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सुरेश चंद्रकार

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यह साल 2009 की बात है, जब भारत सरकार ने माओवाद प्रभावित इलाक़ों में ‘सड़क आवश्यकता योजना-1’ की शुरुआत की थी.

इनमें से ही छत्तीसगढ़ के बीजापुर के नेलसनार से कोडोली और मिरतुर होते गंगालूर तक 52.40 किलोमीटर लंबी एक सड़क बननी थी.

इसके 15 साल बाद, यानी अब से क़रीब दो महीने पहले, 19 नवंबर 2024 को जब छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव इस इलाक़े में पहुंचे तो उन्होंने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि जल्दी ही यह सड़क बन जाएगी.

इस सड़क का निर्माण वही ठेकेदार सुरेश चंद्रकार उर्फ़ मिथुन कर रहे हैं, जिन्हें बीजापुर के स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोप में न्यायिक हिरासत में लिया गया है.

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सुरेश चंद्रकार

सड़क का ठेका

बस्तर आदिवासी

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लोक निर्माण विभाग के अधिकारी जांच का हवाला देते हुए, इस सड़क के मुद्दे पर अधिकृत रूप से कुछ भी नहीं बोलना चाहते.

लेकिन नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर बस्तर में लोक निर्माण विभाग से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं, “सुरेश चंद्रकार के पास इस सड़क का ठेका पाने की पात्रता नहीं थी.”

“आप इसे प्रलोभन कहिए, दबाव कहिए या मजबूरी कहिए, विभाग के अधिकारियों ने इस 52.40 किलोमीटर लंबी सड़क के दो-दो किलोमीटर निर्माण के लिए अलग-अलग निविदा जारी कीं और फिर सुरेश चंद्रकार को इस सड़क निर्माण के लिए दो-दो किलोमीटर का ठेका सौंप दिया गया.”

“उसके बाद से यह सड़क बन ही रही है. इस सड़क की लागत 56 करोड़ से 112 करोड़ कर दी गई. यह सड़क सुरेश चंद्रकार के लिए सोने का अंडा देने वाली सड़क बन गई.”

साल 2016 में ‘वामपंथ उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सड़क परियोजना’ शुरू की गई और साल 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि बस्तर में जिन 245 सड़कों का निर्माण होना था, उनमें से 243 सड़कें बन ही नहीं पाई.

माओवाद प्रभावित इलाकों में सड़क बनाने की अपनी चुनौतियां रही हैं. काम करने वाले मज़दूरों से लेकर ठेकेदार और सुरक्षाबल के जवानों की भी जान जाती रही है.

लेकिन इन सैकड़ों सड़कों की लागत साल दर साल बढ़ती रही और ठेकेदारों का मुनाफ़ा भी बढ़ता रहा.

ग्रामीण विकास मंत्रालय के जुलाई, 2024 तक के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसके अनुसार सड़कों की लागत बढ़ी तो उनका काम भी तेज़ी से बढ़ा. पूरे छत्तीसगढ़ में 389 सड़कें बननी थीं, उनमें से 270 का निर्माण पूरा हो गया.

बासागुड़ा से सलवा जुडूम के एसपीओ तक

सुरेश चंद्रकार

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बीजापुर में एक छोटा-सा क़स्बा है बासागुड़ा. इस क़स्बे को तालपेरू नदी दो भागों में बांटती है.

नदी के एक पार पत्रकार मुकेश चंद्राकर का पैतृक घर था और दूसरे पार उनकी हत्या के मुख्य अभियुक्त ठेकेदार सुरेश चंद्रकार का.

दोनों क़रीबी रिश्तेदार हैं और चंद्रकार समाज से ही आते हैं, जो अनुसूचित जाति का हिस्सा है. हालांकि मुकेश और उनका परिवार अपवाद स्वरूप अपना उपनाम चंद्राकर लिखता आया था.

गांव के अधिकांश लोग मुख्यतः जंगलों की उपज पर निर्भर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में जब सरकार के संरक्षण में माओवादियों के ख़िलाफ़ जून 2005 में ‘सलवा जुडूम’ की शुरुआत हुई तो गांव-गांव में इस आंदोलन से जुड़े हथियारबंद लोग पहुंचने लगे.

जो लोग ‘सलवा जुडूम’ की बैठकों में शामिल नहीं होते थे, उन्हें ‘सलवा जुडूम’ में शामिल लोगों की प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी और जो शामिल होते थे, उन्हें माओवादियों की. कई लोग इन दोनों पाटों में फंस कर मारे गए.

सलवा जुडूम में शामिल लोगों ने माओवादियों की हिंसा का हवाला देकर बस्तर के 644 गांव ख़ाली करवा दिए.

इन गांवों में रहने वाले कुछ लोग आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की ओर पलायन कर गए, कुछ माओवादियों के साथ भी गए. लेकिन अधिकांश लोग सरकारी राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हो गए.

आज 20 साल बाद भी हज़ारों लोग इन राहत शिविरों में रह रहे हैं. जिन 644 गांवों को ख़ाली कराया गया था, उनमें बासागुड़ा भी शामिल था.

सुरेश चंद्रकार

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बीजापुर के एक पत्रकार बताते हैं, “सलवा जुडूम में आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी भी शामिल हुए थे और सामान्य ग्रामीण भी. पुलिस ने इनमें शामिल सैकड़ों युवाओं को स्पेशल पुलिस ऑफिसर यानी एसपीओ का नाम दे कर उन्हें हथियार दे दिए.”

“इनकी तनख्वाह थी 1500 रुपये. सलवा जुडूम में बासागुड़ा के जो युवा शामिल थे, उनमें एक नाम नौंवी कक्षा तक की पढ़ाई करने वाले सुरेश चंद्रकार का भी था.”

सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2011 को जब सलवा जुडूम को अवैध बता कर इस पर प्रतिबंध लगा दिया तो 1500 रुपये महीने की तनख़्वाह पाने वाले स्पेशल पुलिस ऑफिसर को डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड (डीआरजी) के तौर पर नौकरी दे दी गई.

लेकिन जानकार बताते हैं कि सुरेश ने इससे पहले ही अपनी राह अलग कर ली थी.

सुरेश चंद्रकार

सुरेश चंद्रकार एक आईपीएस अधिकारी के घर पर बतौर रसोइया काम करने लगे थे. वहीं रहते हुए उन्होंने छोटे-मोटे निर्माण कार्यों की ठेकेदारी शुरू की और यह काम चल निकला.

हज़ारों में शुरू हुआ काम का सिलसिला साल 2017 के आते-आते करोड़ों में तब्दील हो गया.

बीजापुर के एक प्रतिद्वंद्वी ठेकेदार कहते हैं, “जिस सुरेश चंद्रकार के पास एक साइकिल तक नहीं थी, उसके पास एक-एक करोड़ की चारपहिया गाड़ियों का रेला लग गया. अलग-अलग शहरों में उसकी प्रापर्टी तैयार हो गई.”

सुरेश चंद्रकार की कुल संपत्ति कितनी है या किन किन शहरों में है, बीबीसी हिंदी ने स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं की है.

प्रतिद्वंद्वी ठेकेदार आगे कहते हैं, “हैदराबाद से लेकर दिल्ली तक और रायपुर से लेकर नागपुर तक उसके (सुरेश चंद्रकार) संपर्क गहराते गए. राजनीतिक दलों में उसकी अच्छी पैठ बनी. रही सही कसर नौकरशाहों ने पूरी कर दी. आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के परिजन, सुरेश के साथ ठेके में अघोषित पार्टनर बन गए.”

सुरेश चंद्रकार सड़कों, पुल-पुलिया, पुलिस कैंप और इस तरह के निर्माण कार्यों की ठेकेदारी तो करते ही रहे, उन्होंने खदानों का भी काम शुरू किया.

इस दौरान उन्होंने अलग-अलग तरह की फर्म बनाई. एक रजिस्टर्ड कंपनी भी बनाई.

कांग्रेस में प्रवेश

सुरेश चंद्रकार

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इस बीच सुरेश ने सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक आयोजनों में भाग लेने की शुरुआत की. वे कभी अस्पताल जाकर फल बांट आते तो कभी खेलकूद या आर्केस्ट्रा के लिए युवाओं को चंदा दे देते.

लेकिन वे पहली बार दिसंबर 2021 में अपनी भव्य शादी के कारण केवल बीजापुर या बस्तर ही नहीं, छत्तीसगढ़ में चर्चा में आ गये.

उन्होंने होने वाली पत्नी के लिए, ससुराल तक आने के लिए निजी हेलीकॉप्टर का इंतज़ाम किया था, जो बीजापुर जैसे ज़िले के लिए चकित करने वाली बात थी, जिस ज़िले की 70 फ़ीसदी आबादी ने कभी रेलगाड़ी नहीं देखी हो, वो हैरान थी.

इस विवाह के लिए रूस और थाइलैंड से डांसरों को बुलाया गया. विवाह के अगले दिन बीजापुर के स्टेडियम में रात्रि भोज दिया गया था.

इस विवाह समारोह की तस्वीरें और वीडियो क्लिप खुद सुरेश चंद्रकार की पत्नी ने सोशल मीडिया में वायरल किया. ये वीडियो क्लिप अभी भी उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर मौजूद हैं.

इस बीच सुरेश चंद्रकार ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने जल्दी ही सुरेश चंद्रकार को राज्य की अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ का उपाध्यक्ष बनाया.

पार्टी ने हाल ही में हुए महाराष्ट्र चुनाव में उन्हें ऑब्ज़र्वर की ज़िम्मेदारी भी सौंपी थी.

लेकिन पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोप के बाद कांग्रेस पार्टी ने दावा किया कि सुरेश चंद्रकार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह भी कहा कि सुरेश चंद्रकार ने पत्रकार मुकेश की हत्या के पंद्रह दिन पहले ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाक़ात की थी.

उन्होंने मुख्यमंत्री निवास के सीसीटीवी फुटेज की भी जांच की मांग की.

बीजेपी का दावा

सुरेश चंद्रकार

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हालांकि भाजपा ने इस आरोप को हास्यास्पद बताया है.

राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा, “कांग्रेस नेता सुरेश चंद्रकार जो हत्या का मुख्य सरगना है, वो कांग्रेस का प्रदेश का पदाधिकारी है. कांग्रेस अपने नियुक्ति पत्रों को झुठला सकती है क्या?”

मुकेश चंद्राकर की हत्या की जांच कर रही एसआईटी का दावा है कि सुरेश चंद्रकार के भाई रितेश चंद्रकार और उनके सुपरवाइज़र महेंद्र रामटेके ने रॉड से मार कर मुकेश की हत्या की थी और दूसरे भाई दिनेश चंद्रकार ने सबूतों को मिटाने में मदद की थी.

सुरेश चंद्रकार ने भी सबूतों को छिपाने और आरोपियों को फ़रार करने में मदद की.

एसआईटी का कहना है कि मुकेश चंद्राकर ने अपने यूट्यूब चैनल में सुरेश चंद्रकार की ठेकेदारी में बनी ख़राब सड़क की ख़बर दिखाई थी, जिसके कारण सुरेश नाराज़ थे.

सुरेश ने एसआईटी के सामने स्वीकार किया है कि मुकेश चंद्राकर ने रिश्तेदार होने के बाद भी यह ख़बर दिखाई थी, इसलिए उनकी हत्या की योजना चार-पांच दिन पहले ही बना ली गई थी और उसे एक जनवरी को अंजाम दिया गया.

फ़िलहाल सुरेश चंद्रकार अपने दोनों भाइयों और सुपरवाइज़र के साथ न्यायिक हिरासत में हैं.

लेकिन बीजापुर के पत्रकार आशंका जता रहे हैं कि नेताओं, अफ़सरों से अच्छे रिश्ते और पैसे की ताक़त के कारण उन्हें जल्दी ही ज़मानत मिल सकती है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS