Source :- LIVE HINDUSTAN

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है। इसके साथ ही ट्रंप एक के बाद एक धड़ाधड़ फैसले भी लेते जा रहे हैं। इनमें एक बड़ा फैसला है अमेरिका का डब्लूएचओ से बाहर निकलना। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ ट्रंप के इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह भविष्य में अमेरिका के लिए मुश्किल खड़ी करेगा और अगली महामारी से लड़ाई में मुश्किल भी आएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर जाने का ट्रंप का यह फैसला बहुत चौंकाने वाला नहीं है। वह साल 2020 से ही इस एजेंसी पर हमलावर रहे हैं। तब उन्होंने कोरोना वायरस पर डब्लूएचओ की अप्रोच की आलोचना की थी। इतना ही नहीं, ट्रंप ने अमेरिकी फंडिंग रोकने तक की धमकी दे डाली थी। डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा है कि वह एक बार फिर देश को ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकालेंगे। उनकी इस घोषणा से वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने के लिए दुनिया भर के प्रयासों को झटका लगेगा और एक बार फिर अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगियों से दूर हो जाएगा।

अमेरिका के डब्लूएचओ छोड़ने के कई नुकसान भी होंगे। इनमें से एक यह है कि इस फैसले के बाद देश की रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के पास एजेंसी द्वारा जारी होने वाला वैश्विक आंकड़ा नहीं रहेगा। साल 2020 में जब चीन ने कोरोना वायरस का जेनेटिक सीक्वेंस किया था तो उसने यह जानकारी डब्लूएचओ को दी थी। इसके बाद इस जानकारी को अन्य देशों के साथ साझा किया गया था। हाल ही में डब्लूएचओ, महामारी संधि को लेकर अमेरिका में कंजर्वेटिव्स के निशाने पर आ गया था। इस संधि का मकसद महामारी के दौरान तैयारी, बचाव और बीमारी फैलने के आंकड़ों की जानकारी साझा करना और वैक्सीन के लिए स्थानीय निर्माताओं के साथ मिलकर सप्लाई चेन बनाना था। हालांकि पिछले साल यह बातचीत बंद गई थी, क्योंकि कुछ रिपब्लिकन सांसदों ने इसे अमेरिकी संप्रभुता के लिए खतरा बताया था।

डब्लूएचओ यूनाइटेड नेशंस की एजेंसी है, जिसकी स्थापना साल 1948 में अमेरिका की मदद से हुई थी। इसकी वेबसाइट के अनुसार, इसका मिशन हमारे समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना है। साथ ही दुनिया में लोगों की भलाई के लिए काम करना है। इसमें गाजा जैसे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में सहायता पहुंचाना और जीका, इबोला और कोविड-19 जैसी उभरती महामारियों पर नजर रखना शामिल है। डब्ल्यूएचओ का वार्षिक बजट लगभग 6.8 बिलियन डॉलर है। इसमें अमेरिका ने आम तौर पर एक बड़े हिस्से का योगदान दिया है।

जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के स्वास्थ्य कानून विशेषज्ञ लॉरेंस ओ गोस्टिन ने संधि पर बातचीत करने में मदद की थी। उन्होंने कहाकि डब्ल्यूएचओ से अमेरिका का हटना, आम लोगों के लिए ठीक नहीं होगा। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बड़ा आघात होगा। उन्होंने कहा कि हालांकि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लेगा। इससे पहले अमेरिका को एक साल का नोटिस देना होगा। साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए संगठन को अपने वित्तीय दायित्वों का भुगतान भी करना होगा।

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