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लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों (रिटायर्ड)
पाकिस्तान के साथ तनातनी के बीच भारत सरकार ने सात मई को पूरे देश में मॉक ड्रिल करने का फैसला किया है। इस बीच रिटार्यड जनरल ने समझाया कि मॉक ड्रिल, ब्लैक आउट और इवैक्युएशन क्या है और इससे आम लोगों को घबराने की जरूरत क्यों नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले बॉर्डर एरिया में ऐसी मॉक ड्रिल हर कभी हुआ करती थीं। इजराइल में भी अभी भी रोजाना ऐसी मॉक ड्रिल होती हैं। पाकिस्तान की हकीकत का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पास न तो इतना पैसा है और न ही इतने हथियार हैं कि वह हर घर पर हमला कर सके।
मॉक ड्रिल को लेकर लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों (रिटायर्ड) ने कहा, “सीमावर्ती क्षेत्रों में पहले इस तरह की मॉक ड्रिल बहुत आम बात थी। 1971 के युद्ध के दौरान मैं अमृतसर में एक युवा छात्र था। हमने ये सभी मॉक ड्रिल की थीं। बाद में मै फिरोजपुर में पढ़ रहा था, वहां भी ये मॉक ड्रिल होती थीं। यह सिर्फ नागरिकों के फायदे के लिए और उन्हें जागरूक करने के लिए की जाती हैं। अगर कोई कार्रवाई होती है, तो नागरिक खुद को बचा सकें।”
क्या है ब्लैकआउट?
रिटायर्ड जनरल ने कहा “घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान हर घर पर हमला करेगा, उसके पास इसके लिए पैसे या गोला-बारूद नहीं है। आराम से मॉक ड्रिल करें, जहां तक ब्लैकआउट की बात है, आपको बस अपनी खिड़कियों पर काली चादरें लगानी हैं और काले पर्दे लगाने हैं। ताकि अगर घर के अंदर बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं या किसी अन्य वजह से थोड़ी भी रोशनी हो, तो ऊपर उड़ रहे विमान उसे न देख सकें। यह एक नियमित बात है, यह एक सामान्य बात है। अधिकारियों के साथ सहयोग करें और अगर आप इन अभ्यासों का सही तरीके से पालन करते हैं, तो किसी भी नागरिक को कुछ नहीं होने वाला है।” उन्होंने यह भी साफ किया कि नए जमाने के विमान आधुनिक यंत्रों के जरिए निशाना तय करते हैं। ऐसे में पायलट को कुछ भी देखने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, पाकिस्तान के पास जो पुराने विमान हैं, उनसे हमला करने के लिए पायलट को नीचे देखना पड़ता है। अगर पाकिस्तान पुराने विमानों से हमला करता है, तो खुद को बचाने के लिए ब्लैकाउट जरूरी है।
क्या है इवैक्युएशन?
रिटायर्ड जनरल ने बताया कि अगर दोनों देशों की सेनाएं आपस में भिड़ती हैं तो आर्मी के जवान अपने टैंक और वाहनों के साथ बॉर्डर की तरफ बढ़ते हैं। वहीं, सीमा के किनारे बसे इलाकों के लोग अंदर की तरफ सुरक्षित जगहों पर जाते हैं। आर्मी के जाने के रास्ते अलग होते हैं और आम नागरिकों के लौटने के रास्ते अलग होते हैं। ऐसी स्थिति न बने कि एक ही पुल पर एक तरफ से नागरिक लौट रहे हैं और दूसरी तरफ से सेना के जवान आ रहे हैं। इस वजह से इवैक्युएशन की ड्रिल की जाती है। (इनपुट- एएनआई)
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