता हुआ.
इस संधि के तहत सिंधु बेसिन की तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत को आवंटित किया गया. वहीं तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के जल का 80 फ़ीसदी हिस्सा पाकिस्तान को आवंटित किया गया.
सिंधु जल संधि के मुताबिक़, भारत पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है.
वहीं पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था. जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.
इस संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत करने और साइट के मुआयना आदि का प्रावधान भी था.
इसी संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया. इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था.
संधि में दोनों कमिश्नरों के बीच किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत का प्रावधान है.
इसमें यह भी था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा. इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी.
बैठकों में भी अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे मिलकर सुलझाना होगा.
साथ ही ऐसे किसी भी विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान भी रखा गया है.
पहले से विवाद

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सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से विवाद रहे हैं.
पाकिस्तान को इस बात की चिंता थी कि इन परियोजनाओं से पाकिस्तान के लिए पानी का प्रवाह कम हो जाएगा.
दोनों देशों के विशेषज्ञों ने 1978 में सलाल बांध विवाद को बातचीत से सुलझाया. फिर आया बगलिहार बांध का मुद्दा. इसे 2007 में विश्व बैंक के एक तटस्थ मध्यस्थ की मदद से सुलझाया गया था.
किशन गंगा परियोजना भी एक विवादास्पद परियोजना थी. यह मामला अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में न्यायालय तक पहुँच गया था, जिसका निर्णय 2013 में किया गया था. सिंधु आयोग की बैठकों ने इन विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
नदियों को बाँटने का ये समझौता कई युद्धों, मतभेदों और झगड़ों के बावजूद 65 सालों से अपनी जगह क़ायम रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS