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यूरोपीय देश स्कॉटलैंड की संसद में पहली बार हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते भेदभाव और हाशिए पर डाले जाने को लेकर एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पेश किया गया है। एल्बा पार्टी की सांसद ऐश रीगन ने यह प्रस्ताव ग्लासगो की गांधीवादी शांति संस्था की रिपोर्ट के आधार पर पेश किया है। यह कदम न केवल स्कॉटलैंड बल्कि पूरे यूरोपीय संघ में अपनी तरह का पहला प्रस्ताव 0है।

यह प्रस्ताव स्कॉटलैंड के हिंदू समुदाय के सामने आ रही चुनौतियों, जैसे कि धार्मिक नफरत, मंदिरों पर हमले और सांस्कृतिक असहिष्णुता को प्रमुखता से उजागर करता है।

प्रस्ताव में क्या है?

स्कॉटिश संसद ने गांधीवादी शांति संस्था के कार्यों की सराहना की है। प्रस्ताव में ‘हिंदूफोबिया इन स्कॉटलैंड’ रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि किस तरह से हिंदू समुदाय को भेदभाव, बहिष्करण और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। यह प्रस्ताव अंतर-धार्मिक संवाद, सामाजिक समरसता और विविधता को बढ़ावा देने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की अपील करता है।

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क्या कहती है रिपोर्ट?

यह रिपोर्ट स्कॉटलैंड में हिंदू समुदाय पर केंद्रित पहली व्यापक अध्ययन है। इसके अनुसार, 5.4 मिलियन की जनसंख्या वाले स्कॉटलैंड में हिंदुओं की संख्या महज 0.3% है और इस छोटे समुदाय को असमानता, मंदिरों पर हमले, जातिगत टिप्पणियां और दुर्व्यवहार जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भारतीय मूल के नेताओं की प्रतिक्रिया

सरकार द्वारा पेश किए गए इस बिल को लेकर भारतीय मूल के नेताओं की प्रतिक्रिया आई है। भारतीय काउंसिल ऑफ स्कॉटलैंड के अध्यक्ष नील लाल ने कहा, “जब मंदिरों पर हमला होता है या हिंदू परिवारों पर फब्तियां कसी जाती हैं, तो यह केवल समुदाय पर हमला नहीं होता, बल्कि यह स्कॉटलैंड के सहिष्णुता मूल्यों पर आघात होता है।” गांधीवादी संस्था ने इसे “धार्मिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम” बताया है।

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