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अमृतसर: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में हाल ही में हुई सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार की ओर से चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए गए। राज्य में 79,000 से अधिक एफआईआर की जांच अब तक लंबित है। हाई कोर्ट ने इस लापरवाही पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए डीजीपी को दो सप्ताह के भीतर एक ठोस एक्शन प्लान तैयार कर अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है। 

इस सुनवाई में जस्टिस संदीप मौदगिल की सिंगल बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक्शन प्लान में लंबित एफआईआर की तिथि, जांच पूरी करने के लिए प्रस्तावित समय सीमा, और इसे पूरा करने के उपायों का विवरण दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह जानकारी डीजीपी को हलफनामे के माध्यम से देनी होगी। यह मामला फिरोजपुर जिले से जुड़ा है, जिसमें हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट के तहत आरोप लगाए गए हैं, जिसकी सुनवाई अदालत में हो रही थी। हाई कोर्ट ने पहले पंजाब सरकार को निर्देश दिया था कि जांच एक महीने के भीतर पूरी की जाए। इसके बावजूद, जांच में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई। इस मामले में फिरोजपुर एसएसपी सौम्या मिश्रा द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि तकनीकी संसाधनों की कमी और आरोपी बंसीलाल को गिरफ्तार करने में असफलता के कारण देरी हुई। 

हाई कोर्ट में पेश किए गए हलफनामे में खुलासा हुआ कि जांच में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग नहीं किया गया। उदाहरण के लिए, आरोपी के मोबाइल फोन को ट्रैक करना, उसकी लोकेशन की निगरानी करना, या उसके बैंक लेनदेन की जांच करना तक नहीं किया गया। इस पर कोर्ट ने पंजाब सरकार और पुलिस के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए। उल्लेखनीय है कि, पिछले आठ वर्षों में पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारें रहीं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इन सरकारों के अधीन काम करने वाली पुलिस और इनके गृह मंत्रियों ने इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान क्यों नहीं दिया। अधिकतर मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते जांच प्रभावित होती है, और पुलिस चाहकर भी कार्रवाई नहीं कर पाती। और यदि पुलिस की यह हालत है, तो राज्य के गृह मंत्रियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं। 

पंजाब में 79,000 लंबित एफआईआर न केवल पुलिस प्रशासन की नाकामी का उदाहरण हैं, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राजनीतिक दबाव के चलते अपराधियों पर कार्रवाई नहीं हो पाती। हाई कोर्ट ने सही कहा कि ऐसी लापरवाही न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है और जनता का न्याय पर से विश्वास कमजोर करती है। अब सवाल यह है कि जब सरकार और पुलिस दोनों ही अपने दायित्वों में विफल हो रही हैं, तो जनता को न्याय कैसे मिलेगा?

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