Source :- NEWS18
Last Updated:May 12, 2025, 21:43 IST
राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर ने कुछ क्लासिक हिंदी फिल्में बनाईं, जो न केवल अपनी कहानियों और अभिनय के लिए बल्कि अपने गानों और डायलॉग्स के लिए भी लोकप्रिय हैं. एक बेहद सफल अभिनेता होने के नाते, काका अपने को-स्टार…और पढ़ें
साल 1970 और 1980 के दशक में, राजेश खन्ना बॉलीवुड में सफलता के 9वें आसमान पर थे. आनंद, कटी पतंग, हाथी मेरे साथी और रखवाला जैसी फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर बड़ी हिट रहीं, जिसने उन्हें भारतीय सिनेमा के पहले सच्चे सुपरस्टार के रूप में स्थापित किया था.

शर्मिला के साथ उनकी फिल्में, जैसे आराधना, सफर और अमर प्रेम ने उन्हें एक हिट ऑन-स्क्रीन जोड़ी के रूप में स्थापित किया. दोनों की लव कैमिस्ट्री को फैंस बेहद पसंद करते थे और आज भी वो फिल्में देखी जाती हैं.

हालांकि, बढ़ते स्टारडम के साथ, राजेश खन्ना का शेड्यूल टाइट हो गया और टैगोर को कभी-कभी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. इसलिए जब शर्मिला ने काका के साथ फिल्में करनी कम कर दी थीं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ऑडिबल ऑडियोबुक, राजेश खन्ना: एक तन्हा सितारा में, शर्मिला खान ने खुलासा किया कि काका ने अपने को-स्टार्स को तमाम तरह के बड़े उपहार दिए थे.

अभिनेत्री का कहना है कि काका के ऐसे उदारवादी व्यवहार से कभी-कभी उनके रिश्तों में तनाव या कहें खटास आ जाती थी, क्योंकि वो भी बदले में उनसे चीजों की अपेक्षा करता था. ऐसे में हम कह सकते हैं कि राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे, जिनके अपने फायदे और नुकसान थे.

अभिनेत्री ने कहा, ‘राजेश खन्ना जटिल लोगों से घिरे हुए थे और मैंने उन्हें अपने मित्रों और को-स्टार्स के साथ मिलकर उदार होते देखा है…उन पर कीमत उपहार बरसाते हुए भी देखा है. कभी-कभी तो वो उनके लिए एक घर भी खरीद लेते थे.’ उन्होंने तुरंत यह भी बताया कि बाद में इससे क्या समस्याएं पैदा हुईं. टैगोर ने समझाया, ‘लेकिन बदले में वो कुछ ज्यादा ही उम्मीद रखते थे, जिससे संबंधों में तनाव आ जाता था.’

उसी ऑडियोबुक में, यह स्वीकार करते हुए कि जब उन्होंने खन्ना के साथ कम फिल्में कीं तो उन्हें राहत क्यों मिली, शर्मिला टैगोर ने याद किया कि शेड्यूल पर रहना असंभव था, क्योंकि राजेश खन्ना सुबह 9 बजे की शिफ्ट के लिए दोपहर से पहले कभी नहीं आते थे, जिससे दिन का काम पूरा करने में देरी होती थी. ऐसे में पूरी यूनिट शेड्यूल को पूरा करने के लिए उन पर ओवरटाइम करने का दबाव बनाती थी. समय के साथ, यह उनकी एक दिनचर्या बन गई, और खन्ना से जुड़ी कई चल रही परियोजनाओं के साथ, टैगोर अक्सर खुद को मुश्किल स्थिति में पाती थीं.

2012 में, राजेश खन्ना का निधन हो गया, अपनी समृद्ध विरासत और दुनिया को शोक में छोड़ गए. शर्मिला टैगोर की बंगाली फीचर फिल्म पुराटन अभी भी कुछ सिनेमाघरों में चल रही है.
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