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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की हत्याएं और अत्याचार के बाद अब महिलाओं पर सख्ती की मांग तेज हो रही है। धार्मिक दलों के प्रभावशाली गठबंधन ने महिलाओं से जुड़े सरकारी आयोग को समाप्त करने की मांग की है। यह देश में इस्लामी सोच पर आधारित राजनीति के उभार का नया संकेत माना जा रहा है, खासकर तब जब लंबे समय तक धार्मिक गतिविधियों पर रोक रही थी। महिला आयोग शेख हसीना के शासन के दौरान स्थापित प्रणालियों में सुधार के प्रयासों का हिस्सा है। अगस्त 2024 में छात्रों के नेतृत्व वाले बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों ने हसीना सरकार को उखाड़ फेंका था।

क्या है मामला?

शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में कट्टर धार्मिक संगठनों को कड़ा जवाब देते हुए महिलाओं के अधिकारों को बढ़ाने के लिए एक सरकारी आयोग बनाया था। अब उनके हटने के बाद धार्मिक संगठन फिर से ताकत में आ रहे हैं और महिला अधिकारों जैसे सुधारों का विरोध कर रहे हैं।

इस आयोग ने सिफारिश की थी महिलाओं के साथ भेदभाव खत्म किया जाए, मुस्लिम पर्सनल लॉ की जगह समान नागरिक कानून लाया जाए, ताकि विवाह, तलाक, विरासत जैसे मामलों में पुरुष और महिला को समान अधिकार मिलें।

अब, धार्मिक दल जैसे हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी इस आयोग के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह इस्लाम के खिलाफ है और “पश्चिमी विचारधारा” को थोपने की कोशिश है।

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महिला आयोग के खिलाफ धार्मिक संगठन

बांग्लादेश में धार्मिक मदरसों के प्रमुख मंच हिफाजत-ए-इस्लाम ने महिलाओं के अधिकारों में सुधार की सिफारिश को रद्द करते हुए “महिला मामलों में सुधार आयोग” को पूरी तरह से समाप्त करने की मांग की है। हिफाजत के वरिष्ठ नेता अजीज़ुल हक इस्लामाबादी ने कहा, “समानता की अवधारणा एक पश्चिमी विचारधारा है। यह आयोग मुस्लिम पारिवारिक कानून की जगह समान नागरिक संहिता की सिफारिश कर रहा है, जो इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ है।”

जमात-ए-इस्लामी ने भी उठाई आवाज

देश की सबसे बड़ी धार्मिक राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने भी आयोग की सिफारिशों को तुरंत रद्द करने की मांग की है। पार्टी के महासचिव मियां गोलाम परवार ने कहा, “महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता स्थापित करने की सिफारिश इस्लामी विचारधारा को विकृत करने का दुष्प्रचार है।” मोहम्मद यूनुस ने 19 अप्रैल को आयोग की सिफारिशें प्रस्तुत होने के बाद कहा था, “दुनियाभर की महिलाएं हमारी ओर देख रही हैं। हमें आगे बढ़ना ही होगा।”

शेख हसीना पर निशाना

यह आयोग दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सख्त नीतियों के बाद शुरू हुए सुधारों का हिस्सा था। हसीना की सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघनों के गंभीर आरोप लगे थे, वो अब भारत निर्वासन में हैं और ढाका लौटने से इनकार कर रही हैं। उनके खिलाफ सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की हत्या के मामलों में अपराधों का मुकदमा चल रहा है।

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