Source :- BBC INDIA
सोमवार 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर दोबारा शपथ लेकर एक बार फिर इतिहास बनाएंगे.
वह पहली बार साल 20 जनवरी 2017 को राष्ट्रपति बने थे. अब ट्रंप चार साल तक बाहर रहने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय में वापसी कर रहे हैं. ये इस सदी में ऐतिहासिक वापसी है.
हालाँकि वो ऐसा करने वाले दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं. ट्रंप से पहले यह करिश्मा ग्रोवर क्लीवलैंड के नाम था, जो पहली बार साल 1885 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने और 1889 में चुनाव हारने के बाद 1893 में उन्होंने दोबारा वापसी की थी.
‘कमबैक किंग’ के रूप में ट्रंप अपने स्वभाव के अनुसार अपने पद ग्रहण करने के समारोह को नाटकीय बनाने के लिए उसे भव्य बनाने की तैयारी कर रहे हैं, हालांकि कुछ लोग इसे उनका दिखावा भी कह सकते हैं.
राष्ट्रपति की वापसी में और रंग भरने की उम्मीद में ट्रंप के समारोह के लिए टेक क्षेत्र की कंपनियों ने करोड़ों डॉलर का दान किए हैं.
नतीजतन यह आयोजन भव्य और धूमधाम से होने की उम्मीद की जा रही है.
जॉइंट कांग्रेशनल कमेटी ऑन इनागुरल सेरेमनीज़ (जेसीसीआईसी) की ओर से आयोजित होने वाले इस समारोह की परंपरा 200 साल पुरानी है.
साल 1789 में न्यूयॉर्क सिटी में जॉर्ज वॉशिंगटन के शपथ ग्रहण समारोह के समय से ही यह शक्ति प्रदर्शन के साथ लोकतंत्र का मुज़ाहिरा करता है.
स्टार ट्रंप
ये सत्ता में वापसी कर रहे ट्रंप का साल हो सकता है.
ट्रंप के समारोह में आने वालों की जो सूची सार्वजनिक हुई है उसमें दुनिया के कुछ बड़े नेता, सहयोगी, दोस्ती का दिखावा करने वाले दुश्मन और धुर विरोधियों का मिलाजुला समूह शामिल है.
लेकिन राष्ट्रपति कार्यालय ने मेहमानों की कोई आधिकारिक सूची नहीं जारी की है. इस सूची को लेकर बहुत सारी अटकलें लगाई जा रही हैं.
इंडियाना यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के जाने माने प्रोफ़ेसर सुमित गांगुली को विदेशी मेहमानों की सूची उत्सुकता जगाने वाली दिखती है.
वो कहते हैं, “यह वास्तव में अतीत की परम्पराओं से वाक़ई बहुत हटकर है. पूरी संभावना है कि यह नव निर्वाचित राष्ट्रपति की विशिष्ट प्राथमिकताओं को दिखाता है.”
दक्षिण एशिया मामलों के एक्सपर्ट माइकल कुगेलमैन इस बात से सहमत हैं और इसे ‘न्यू प्रेसीडेंट’ (नई नज़ीर) बताते हैं, जोकि ट्रंप के मामले में अप्रत्याशित नहीं है.
उनके अनुसार, “विदेशी नेताओं से आने को कहना, उनके लिए बहुत असाधारण पहल है, लेकिन मुझे लगता है कि समारोह उनके लिए एक बड़ा दिन होने वाला है. सबका ध्यान उनपर ही होगा और अगर इसमें दुनिया के सबसे ताक़तवर नेताओं को भी शामिल कर लिया जाए तो ये समारोह और बड़ा हो जाएगा.”
सितारों से सजी महफिल
निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस समारोह की पुरानी परंपरा को फिर से ज़िंदा कर रहे हैं, जिसमें हारे हुए उम्मीदवार विजेताओं के साथ मंच साझा करेंगे.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबमा, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन भी समारोह का हिस्सा बनेंगे.
अपने विदाई भाषण में बाइडन ने चेतावनी दी थी कि अमेरिका चंद टेक अरबपतियों के दबदबे वाली ओलिगार्की (अल्पतंत्र) में तब्दील हो सकता है.
विडंबना है कि दुनिया के तीन सबसे अमीर टेक उद्योगपति- एलन मस्क, जेफ़ बेज़ोस और मार्क ज़ुकरबर्ग मेहमानों की सार्वजनिक सूची में हैं. उनके साथ गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुंदर पिचाई और एप्पल के टिम कुक भी हैं.
विदेशी नेताओं की गेस्ट लिस्ट धुर दक्षिणपंथी दोस्तों की ओर अधिक झुकी दिखती है. इस सूची में अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवीयर मिली और इटली की प्रधानमंत्री जियार्जिया मेलोनी हैं.
इस सूची में जर्मनी के अल्टरनेटिव फ़ॉर जर्मनी (एएफ़डी) पार्टी के टीनो श्रुपाला और ब्रिटेन की पॉपुलिस्ट पार्टी- ‘रिफ़ॉर्म पार्टी’ के नेता नाइजल फ़राज का नाम भी शामिल है.
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर देवेश कपूर विदेशी मामलों और भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों पर कई अकादमिक पेपर लिख चुके हैं.
विदेशी मेहमानों पर उनका कहना था, “आमंत्रित किए गए विदेशी मेहमानों की सूची को मैंने अभी मीडिया रिपोर्टों में देखा है, उनमें से अधिकांश दक्षिणपंथी नेता हैं.”
मोदी नहीं दिखेंगे
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित करने के ट्रंप के फ़ैसले ने कई लोगों को चौंकाया. शी ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे.
ट्रंप की प्रवक्ता कैरोलाइन लेविट के अनुसार, यह राष्ट्रपति का, ‘उन सभी देशों के साथ खुले संवाद की इच्छा को दिखाता है, चाहे वे विरोधी हों, प्रतिद्वंद्वी हों या सहयोगी.’
इसके उलट ट्रंप को कभी ‘क़रीबी दोस्त’ कहने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह का हिस्सा नहीं होंगे.
सवालु उठ रहा है कि ट्रंप ने एक ‘दुश्मन’ को क्यों बुलाया और एक दोस्त को क्यों नज़रअंदाज़ कर दिया?
सुमित गांगुली इस बात से बहुत हैरान नहीं हैं, “मैं मानता हूं कि यह अपने विरोधियों के साथ व्यक्तिगत कूटनीति में ट्रंप के भरोसे को दर्शाता है.”
“लेकिन इस मामले में उनका रिकॉर्ड वास्तविकता से बहुत दूर रहा है. आख़िरकार, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन के साथ तमाम तामझाम के बावजूद उनकी कोशिशों से कुछ भी नहीं निकला था.”
चीन को तरजीह
शी जिनपिंग को आमंत्रण पर मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ इनफ़ॉर्मेशन में प्रोफ़ेसर जोयोजीत पाल कहते हैं, “अमेरिका के एक पार्टनर के रूप में और ख़ासकर ट्रंप के लिए शी कहीं अधिक क़ीमती हैं.”
अपनी दलील के पक्ष में पाल कहते हैं, “क्योंकि चीन के साथ व्यापार का पूरी तरह ठप होना अमेरिका के लिए विनाशकारी होगा. इसकी तुलना में भारत के साथ ऐसा होने से अमेरिका के लिए सबसे बड़ा जोख़िम जेनेरिक दवाओं या हीरे के क्षेत्र में व्यापारिक संबंध टूटना होगा.”
“इन दोनों ही उद्योगों में, भारत अपने विदेशी मुद्रा राजस्व के लिए अमेरिकी आय पर बहुत निर्भर है.”
वैसे कई विश्लेषकों की राय है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में सबसे अधिक फ़ोकस में अंतरराष्ट्रीय मुद्दे रहने वाले हैं. इनमें इसराइल-हमास संघर्ष, रूस का यूक्रेन में युद्ध और दुनिया में बढ़ रहे चीनी प्रभाव को रोकना शामिल होगा.
प्रोफ़ेसर पाल मानते हैं कि अगले चार साल तक ट्रंप की बहुत सारी ऊर्जा संघर्षों के ईर्द गिर्द खर्च होगी, जैसे इसराइल-हमास संघर्ष, यूक्रेन में रूस की जंग और चीन को मात देना.
अमेरिका के कई विद्वान और टिप्पणीकार मानते हैं कि आने वाले महीनों और सालों में ट्रंप के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण अमेरिका-चीन रिश्ते से ही मिलने वाली है.
प्रोफ़ेसर देवेश कपूर कहते हैं, “शी को आमंत्रित करने के पीछे मुख्य कारण, संवाद की संभावना का संकेत देना था. चीन के साथ द्विपक्षीय संबंध बहुत संवेदनशील विषय है. इससे उलट भारत के साथ संबंध बेहतर स्थिति में है और इसपर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है- कम से कम फ़िलहाल नहीं.”
गेस्ट लिस्ट का आधार
वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति के समारोह में मेहमानों की सूची बनाने की ज़िम्मेदारी ज्वाइंट कांग्रेशनल कमेटी और ट्रंप की ट्रांजीशन टीम के पास थी. इसमें कूटनीतिक, रणनीतिक और वित्तीय मुद्दों को ध्यान में रखा गया है.
प्रोफ़ेसर पाल ने कहा, “समारोह के लिए मेहमानों के नाम तय करते हुए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की टीम और जॉइंट कांग्रेशनल कमेटी ऑन इनागुरल सेरेमनीज़ ने कई चीज़ों का ख़्याल रखा होगा. इन फ़ैसलों में मोटा चंदा देने वाले, राष्ट्रपति के सहयोगी और उनकी कोर टीम जितनी अहमियत रखती है, उतने ही विदेशी मेहमान भी.”
कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि सूची में मोदी का होना या ना होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना लगता है.
माइकल कुगेलमैन इस मुद्दे पर अधिक विश्लेषण न करने की सलाह देते हैं. उनका कहना है कि इस साल के अंत में क्वाड समिट के दौरान मोदी और ट्रंप की मुलाक़ात की संभावना है.
वो कहते हैं, “इस बात पर बढ़ा चढ़ा कर चर्चा नहीं करनी चाहिए कि मोदी को न्योता नहीं दिया गया. शी के अलावा और किसी को विशेष रूप से आमंत्रित नहीं किया गया है. जल्द ही मोदी और ट्रंप को मुलाक़ात का मौका मिलेगा, शायद इसी साल के अंत में भारत में क्वाड समिट के दौरान. तो इस अर्थ में यह बिन बात के हंगामा है.”
फिर भी कुछ विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि ट्रंप के इस फ़ैसले में उनके पहले कार्यकाल के दौरान भारत के साथ व्यापारिक विवादों पर बनी निराशा दिख रही है.
‘हाउडी मोदी!’ और ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे आयोजनों के बावजूद, ट्रंप को लग सकता है कि चीन के प्रभाव की काट करने में भारत पिछड़ रहा है.
हालांकि प्रोफ़ेसर सुमित गांगुली, मोदी की ग़ैरमौजूदगी पर थोड़े हैरान हैं.
वो कहते हैं, “यह ट्रंप और मोदी के संबंधों में ठंडापन दिखा सकता है.”
लेकिन प्रोफ़ेसर जोयजीत पाल कहते हैं, “कुल मिलाकर भारत के साथ रिश्तों में गर्मजोशी है, इसलिए ऐसा कुछ नहीं है कि जिसे ट्रंप को ठीक करने की ज़रूरत है या भारत के साथ कड़ा मोलभाव करना है.”
एक चर्चा ये भी है कि बीते सितंबर महीने में अमेरिकी यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के साथ मुलाक़ात को तरजीह नहीं दी थी और दोनों नेताओं की मुलाक़ात नहीं हुई थी.
पीएम मोदी को ना बुलाने की और क्या वजह?
कुगेलमैन कहते हैं, “यह सही है कि ट्रंप भूलते नहीं हैं. हो सकता है कि उन्होंने मन में गांठ बना ली हो और हम इससे इनकार नहीं कर सकते कि उन्होंने मोदी की ओर से नज़रअंदाज़ किया जाना महसूस किया, जब मोदी क्वाड समिट के लिए अमेरिका आए थे.”
“लेकिन मैं समझता हूं कि यह सिर्फ अटकलबाज़ी है. मुझे लगता है कि शपथ ग्रहण का मामला, भारत समेत किसी और देश की बजाय चीन को लेकर अधिक संबंधित है.”
“इसे मोदी या अन्य वैश्विक नेताओं को कोई संकेत देने के बजाय चीन को संकेत देने के रूप में देखा जाना चाहिए.”
रणनीतिक बदलाव
वैसे भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और चीन के उप राष्ट्रपति हान झेंग और अधिकांश देशों के राजदूत इस समारोह में शामिल होंगे.
इस लिहाज़ से देखें तो एक तरफ़ शी ने ट्रंप का न्योता ठुकरा दिया, तो दूसरी तरफ़ इस साल के अंत में होने वाली क्वाड समिट के दौरान मोदी के पास ट्रंप के साथ संबंध सुधारने का पर्याप्त मौका होगा.
जानकारों के बीच इस बात पर लगभग आम सहमति है कि विदेशी नेताओं को आमंत्रित करना, ख़ासकर दक्षिणपंथी लोकलुभावन रुझान वाले नेताओं को, यह ट्रंप के कूटनीतिक शैली में एक बदलाव का संकेत है.
यह ऐसे नेताओं से गठबंधन बनाने का संकेत है जिनकी विचारधारा ट्रंप से मेल खाती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS