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चेन्नई: IIT मद्रास के डायरेक्टर प्रोफेसर वी. कामकोटी ने हाल ही में गौमूत्र के औषधीय गुणों की सराहना करते हुए अपने विचार रखे। उन्होंने इसे प्राकृतिक चिकित्सा का बेहतरीन स्रोत बताते हुए कहा कि इसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, और पाचन को सुधारने वाले गुण मौजूद हैं। उनके अनुसार, गौमूत्र पेट की समस्याओं और बुखार जैसी बीमारियों के इलाज में प्रभावी हो सकता है। प्रोफेसर कामकोटी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि एक साधु का बुखार गौमूत्र के उपयोग से ठीक हुआ। यह बयान उन्होंने चेन्नई में पोंगल उत्सव के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में दिया।  

यह बात गौर करने लायक है कि जब एक प्रतिष्ठित संस्थान के निदेशक, जो विज्ञान और शोध के क्षेत्र में गहरी समझ रखते हैं, किसी विषय पर बयान देते हैं, तो वह केवल व्यक्तिगत विश्वास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होता है। प्रोफेसर कामकोटी ने अपने वक्तव्य में प्राकृतिक खेती और जैविक उर्वरकों की वकालत करते हुए कहा कि हमें रासायनिक उर्वरकों से बचना चाहिए और देशी गायों की नस्लों को संरक्षित करना चाहिए। यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर होगा, बल्कि मानव स्वास्थ्य और कृषि के लिए भी लाभदायक साबित होगा।  

प्रोफेसर कामकोटी के इस बयान के बाद, डीएमके और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे “झूठा विज्ञान” करार दिया, जबकि डीएमके के नेताओं ने इसे शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने का प्रयास बताया। पेरियार समर्थक संगठनों ने तो यहां तक कह दिया कि प्रोफेसर को अपने बयान पर माफी मांगनी चाहिए। यहां सवाल यह उठता है कि अगर यही प्रोफेसर किसी अन्य धर्म से जुड़ी परंपरा या मान्यता की तारीफ करते, तो क्या कांग्रेस और डीएमके की प्रतिक्रिया इतनी ही कड़ी होती? यह राजनीतिक दल, जो खुद को सेक्युलर कहते हैं, बहुसंख्यक समुदाय की मान्यताओं को लेकर इतना असहिष्णु क्यों हो जाते हैं?  

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में गौमूत्र जैसे विषयों का राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मज़ाक बनाया जाता है। जबकि अमेरिका जैसे देशों ने गौमूत्र के औषधीय गुणों पर पेटेंट हासिल किया है और इसे शोध के लिए प्रोत्साहित किया है। यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि भारत में वोटबैंक की राजनीति के चलते धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को साजिशन अपमानित किया जा रहा है।  

गौर करने वाली बात यह है कि पुलवामा हमले के दौरान आतंकी आदिल अहमद डार ने भी भारतीयों को “गौमूत्र पीने वाले” कहकर अपमानित किया था। आज वही भाषा कांग्रेस और डीएमके के कुछ नेता भी बोलते नजर आ रहे हैं। यह शर्मनाक है कि किसी वैज्ञानिक या धार्मिक मान्यता पर बिना तथ्यों के हमला किया जाए।  

गौमूत्र पर हुई कई रिसर्च में इसके औषधीय गुणों को साबित किया गया है। इसमें पोटेशियम, नाइट्रोजन और कई सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो न केवल खेती में उपयोगी हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हैं। आयुर्वेद में गौमूत्र का प्राचीन काल से उल्लेख है। इसके बावजूद इसे एक गाली का रूप दे दिया गया है, जो धार्मिक भावनाओं को आहत करने का माध्यम बन चुका है।  

तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने प्रोफेसर कामकोटी का बचाव करते हुए कहा कि उनके बयान को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर कामकोटी एक सम्मानित वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने सरकारी एजेंसियों के साथ काम किया है और उनका योगदान तमिलनाडु के लिए गर्व की बात है। यह घटना दिखाती है कि भारत में किसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी राजनीतिक विवाद में घसीटा जा सकता है। सवाल यह है कि क्या बहुसंख्यक समुदाय से जुड़ी मान्यताओं को हमेशा उपहास का पात्र बनाना उचित है?  

गौमूत्र के औषधीय गुणों को लेकर विवाद एक बड़े मुद्दे की ओर इशारा करता है। यह न केवल विज्ञान और राजनीति के बीच टकराव है, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता का भी उदाहरण है। यह समय है कि भारतीय समाज तथ्यों और शोध पर आधारित निष्कर्षों को महत्व दे, न कि राजनीतिक एजेंडे पर। जब दुनिया भारत की प्राचीन परंपराओं को सराह रही है, तो हमें खुद उनका सम्मान करना सीखना चाहिए। गौमूत्र पर आधारित शोध को मज़ाक उड़ाने के बजाय प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि इसमें न केवल भारत की सांस्कृतिक जड़ों का सम्मान है, बल्कि भविष्य के लिए संभावनाओं का भी खजाना है।  

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