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नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) विधेयक-2024 पर संसद की संयुक्त समिति विचार-विमर्श के अंतिम दौर में है। समिति ने विधेयक के 44 संशोधनों पर चर्चा के लिए 24 और 25 जनवरी को बैठक निर्धारित की है। सदस्यों को अपने संशोधन प्रस्तुत करने के लिए 22 जनवरी तक का समय दिया गया है। केंद्र सरकार बजट सत्र में इस विधेयक को पारित कराने की तैयारी कर चुकी है।
यह विधेयक कांग्रेस सरकार के समय बनाए गए वक्फ अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव करता है। मौजूदा कानून वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां देता है, जिसके तहत वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है। पीड़ित व्यक्ति को न्याय के लिए केवल वक्फ ट्रिब्यूनल का ही दरवाजा खटखटाना पड़ता है। अदालतें और सरकारें इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। इस प्रक्रिया में अक्सर जमीन हड़पने जैसी शिकायतें सामने आती हैं, जहां पीड़ित को उन्हीं के सामने अपील करनी पड़ती है जिन्होंने जमीन पर दावा किया हो।
मोदी सरकार ने यह विधेयक इसलिए पेश किया है ताकि पीड़ित व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार मिले और वह अदालत में अपनी बात रख सके। इस बदलाव को वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस और कुछ अन्य दल, इस संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं। विपक्ष इसे मुसलमानों के खिलाफ कदम बताने की कोशिश कर रहा है और इसके जरिए एक नया नैरेटिव बनाने का प्रयास कर रहा है। विपक्ष का तर्क है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में दखल देने की कोशिश है।
विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा ने अपने सहयोगी दलों से संपर्क किया है। जद (यू) के नेता राजीव रंजन सिंह ने लोकसभा में विधेयक के पक्ष में बयान देते हुए कहा था कि इसका मकसद वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना है। वहीं, एनडीए की सहयोगी टीडीपी ने विधेयक पर आपत्ति जताते हुए इसे संयुक्त समिति को भेजने की मांग की थी।
संयुक्त संसदीय समिति अब तक 13 राज्यों के वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुकी है। समिति ने दिल्ली में 34 बैठकें आयोजित की हैं और वर्तमान में लखनऊ में उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड से चर्चा कर रही है। कुछ सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा करने की मांग की थी, लेकिन व्यस्त कार्यक्रम के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका।
यह विधेयक संविधान संशोधन के दायरे में नहीं आता, इसलिए इसे पारित कराने के लिए सिर्फ साधारण बहुमत की आवश्यकता है। सरकार इस विधेयक को जल्द से जल्द पारित कराना चाहती है, खासकर इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले। हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस विधेयक को रोकने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। अब देखना होगा कि सरकार इसे पारित कराने में सफल होती है या नहीं। आने वाले समय में इस विधेयक के प्रभाव और राजनीति पर इसके असर का आकलन किया जा सकेगा।
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