Source :- BBC INDIA

सारांश

  • पहली बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करना कि युद्धविराम क़ायम रहे.
  • तीन चरणों में युद्धविराम, पहला चरण सबसे अहम
  • पश्चिमी देशों को डर कि 42 दिनों के पहले चरण के खत्म होते ही जंग फिर शुरू हो सकती है.
  • सीज़फ़ायर से एक सदी से भी अधिक पुराना इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष ख़त्म नहीं होगा.
इसराइल और हमास के बीच समझौते का जश्न मनाने सड़कों पर उतरे लोग

इमेज स्रोत, EPA

इसराइल और हमास के बीच सीज़फ़ायर पर बात बनना एक बड़ी उपलब्धि है. इसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था.

पिछले साल मई से ही इस समझौते की अलग-अलग रूप चर्चा रही है. समझौते में हुई देरी के लिए हमास और इसराइल ने एक-दूसरे पर दोष मढ़ा है.

सात अक्तूबर 2023 को हमास के हमलों के बाद इसराइल की जवाबी कार्रवाई ने ग़ज़ा को बर्बाद कर दिया है.

हमास के हमले में करीब 1200 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश इसराइली नागरिक थे. वहीं, अब तक ग़ज़ा में 20 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.

हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इसराइली हमलों में लगभग 50 हज़ार लोग मारे गए हैं. इनमें हमास के लड़ाके और आम लोग दोनों ही शामिल हैं.

लैंसेट मेडिकल जर्नल में हाल ही में छपे एक अध्ययन में कहा गया है कि ये संख्या असल में इससे कहीं अधिक हो सकती है.

बीबीसी
बीबीसी

समझौते की चुनौतियां

इसराइल और हमास के बीच समझौते के बाद ग़ज़ा पट्टी में लोगों ने कुछ इस तरह से खुशी ज़ाहिर की

इमेज स्रोत, EPA

लेकिन समझौते के बाद पहली बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करना है कि युद्धविराम कायम रहे.

पश्चिमी देशों के कई सीनियर राजनयिकों को डर है कि 42 दिनों का पहला चरण खत्म होते ही जंग फिर शुरू हो सकती है.

ग़ज़ा में छिड़े युद्ध के पूरे मध्य-पूर्व में बहुत गहरे परिणाम देखने को मिले.

हालांकि, कई लोगों ने आशंका जताई थी कि ये युद्ध पूरे क्षेत्र में फैल जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसका श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने लिया. लेकिन ग़ज़ा की जंग ने पूरे क्षेत्र में एक उथल-पुथल भरा माहौल तो पैदा कर दिया.

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री पर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने युद्ध अपराध का आरोप लगाया है.

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस भी दक्षिण अफ़्रीका की ओर से इसराइल पर जनसंहार का आरोप लगाने से जुड़े मामले की जांच कर रहा है.

लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने जैसे ही इस युद्ध में दखल दिया, उसे इसराइली हमले के ज़रिए कुचल दिया गया.

यही वो वजह थी जिससे सीरिया में बशर अल-असद के शासन का पतन हुआ.

ईरान और इसराइल ने एक-दूसरे पर सीधे हमले किए, जिससे ईरान कमज़ोर हुआ. इसके सहयोगियों और प्रॉक्सी का नेटवर्क जिसे ईरान ‘एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस’ कहता है वो भी पंगु हो गया है.

यमन में हूतियों ने यूरोप और एशिया के बीच लाल सागर से गुज़रने वाले अधिकांश मालवाहक जहाज़ों को रोक दिया है. ये देखना बाकी है कि क्या ग़ज़ा में युद्धविराम होने के बाद हूती विद्रोही हमलों को रोकने के अपने वादे को पूरा करेंगे.

जहां तक इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की बात है- ये स्थिति पहले से ज़्यादा कड़वाहट भरी है.

अगर किस्मत साथ दे तो इस युद्धविराम से हत्याएं रुक सकती हैं और इसराइली बंधकों, फ़लस्तीनी कैदियों और बंदियों को उनके परिवारों के पास वापस भेजा जा सकता है.

लेकिन इस सीज़फ़ायर से एक सदी से भी अधिक पुराना संघर्ष ख़त्म नहीं होगा.

प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा

SOURCE : BBC NEWS