Source :- NEWS18
Last Updated:May 18, 2025, 20:46 IST
Tips to store wheat: उत्तराखंड के पहाड़ी जिले बागेश्वर में पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों का अनूठा मेल देखने को मिलता है. यहां के ग्रामीण आज भी कई ऐसे घरेलू और जैविक उपाय अपनाते हैं, जो विज्ञान से मेल खात…और पढ़ें
बागेश्वर के स्थानीय जानकार किशन मलड़ा ने लोकल 18 को बताया कि हर साल जब बागेश्वर के गांवों में गेहूं की फसल कटाई और मड़ाई के बाद घरों में पहुंचती है, तो ग्रामीण इसे सालभर के उपयोग के लिए सहेजते हैं.

चूंकि पहाड़ी इलाकों में मौसम में नमी और ठंडक अधिक होती है, इसलिए अनाज में कीड़ा लगने की आशंका भी बनी रहती है.ऐसे में यहां के लोग गेहूं को प्लास्टिक या लोहे के ड्रम, टीन या पीतल के बड़े बर्तनों में स्टोर करते हैं.

लेकिन उससे पहले वे एक खास जैविक तकनीक अपनाते हैं. बर्तन के निचले हिस्से में अखरोट के हरे पत्ते बिछा देते हैं, फिर गेहूं डालते हैं, और ऊपर की सतह पर भी एक परत अखरोट के पत्तों की लगाई जाती है.

अखरोट के हरे पत्तों से एक विशेष गंध निकलती है, जो कीटों और कीड़ों को गेहूं से दूर रखती है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह बात सही मानी गई है, क्योंकि अखरोट के पत्तों में नैचुरल कीटनाशक तत्व पाए जाते हैं.

ये तत्व न केवल कीड़ों को भगाते हैं, बल्कि नमी से भी गेहूं की रक्षा करते हैं. यह परंपरागत तरीका पीढ़ियों से चला आ रहा है और आज भी ग्रामीण परिवारों में इसे पूरी निष्ठा से अपनाया जाता है.

न सिर्फ ग्रामीण इलाकों में, बल्कि बागेश्वर के शहरी घरों में भी लोग अब इस पुराने और प्राकृतिक उपाय की ओर लौट रहे हैं, खासकर जब कीटनाशकों के दुष्प्रभावों की जानकारी बढ़ रही है.

बागेश्वर की यह पद्धति न केवल अनाज को सुरक्षित रखने का माध्यम है, बल्कि यह स्थानीय ज्ञान और जैविक जीवनशैली का प्रतीक भी है. प्रशासन और कृषि विभाग अगर इस तरह के पारंपरिक तरीकों को प्रोत्साहन दे, तो यह दूसरे क्षेत्रों के लिए भी मिसाल बन सकते हैं.
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