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कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह बयान कि उनके प्रमाणपत्र में दर्ज उनकी उम्र वास्तविक आयु से 5 साल अधिक है, एक नई बहस को जन्म दे रहा है। 15 वर्षों से सत्ता की कुर्सी पर बैठीं ममता बनर्जी ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी इस तथाकथित उम्र की गड़बड़ी को कभी सुधरवाने की जहमत नहीं उठाई। यह मुद्दा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि आम नागरिकों के लिए सरकारी दस्तावेजों में छोटी-सी गलती भी कई बार बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देती है। चाहे वह पासपोर्ट बनवाना हो, सरकारी नौकरी पाना हो या किसी अन्य प्रशासनिक कार्य में प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल—किसी भी त्रुटि के कारण आम आदमी को लंबी कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

ममता बनर्जी ने अपने जन्मदिन के बारे में कहा, “मेरी जन्मतिथि तो बस सर्टिफिकेट में लिखवा दी गई थी। उस समय अस्पतालों में नहीं, बल्कि घरों में बच्चे पैदा होते थे। मैंने खुद अपनी उम्र, नाम, या सरनेम तय नहीं किया। लोग मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हैं, लेकिन यह मेरी असली जन्मतिथि नहीं है।” उनका यह बयान एक ओर पुरानी परंपराओं और साधनों की सीमाओं को इंगित करता है, लेकिन दूसरी ओर एक बड़े प्रशासनिक पद पर रहते हुए ऐसी गलती को नज़रअंदाज़ करना कई सवाल भी खड़े करता है। 

सवाल यह है कि अगर एक मुख्यमंत्री के प्रमाणपत्र में गड़बड़ी हो सकती है और वह इसे ठीक करवाने की आवश्यकता महसूस नहीं करतीं, तो क्या यह उन नागरिकों के लिए अन्याय नहीं है जिन्हें दस्तावेज़ों में मामूली गलतियों के कारण सरकारी कामों में परेशानी का सामना करना पड़ता है? एक ओर, आम जनता को हर दस्तावेज़ में सटीकता की जिम्मेदारी दी जाती है, और दूसरी ओर, राज्य की प्रमुख नेता स्वयं अपनी आयु को लेकर स्पष्ट नहीं हैं। दरअसल, उनके दस्तावेजों में ममता बनर्जी की जन्मतिथि 5 जनवरी, 1955 दर्ज है, जिसके मुताबिक़, उनकी उम्र 70 वर्ष होती है, लेकिन ममता बनर्जी का दावा है कि उनकी उम्र 65 साल ही है। उनका कहना है कि, प्रमाणपत्रों में उनकी उम्र 5 साल अधिक बताई गई है। लेकिन अब तो वे तथ्य देकर अपने प्रमाणपत्र को दुरुस्त करवा सकती हैं? तो क्यों नहीं करवा रहीं ? 

यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब चुनावी हलफनामों की बात आती है। क्या ममता बनर्जी चुनावी हलफनामे में वही जन्मतिथि दर्ज करती हैं जो उनके प्रमाणपत्र पर है? अगर ऐसा है, और वह जन्मतिथि गलत है, तो क्या यह चुनावी प्रक्रिया के नियमों का उल्लंघन नहीं है? एक चुनावी उम्मीदवार को अपनी पूरी जानकारी सटीक और सत्यापित रूप में प्रस्तुत करनी होती है। इसके अलावा, यह भी सवाल उठता है कि ममता बनर्जी की असली जन्मतिथि आखिर कहां दर्ज है। क्या यह किसी स्कूल प्रमाणपत्र में दर्ज है, या जन्म प्रमाणपत्र पर? यदि हां, तो इसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? 

इन सवालों के बीच, ममता बनर्जी का यह दावा कि वह अगले 10 वर्षों तक सक्रिय राजनीति में रहेंगी और पार्टी की कमान अपने हाथ में रखेंगी, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी की महत्वाकांक्षाओं पर भी एक स्पष्ट संकेत है। टीएमसी में भतीजे-चाची के बीच मतभेद की खबरें पहले भी सामने आती रही हैं, और अब ममता बनर्जी का यह बयान इन अटकलों को और हवा दे रहा है। 

भले ही ममता बनर्जी ने अपने जन्म प्रमाणपत्र की गड़बड़ी को एक साधारण सी बात बताने की कोशिश की हो, लेकिन एक मुख्यमंत्री के स्तर पर यह मुद्दा केवल उनकी व्यक्तिगत जानकारी तक सीमित नहीं रहता। यह उन सवालों को जन्म देता है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, प्रशासनिक पारदर्शिता, और आम नागरिकों के साथ समानता के सिद्धांतों से जुड़े हैं।

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