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नई दिल्ली: अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपने बंद होने का ऐलान कर दिया है। कंपनी के संस्थापक नाथन एंडरसन ने खुद यह जानकारी दी, और उनका कहना था कि यह निर्णय काफी सोच-समझ कर लिया गया है। हालांकि, एंडरसन ने हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने के पीछे का कोई विशेष कारण नहीं बताया। 2017 में स्थापित इस कंपनी की रिपोर्टों ने भारतीय कारोबारियों और कंपनियों पर कई बड़े आरोप लगाए थे, जिसमें सबसे प्रमुख था अडाणी ग्रुप पर लगाया गया आरोप।

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने अगस्त 2024 में अडाणी ग्रुप के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए थे, जिनमें शेयरों की कीमतों में हेरफेर करने का आरोप भी शामिल था। इसके बाद, अडाणी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई, जिससे कई निवेशकों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी एक ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है।

भारत में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद राजनीतिक हलकों में तूफान सा मच गया था। पूरी भारतीय विपक्ष ने इस रिपोर्ट को हाथों-हाथ लिया और इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी की तस्वीरें लेकर प्रदर्शन किया। विपक्षी नेताओं ने सरकार से जवाब मांगा कि उनके और अडानी के बीच क्या संबंध हैं? विपक्ष को हिंडनबर्ग पर काफी भरोसा था, रिपोर्ट भी संसद सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले ही आई थी, सो मुद्दा मिल चुका था। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के कारण भारतीय संसद कई दिनों तक ठप रही, और कई महत्वपूर्ण कामकाज रोक दिए गए। यह स्थिति ऐसी थी कि सरकार और विपक्ष के बीच तकरार बढ़ गई, जिससे संसद की कार्यवाही पूरी तरह प्रभावित हुई।

विपक्ष का कहना था कि अडाणी ग्रुप को सरकार का संरक्षण प्राप्त है और सरकार अडानी पर कार्रवाई नहीं कर रही। विपक्ष को हिंडनबर्ग के आरोपों पर पूरा भरोसा था, और मामला देश की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ था। जिसके बाद सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में भेज दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाया गया, और हिंडनबर्ग के आरोपों को खारिज कर दिया गया। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग ने जिन आरोपों को उठाया था, उनका कोई ठोस आधार नहीं था।

अब, जब नाथन एंडरसन ने हिंडनबर्ग रिसर्च को बंद करने का ऐलान किया, तो यह स्थिति और भी दिलचस्प हो गई है। एंडरसन ने अपने बयान में कहा कि यह निर्णय परिवार, दोस्तों और अपनी टीम से लंबी बातचीत के बाद लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कंपनी को बंद करने का कारण कोई बड़ा व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, बल्कि उन्होंने इसे अपनी संतुष्टि और शांति के लिए किया है। एंडरसन का कहना था कि हिंडनबर्ग को बंद करने के बाद वह अपने परिवार के साथ समय बिताने, अपनी रुचियों को पूरा करने और अपनी टीम को आगे बढ़ाने की योजना पर ध्यान केंद्रित करेंगे। यह बंद होना निश्चित रूप से कई सवालों को जन्म देता है, खासकर उस रिपोर्ट की वजह से जो भारत में इतने बड़े राजनीतिक और आर्थिक हलचल का कारण बनी।

जब हिंडनबर्ग ने अडाणी ग्रुप पर आरोप लगाए थे, तब इसे भारत के निवेशकों के लिए एक बड़ा झटका माना गया था। इसके परिणामस्वरूप भारतीय शेयर बाजार में एक बड़ी गिरावट आई थी। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का असर सिर्फ अडाणी ग्रुप पर ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय बाजार पर पड़ा। निवेशकों ने भारी नुकसान उठाया, और उनका विश्वास बाजार से हिल गया। हालांकि अडाणी ग्रुप ने इन आरोपों का खंडन किया और बाद में अपने नुकसान की भरपाई भी की, लेकिन इस घटनाक्रम ने निवेशकों के मन में संदेह पैदा कर दिया।

अब सवाल उठता है कि इन ऊलजलूल आरोपों और नेताओं द्वारा इस रिपोर्ट को बढ़ावा देने के कारण जो नुकसान भारतीय निवेशकों को हुआ, उसकी भरपाई कौन करेगा? हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने के बाद यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। एक विदेशी कंपनी ने बिना ठोस साक्ष्य के किसी भारतीय कारोबारी समूह के खिलाफ रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका परिणाम भारतीय निवेशकों के लिए भारी नुकसान में हुआ। इस घटनाक्रम ने यह भी दिखाया कि कैसे राजनीति और विदेशी रिपोर्टें मिलकर एक देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकती हैं।

निश्चित रूप से, हिंडनबर्ग रिसर्च का बंद होना और इसके बाद की घटनाएं एक बड़े सवालिया निशान के रूप में खड़ी हैं। इसने भारतीय निवेशकों के बीच असुरक्षा और संदेह का माहौल पैदा किया है। हालांकि एंडरसन अब अपनी नई दिशा की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन भारतीय निवेशक अभी भी यह सोच रहे हैं कि उनके नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा और क्या इस तरह की घटनाओं से भविष्य में कोई सीख ली जाएगी?

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