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ईरान के साथ इसराइल का संघर्ष काग़ज़ पर बहुत बेमेल लग सकता है.
90 लाख लोगों की आबादी वाला इसराइल, 8.8 करोड़ की आबादी वाले पश्चिम एशिया के विशाल देश से भिड़ रहा है. क्षेत्रफल के लिहाज़ से भी इसराइल ईरान से बहुत छोटा है.
लेकिन इसराइल की ताक़तवर और अत्याधुनिक सेना, उससे कहीं बड़े दुश्मन पर भी उसे हावी करने में सक्षम बनाती है. हालांकि इसराइल के पास ज़्यादातर हथियार, लेकिन सारे नहीं, अमेरिका के दिए हुए हैं.
पश्चिम एशिया में ताज़ा हालात में सैन्य संतुलन को लेकर बीबीसी ने एक पड़ताल की है.

इसराइल ने अब तक क्या हासिल किया?

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इसराइल ने तेहरान के हवाई क्षेत्र पर ‘पूरा नियंत्रण’ हासिल करने का दावा किया है. संघर्ष में अब तक इसराइल का हवाई क्षेत्र में पूरा दबदबा रहा है और ऐसा लगता है कि ईरान के पुराने लड़ाकू विमान लड़ाई में हिस्सा लेना तो दूर, टेक ऑफ़ भी नहीं कर पाए.
इसराइल के आधुनिक अमेरिका निर्मित युद्धक विमानों ने कम दूरी से गाइडेड बम गिराए और ज़ाहिर तौर पर मार गिराए जाने की उनमें कोई ख़ास फ़िक्र नहीं दिखी.
ईरान के एयर डिफ़ेंस सिस्टम के ख़तरे को पिछले अक्तूबर में इसराइली हमले में तब नाकाम कर दिया गया जब उसने ईरान के एस-300 एयर डिफ़ेंस सिस्टम को लंबी दूरी से निशाना बनाया.
ताज़ा संघर्ष में इसराइली वायु सेना ने ज़मीनी राडार और लॉन्चरों को निशाना बनाना जारी रखा है.
यहां तक कि संघर्ष शुरू होने से पहले ही इसराइली ख़ुफ़िया एजेंट ईरान के अंदर घुसकर उसकी जवाबी क्षमताओं को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे थे.
इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के एजेंटों ने देश में ड्रोन की तस्करी की जिसका इस्तेमाल ईरान के बचे हुए एयर डिफ़ेंस सिस्टम को निशाना बनाने के लिए किया गया.
दूसरी ओर, इसराइली हमलों में ईरानी मिलिट्री कमांडर भी मारे गए, जिससे की ईरान की ओर से जवाबी हमला प्रभावित हुआ.
क्या ईरान अब भी जवाबी हमला करने में सक्षम है?

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अमेरिकी अनुमान के अनुसार, इसराइली हमले से पहले ईरान के पास पश्चिम एशिया में बैलिस्टिक मिसाइलों का सबसे बड़ा भंडार था, जिनकी अनुमानित संख्या 2,000 से 3,000 थी.
हालांकि, इसराइल का दावा है कि उसने इनमें से कुछ को निशाना बनाया है, जिनमें मिसाइल बनाने वाली फ़ैक्ट्रियां भी शामिल हैं. इसराइली सेना का कहना है कि उसने सतह से सतह पर मार करने वाले ईरानी लॉन्चरों में से एक तिहाई को नष्ट कर दिया है.
हालांकि ईरान के मिसाइल प्रोग्राम को नुक़सान पहुंचा होगा लेकिन यह पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ है. यह इसराइल के लिए अभी भी सीधा बड़ा ख़तरा बना हुआ है.
ईरान पर हमलों के बावजूद, ईरान के पास अभी भी कम दूरी की एयर डिफ़ेंस मिसाइलें हैं.
रूसी नामक थिंक टैंक के जस्टिन ब्रोंक का कहना है कि इसराइल मौजूदा समय में तेहरान के हवाई क्षेत्र पर दबदबे का दावा कर सकता है, लेकिन उसने पूरी तरह हवाई नियंत्रण हासिल नहीं किया है और कम दूरी की मिसाइलों का ख़तरा अभी भी बना हुआ है.
ईरान के सहयोगी कौन हैं और वे क्या कर सकते हैं?

ईरान ने कई सालों तक ग़ज़ा पट्टी में हमास और लेबनान में हिज़्बुल्लाह को हथियार और तकनीक मुहैया कराई है.
हालांकि, पिछले दो सालों में इसराइली कार्रवाई ने इन दोनों की अग्रिम मोर्चों पर चुनौती देने की क्षमता ख़त्म कर दी है.
ग़ज़ा में हमास लगभग ख़त्म हो चुका है, जबकि हिज़्बुल्लाह की ताक़त इतनी कम हो गई है कि वह ईरान पर इसराइल के हमले का जवाब नहीं दे पाया.
दूसरी ओर, यमन में हूती विद्रोहियों के पास इसराइल पर मिसाइल दागने की क्षमता है और वे ऐसा कर भी रहे हैं.
हूती पर अमेरिका की बमबारी के बावजूद, उन्होंने सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल करके कई रीपर ड्रोन मार गिराए.
क्या दूसरे देश भी इस संघर्ष में शामिल हो सकते हैं?

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ईरान के पास इस क्षेत्र में पश्चिमी ठिकानों को निशाना बनाने की क्षमता है. इराक़ में ईरान समर्थित मिलिशिया इस क्षेत्र में पश्चिमी सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहे हैं और अमेरिका और ब्रिटेन इस स्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं.
इराक़ की राजधानी बग़दाद में भी 100 ब्रिटिश सैनिक हैं और उनकी सुरक्षा के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने हाल ही में ब्रिटिश वायुसेना के टाइफ़ून लड़ाकू विमानों को साइप्रस भेजा है.
इसके अलावा, बहरीन में अमेरिकी और ब्रिटिश जहाज़ भी हैं और यह संघर्ष जितना लंबा खिंचेगा पश्चिमी सेनाओं के लिए ख़तरा उतना ही अधिक होगा.
ईरान के पास होर्मुज़ स्ट्रेट को बंद करने की भी क्षमता है. ऐसा करना नासमझी होगी, लेकिन अगर तेहरान ऐसा करने का फ़ैसला करता है तो वह कर सकता है.
क्या इसराइल अपने लक्ष्य हासिल कर पाएगा?

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इस संघर्ष में फ़िलहाल इसराइल का पलड़ा भारी है, लेकिन उसकी आगे की सैन्य कार्रवाई अमेरिकी समर्थन पर निर्भर करेगी.
इसराइल को हर साल अमेरिका से अरबों डॉलर की सैन्य सहायता मिलती है और अमेरिकी निर्मित लड़ाकू विमानों से दागे जाने वाले हथियार भी अमेरिका से ही आते हैं.
इसराइली एयर डिफ़ेंस सिस्टम ‘आयरन डोम’ से दागी जाने वाली कुछ इंटरसेप्टर मिसाइलें भी अमेरिका में बनी होती हैं.
इसके अलावा, भूमिगत ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के लिए इसराइल जिन ‘बंकर बस्टर बमों’ का इस्तेमाल कर रहा है, उनमें ज़्यादातर अमेरिका से ही भेजे गए हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उनके इस्तेमाल का समर्थन कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई को निशाना बनाने की इसराइली योजना पर कथित तौर पर वीटो कर दिया है.
इसके अलावा अमेरिका ने इसराइल को वे हथियार नहीं दिए जो उसे फ़ोर्दो में ज़मीन के अंदर ईरान के परमाणु ठिकाने को निशाना बनाने के लिए ज़रूरी हैं. यह विशाल बम ‘मैसिव ऑर्डिनेंस पेनीट्रेटर’ 13,600 किलोग्राम वज़न का है, जिसे केवल यूएस बी2 स्ट्रेटेजिक बमवर्षक विमान ही गिरा सकते हैं.
अगर इसराइल को अमेरिकी समर्थन मिलता भी रहे, तो भी वह अपने लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल नहीं कर पाएगा.
वह अपनी हवाई ताक़त का इस्तेमाल करके ईरानी परमाणु कार्यक्रम को बाधित तो कर सकता है, लेकिन वह उसे पूरी तरह नष्ट नहीं कर सकता.
ईरानी शासन को बदलने की इसराइल की उम्मीदें भी पूरी होने की संभावना नहीं है.
ऐसी स्थिति में इसराइली हवाई हमले भय, विनाश और खंडहर पैदा कर सकते हैं, लेकिन 2011 में लीबिया और हाल ही में ग़ज़ा पट्टी में किए गए हमले इस बात के सबूत हैं कि ये सफलता की पूरी गारंटी नहीं है.
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SOURCE : BBC NEWS