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भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर की पहली घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की थी। इस बीच खबर आई है कि चीन सीजफायर के तरीके और उसके बाद के घटनाक्रम से नाराज हो गया है। रिपोर्ट्स में इसे लेकर कई दावे किए गए हैं।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तानTue, 13 May 2025 11:49 PM
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सीजफायर तो हो गया पर पाक से रूठ गया दोस्त चीन? रिपोर्ट्स में दावा- ड्रैगन को नहीं पसंद आया तरीका

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर को लेकर दावों और गिले-शिकवों का दौर अब तक जारी हैं। 10 मई की शाम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीजफायर को लेकर पहली घोषणा की। इतना ही नहीं ट्रंप ने यह तक कह दिया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार ना करने की धमकी देकर जंग रुकवाई है। वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी सीजफायर करवाने के लिए ट्रंप को शुक्रिया कहा। हालांकि यह बात पाकिस्तान के ‘पक्के मित्र’ चीन को नागवार गुजर रही है। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन सीजफायर के तरीकों को लेकर खुश नहीं है।

गौरतलब है कि संघर्षविराम को लेकर भारत का रुख शुरू से स्पष्ट रहा है। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने शनिवार को सीजफायर की पुष्टि करते हुए बताया कि इसकी पहल पाकिस्तान की तरफ से की गई और दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत के बाद ही सीजफायर पर सहमति बनी। उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच DGMO स्तर पर वार्ता हुई थी। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 12 मई को देश के नाम संबोधन में यह बात दोहराई कि पाकिस्तान की तरफ से गुहार लगाए जाने के बाद यह संघर्षविराम हुआ। भारत ने ट्रंप के ‘व्यापार की धमकी’ वाले दावे को भी सिरे से खारिज कर दिया है। इस घटनाक्रम के बाद अब अमेरिका और चीन अपना-अपना उद्देश्य पूरा करने में जुटे हैं।

एनडीटीवी ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि 9 मई को अमेरिका, पाकिस्तान और भारत के बीच चल रही बातचीत के दौरान चीन में भी फोन कॉल का सिलसिला जारी था। कथित तौर पर चीन को इस मुद्दे पर अमेरिका का नाक घुसाना बिल्कुल पसंद नहीं आया। डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा और अमेरिका द्वारा श्रेय लेने से बीजिंग इस्लामाबाद से नाराज भी है। दरअसल चीन वैश्विक स्तर पर खुद को एक पीस मेडिएटर के तौर कर स्थापित करना चाहता है। ऐसे में चीन कथित रूप से इस बात से नाराज है कि संकट के समय में पाकिस्तान ने अमेरिका से संपर्क किया, जबकि इस मुद्दे पर बीचबचाव कर चीन दक्षिण एशिया में खुद को एक शांति प्रिय देश के रूप में प्रचारित कर सकता था।

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