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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फ़ाइल तस्वीर

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“कई ऐसे काम जो हमारे सीधे अधिकारियों से कहने पर हो जाने चाहिए, उनके लिए हमें लखनऊ जाकर मुख्यमंत्री से कहना पड़ रहा है. अफ़सरशाही के सामने जन-प्रतिनिधि बेबस हैं.”

“मुख्यमंत्री से शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, इसका तो यही मतलब है कि अधिकारी मुख्यमंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं.”

“अधिकारियों के रवैये और हठधर्मिता से बीजेपी विधायकों में असंतोष बढ़ रहा है लेकिन हम जैसे विधायक खुलकर बोल नहीं पा रहे हैं.”

“पुलिस का भ्रष्टाचार बढ़ा है. यदि ये ऐसे ही चलता रहा तो जनता में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ जाएगा.”

ये उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के कुछ विधायकों के शब्द हैं जो उन्होंने अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी हिंदी से कहे.

एक और विधायक ने कहा, “जो विधायक मीडिया में बयान दे रहे हैं, ये उनका अपना एजेंडा हैं. अगर हमें कोई शिकायत है भी तो हम पार्टी फोरम में कहेंगे, मीडिया में नहीं.”

लाल रेखा
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हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के लोनी से विधायक नंद किशोर गुर्जर, राज्य सरकार में मंत्री आशीष पटेल, भदोही से विधायक दीनानाथ भास्कर, लखीमपुर खीरी के कई विधायकों और कई अन्य नेताओं ने खुलकर राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ नाराज़गी ज़ाहिर की है.

अपनी ही पार्टी की सरकार रहते विधायकों के ऐसे आरोपों की वजह जानने के लिए हमने भारतीय जनता पार्टी, यूपी सरकार और यूपी में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन हमें अब तक कोई जवाब नहीं मिल सका.

उत्तर प्रदेश सरकार में एक मंत्री ने अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए बीबीसी से कहा, “इस तरह के बयान कुछ चुनिंदा विधायकों की निजी राय हो सकती हैं. यूपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का काम सब देख रहे हैं. पार्टी और सरकार के भीतर सब कुछ ठीक है.”

वहीं उत्तर प्रदेश के एक पूर्व ब्यूरोक्रेट ने अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए बीबीसी से कहा, “अफ़सर और नेताओं के बीच समन्वय में कुछ व्यवस्थाजनक ख़ामियां हैं. अधिकारियों के जो पद सीधे जनप्रतिनिधियों के अधीन हैं, वहां अधिकारियों को जन प्रतिनिधियों की सुननी ही चाहिए, लेकिन ब्यूरोक्रेसी के ऐसे पद जो पूरी तरह स्वतंत्र हैं, वहां अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से ही काम करना चाहिए. यही समाज, व्यवस्था और सरकार के लिए ठीक है.”

आशीष पटेल का शीर्ष अधिकारियों पर निशाना

आशीष पटेल, उत्तर प्रदेश सरकार में तकनीकी शिक्षा और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री हैं.

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बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) के नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आशीष सिंह पटेल ने अफ़सरों पर खुलकर हमला बोलते हुए ये आरोप तक लगाया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पत्नी अनुप्रिया पटेल को चुनाव हराने की साज़िश मिर्ज़ापुर में तैनात अधिकारियों ने की थी.

उन्होंने सोशल मीडिया पर कुछ अधिकारियों का नाम लिखकर ये आरोप लगाया कि यूपी की अफ़सरशाही के कुछ अधिकारी उन्हें नुक़सान पहुंचाने के लिए षडयंत्र कर रहे हैं.

अपना दल (कमेरावादी) की नेता और सिराथू से विधायक पल्लवी पटेल ने आशीष पटेल पर तकनीकी शिक्षा विभाग में पदोन्नति में कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.

हालांकि, बीबीसी से बात करते हुए आशीष पटेल ने इस तरह के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “मैं किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हूं, ये बात मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं.”

ये विवाद बढ़ने के बाद आशीष पटेल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ से मुलाक़ात भी की थी.

अपनी ही सरकार के अधिकारियों पर आरोप लगाने के सवाल पर आशीष पटेल कहते हैं, “हमारे ख़िलाफ़ षडयंत्र लोकसभा चुनाव के समय से ही शुरू हो गया था, ये अधिकारी किसके इशारे पर ऐसा कर रहे हैं?”

नंद किशोर गुर्जर के आरोप

ग़ाज़ियाबाद के लोनी से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर खुलकर अधिकारियों के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं

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ग़ाज़ियाबाद के लोनी से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर ने खुलकर अधिकारियों पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने और अपने क्षेत्र में गौकशी करवाने के आरोप लगाए हैं. वे सार्वजनिक मंचों पर अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए बयान दे चुके हैं.

बीबीसी से बात करते हुए नंदकिशोर गुर्जर ने कहा, “अगर पुलिस चौकी-थाने भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाएं, खुलकर गौकशी हो रही हो तो क्या जन प्रतिनिधियों को चुप रहना चाहिए?”

नंद किशोर गुर्जर कहते हैं, “हमने माननीय मुख्यमंत्री से कुछ अधिकारियों को हटाने के लिए कहा. लेकिन मुख्यमंत्री हमसे वादा करके भी उन्हें हटा नहीं पाए. इसका तो यही मतलब है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी मुख्यमंत्री पर भी हावी हो गए हैं.”

नंद किशोर गुर्जर ने कहा, “जन प्रतिनिधि को जनता के लिए उपलब्ध रहना होता है, जनता के काम कराने होते हैं, मौजूदा अफ़सरशाही के सामने हमारी नहीं चल रही है. मैं ये बात खुलकर बोल रहा हूं, बीजेपी के बहुत से विधायक ऐसा ही महसूस करते हैं लेकिन अपने निजी कारणों से बोल नहीं पा रहे हैं.”

हालांकि, नंदकिशोर गुर्जर ज़ोर देकर कहते हैं कि अपनी बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाने में उन्हें किसी तरह की दिक़्क़त नहीं हैं. लेकिन वो ये भी कहते हैं कि इतना खुलकर अपनी बात कहने के बावजूद असर नहीं हो रहा है.

नंद किशोर गुर्जर कहते हैं, “यदि जन प्रतिनिधि आम आदमी की सुनवाई नहीं करवा पाएंगे तो आगे चुनाव में नेता जनता को क्या जवाब देंगे?”

विधायक दीनानाथ भास्कर के आरोप?

दीनानाथ भास्कर भदोही से बीजेपी के विधायक हैं

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भदोही से विधायक दीनानाथ भास्कर ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के यूट्यूब चैनल टॉप सीक्रेट से बात करते हुए पुलिस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए.

कई शीर्ष अधिकारियों का नाम लेते हुए दीनानाथ भास्कर ने दावा किया, “रिश्वत न देने पर पुलिस ने लखनऊ के अधिकारियों के इशारों पर एक अभियुक्त पर गैंगस्टर की कार्रवाई की और जेल भेज दिया.”

सत्ताधारी बीजेपी के विधायक दीनानाथ भास्कर ने आरोप लगाया कि पुलिस पैसा न देने पर गैंगस्टर एक्ट लगा देती है. हालांकि उन्होंने अपने इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किया है और न ही बीबीसी हिंदी इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि करता है. उन्होंने इस कथित भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के नाम भी नहीं लिए.

बीबीसी हिंदी ने दीनानाथ भास्कर से कई बार संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं हो सकी.

दीनानाथ भास्कर के आरोपों पर यूपी पुलिस या सरकार के किसी प्रतिनिधि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

दीनानाथ भास्कर ने भ्रष्टाचार के मौखिक आरोप तो लगाए हैं लेकिन उन्होंने इस संबंध में कोई लिखित शिकायत नहीं की है.

भारतीय क़ानून के तहत, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के विकल्प मौजूद हैं.

कई विधायकों के एक जैसे आरोप

आशीष पटेल

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बीबीसी से बात करते हुए बीजेपी के तीन विधायकों ने एक जैसे ही आरोप लगाए.

एक विधायक ने नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, “इस समय पार्टी में कई विधायक ये महसूस कर रहे हैं कि शासन स्तर पर उनकी बात नहीं सुनी जा रही है. विधायकों में ये भावना बढ़ रही है कि मुख्यमंत्री चुनिंदा अधिकारियों के समूह के प्रभाव में काम कर रहे हैं. “

एक अन्य विधायक ने कहा, “ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री तक हमारी पहुंच नहीं है, समय मांगने पर मिल ही जाता है. लेकिन समस्या ये है कि हम अपनी बात ऊपर तक पहुंचा भी दें तो सुनवाई नहीं हो पाती है.”

वहीं एक विधायक ने कहा, “इस तरह की नाराज़गी हमेशा से नहीं हैं. पिछले साल डेढ़ साल के भीतर ही ये भावना बढ़ी है.”

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन पार्टी की उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहा था. बीजेपी 80 में से सिर्फ़ 36 सीटें ही जीत सकी थी.

इस प्रदर्शन की समीक्षा के दौरान, पार्टी के कई नेताओं ने शीर्ष स्तर पर ये बात रखी थी कि ज़मीनी स्तर पर अधिकारी जन प्रतिनिधियों को नज़रअंदाज़ करते हैं जिससे जनता में असंतोष बढ़ा है.

लोकसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के पदाधिकारियों और विधायकों से संपर्क बढ़ाया है.

लेकिन बावजूद इसके, एक बार फिर से विधायक राज्य सरकार के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं.

अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ आरोप लगाने के सवाल पर नंदकिशोर गुर्जर कहते हैं, “जो हमें दिख रहा है क्या हम उसके ख़िलाफ़ न बोलें, कल चुनाव लड़ने ज़मीन पर हम जाएंगे, अधिकारी नहीं.”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था में सुधार का दावा किया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते कुछ सालों में संदिग्ध अपराधियों के एनकाउंटर किए हैं. इन एनकाउंटर में कई संदिग्धों की मौत भी हुई है.

सरकार अपराध और भ्रष्टाचार पर समझौता न करने की नीति पर चलने का दावा करती है.

लेकिन अब बीजेपी के विधायकों के आरोपों ने अपनी ही सरकार के इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

ये निजी असंतोष है या सुनियोजित प्रयास?

योगी आदित्यनाथ

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ये पहली बार नहीं है जब बीजेपी के नेताओं ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है. लेकिन क्या कई विधायकों और नेताओं का एक ही समय पर सरकार के ख़िलाफ़ बोलना कोई संयोग है या फिर एक सुनियोजित प्रयास? इसे लेकर विश्लेषकों की अलग-अलग राय है.

पूर्व बीबीसी संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “विधायकों का ये विरोध अलग-अलग है, संगठित है या इसके पीछे किसी का उकसावा है ये तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन ये बात कही जाती रही है कि केंद्रीय गृह मंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच एक टकराव है. इसकी वजह ये सवाल भी है कि बीजेपी में मोदी के बाद कौन? लेकिन विधायकों का इस तरह एक साथ मुखर होना, इसके पीछे कोई योजना है, ये कहना बहुत मुश्किल है.”

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का मानना है कि बिना शह मिले विधायकों के लिए इस तरह से मुखर होना आसान नहीं हैं.

शरत प्रधान कहते हैं, “एक साथ विधायक बयान दे रहे हैं, असंतोष ज़ाहिर कर रहे हैं. ज़ाहिर है इन विधायकों को कहीं से शह मिली होगी. बहुत से लोग ये मानते हैं कि बीजेपी विधायकों को दिल्ली मुख्यालय से समर्थन मिला हो.”

वहीं जन मोर्चा की संपादक और वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता कहती हैं कि यूपी में विधायक मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ कोई विरोध करें, ऐसी संभावना कम हैं.

सुमन गुप्ता कहती हैं, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर विधायकों में भले ही नाराज़गी हो लेकिन उनकी ये हैसियत नहीं है कि वो विद्रोह कर दें. ऐसा नहीं है कि योगी आदित्यनाथ को ये समझ नहीं आ रहा होगा कि इन विधायकों को दिल्ली से शह मिली है. अगले साल डेढ़ साल बीजेपी में ये सवाल होगा कि मोदी के बाद कौन. उसे देखते हुए बीजेपी में एक आंतरिक राजनीति भी चल रही है. इस असंतोष के मुखर होने की एक वजह ये भी हो सकती है कि विधायकों को दिल्ली से शह मिली हो.”

हालांकि, बीबीसी से बात करते बग़ावती सुर अपनाने वाले एक विधायक ने कहा है कि उन्हें कहीं से कोई संकेत या निर्देश नहीं मिला है.

इस विधायक ने कहा, “यदि दिल्ली से संदेश मिला होता तो विरोध करने वाले विधायकों की संख्या और अधिक होती.”

इस विधायक का कहना था, “पार्टी के विधायक जब आपस में बात करते हैं तो सबकी एक जैसी राय होती है कि उनकी सरकार में सुनी नहीं जा रही है.”

अधिकारियों के बहाने सीधा सीएम पर निशाना?

योगी आदित्यनाथ

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तो क्या विधायक अधिकारियों का नाम लेकर सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साध रहे हैं?

शरत प्रधान कहते हैं, “विधायक ये कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ को अफ़सरों ने घेरा हुआ है. दरअसल वो सीधे योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधना चाहते हैं लेकिन ऐसा करने की उनमें हिम्मत नहीं हैं. ये कहना बिलकुल ग़लत है कि अफ़सर योगी आदित्यनाथ के प्रभाव के बाहर या मंशा के बाहर कोई काम कर लें.”

हालांकि रामदत्त त्रिपाठी ये मानते हैं कि विधायकों और मंत्रियों में अफ़सरशाही को लेकर भी असंतोष बढ़ रहा है.

रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “कई लोग एक साथ मुखर हुए हैं. इसकी पुरानी वजह है, बीजेपी के पार्टी सर्किल में, विधायकों में ये आम राय है कि यूपी सरकार में नौकरशाही हावी है, कई मंत्रियों का भी ये मानना है कि उनकी भी नहीं चलती है.”

विश्लेषकों का ये भी मानना है कि विधायकों की सबसे बड़ी चिंता ये है कि उन्हें आगे चुनावों में जनता के बीच जाना है और अगर वो जनता को अपना प्रभाव नहीं दिखा पाएंगे तो इससे आगे उन्हें दिक़्क़त होगी.

सुमन गुप्ता कहती हैं, “विधायकों को फिर से चुनाव में जाना है, यदि उन्हें ये महसूस होगा कि विधायकों या मंत्रियों की ही सुनवाई ही नहीं होगी तो वो ज़रूर बोलेंगे. ये सरकार के प्रति असंतोष से अधिक इस बात का असंतोष है कि विधायक जनता में अपनी छवि बनाए नहीं रख पा रहे हैं.”

क्या योगी आदित्यनाथ को हटा सकती है बीजेपी?

योगी आदित्यनाथ इस समय बीजेपी के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं. (फ़ाइल तस्वीर)

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ये सवाल कई बार उठ चुका है और इसे लेकर मीडिया में कई बार रिपोर्टें भी छप चुकी हैं. यदि पिछले उदाहरण देखें जाएं तो इसका सीधा जवाब है- नहीं.

लेकिन विश्लेषकों की इस सवाल पर अलग-अलग राय है.

शरत प्रधान का मानना है कि बीजेपी अगले कुछ महीनों में यूपी में नेतृत्व में बदलाव कर सकती है.

वो कहते हैं, “लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन के बाद से ही यूपी में नेतृत्व परिवर्तन का सवाल उठा था. लेकिन योगी आदित्यनाथ ने स्थिति संभाल ली. फिर उप-चुनाव में योगी ने बीजेपी को नौ में से सात सीटों पर जीत दिला दी. अब अयोध्या के मिल्कीपुर में उप-चुनाव है और कुंभ भी है. अगले कुछ महीनों में बीजेपी नेतृत्व यूपी को लेकर कोई निर्णय कर सकता है.”

लेकिन बीजेपी के लिए ये निर्णय लेना इतना भी आसान नहीं हैं. योगी आदित्यनाथ ने एक सशक्त हिंदूवादी नेता की छवि गढ़ी है. उनके समर्थक सिर्फ़ यूपी में ही नहीं बल्कि बाहरी राज्यों में भी हैं. अन्य राज्यों के चुनावों में बीजेपी उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में इस्तेमाल करती रही है.

सुमन गुप्ता कहती हैं, “बीजेपी के पास यूपी में योगी आदित्यनाथ का विकल्प नहीं हैं. भले ही बीजेपी नेतृत्व उन्हें बदलना चाहता है लेकिन ऐसा करना आसान नहीं हैं. योगी भविष्य में स्वंय को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में भी पेश कर रहे हैं और वो उसी दिशा में काम भी कर रहे हैं. ऐसे में, योगी की महत्वाकांक्षा से बीजेपी में ज़रूर कई लोग असहज हो रहे होंगे. लेकिन पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा पाएगी, ऐसा नहीं लगता.”

हालांकि, रामदत्त त्रिपाठी का मानना है कि यदि केंद्रीय नेतृत्व ये निर्णय ले लेगा कि यूपी में नेतृत्व बदलाव करना है तो इसे लागू भी कर दिया जाएगा.

त्रिपाठी कहते हैं, “बीजेपी और आरएसएस में कार्यकर्ताओं की निष्ठा किसी एक व्यक्ति के बजाए संगठन के साथ अधिक है. बीजेपी में जब किसी को हटाने का निर्णय ले लिया जाता है तब कार्यकर्ता उस व्यक्ति के नहीं, बल्कि संगठन के साथ ही रहते हैं.”

त्रिपाठी कहते हैं, “योगी आदित्यनाथ संगठन के व्यक्ति नहीं है, चाहें लोकसभा या फिर विधानसभा के टिकटों का वितरण रहा हो, इसमें योगी आदित्यनाथ का कोई बड़ा हाथ नहीं रहा है. ऐसे में यदि बीजेपी आला कमान योगी आदित्यनाथ के लिए कोई अन्य भूमिका तय करेगी तो इसके ख़िलाफ़ पार्टी में कोई बड़ी बग़ावत नहीं होगी.”

न बग़ावत और न ही इसका योगी पर कोई असर

2022 विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ

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क्या विधायकों के इस तरह से मुखर होने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कोई असर हो रहा होगा.

सुमन गुप्ता कहती हैं, “योगी आदित्यनाथ का काम करने का अपना एक अलग तरीक़ा है. उन पर इस तरह के बयानों का कोई ख़ास असर नहीं हो रहा होगा. वो भी ये समझ रहे होंगे कि ये कहां से और किसके इशारे पर हो रहा है.”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के कई शीर्ष नेताओं से मुलाक़ात की है.

मुख्यमंत्री प्रयागराज में आयोजित हो रहे कुंभ मेले का निमंत्रण देने खुद दिल्ली पहुंचे थे. विधायकों की बयानबाज़ी के बीच हुई इस मुलाक़ात के भी मायने निकाले जा रहे हैं.

विश्लेषक मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ सार्वजनिक रूप से हमेशा ये दिखाते हैं कि उनके और पार्टी नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक है.

क्या विधायकों की नाराज़गी का मुख्यमंत्री पर कोई असर होगा?

इस सवाल पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार में शामिल एक मंत्री ने बीबीसी से कहा, “न ये कोई विरोध है और न ही इसका कोई असर होगा. यूपी में महाकुंभ हो रहा है. जब ये महाकुंभ समाप्त होगा तो मुख्यमंत्री की छवि और विराट हो जाएगी.”

बीबीसी हिंदी ने इस रिपोर्ट के लिए बीजेपी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, कुछ प्रवक्ताओं, सरकार में शामिल मंत्रियों और अधिकारियों से उनका पक्ष जानने के लिए प्रयास किया. लेकिन अब तक किसी से जवाब नहीं मिल सका है.

SOURCE : BBC NEWS