Source :- NEWSTRACK

मुंबई: मुंबई में बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान के घर पर हुए हमले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। आरोपी शरीफुल इस्लाम के फिंगरप्रिंट, सैफ के घर से मिले 19 फिंगरप्रिंट्स से मेल खाते हैं। पुलिस ने शरीफुल को सोमवार रात घटनास्थल पर ले जाकर अपराध का नाट्य रूपांतरण कराया। इस दौरान उसकी हरकतें और बयान उसकी आपराधिक मंशा को साफ दर्शा रहे थे। 

शरीफुल इस्लाम की पहचान एक बांग्लादेशी घुसपैठिए के रूप में हुई है, जो भारत में फर्जी नाम ‘विजय दास’ से रह रहा था। जांच में पता चला कि उसने फर्जी पहचान के सहारे सिम कार्ड तक हासिल कर लिया था। मुंबई पुलिस को उसकी बांग्लादेशी नागरिकता के पुख्ता दस्तावेज भी मिले हैं। इससे पहले वह पश्चिम बंगाल और मुंबई में अलग-अलग स्थानों पर घूमता रहा और काम करता रहा। चौंकाने वाली बात यह है कि शरीफुल इस्लाम बांग्लादेश में कुश्ती का खिलाड़ी था और नदी के रास्ते भारत में घुसा। उसने न केवल सैफ अली खान के घर पर हमला किया, बल्कि उसके बाद एक और घर में भी घुसपैठ की। उसकी ये हरकतें न केवल उसकी आपराधिक मानसिकता दिखाती हैं, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती हैं कि ऐसे घुसपैठियों को रोकने के लिए अब तक क्या ठोस कदम उठाए गए हैं?

यह मामला उन तथाकथित उदारवादियों के लिए एक चेतावनी है, जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और अवैध घुसपैठियों के खिलाफ बनाए गए कानूनों का विरोध करते हैं। सैफ अली खान जैसे मशहूर अभिनेता के घर पर हुए इस हमले ने यह साबित कर दिया है कि अवैध घुसपैठिए न केवल देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि आम नागरिकों की जानमाल को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अब सवाल यह है कि क्या बॉलीवुड लॉबी और तथाकथित सेक्युलर विचारधारा के लोग इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ेंगे? क्या वे अब भी घुसपैठियों को समर्थन देने वाले अपने रुख पर कायम रहेंगे? यह हमला सिर्फ एक अभिनेता पर नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और समाज पर एक सीधा प्रहार है। 

शरीफुल इस्लाम जैसे लोग सिर्फ एक नाम हैं, लेकिन यह समस्या कहीं ज्यादा गहरी और खतरनाक है। घुसपैठिए न केवल स्थानीय संसाधनों पर बोझ डालते हैं, बल्कि आपराधिक गतिविधियों में भी शामिल हो जाते हैं। यह मामला इस बात का जीता-जागता सबूत है कि ऐसे लोगों को रोकने के लिए NRC जैसे कानून कितने जरूरी हैं। मुंबई पुलिस की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या अब घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कानून और उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए कदम नहीं उठाए जाने चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल—क्या अब भी उन लोगों की आंखें खुलेंगी, जो हर मुद्दे को राजनीतिक या सांप्रदायिक रंग देकर इस देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हैं? 

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