Source :- BBC INDIA

इमेज स्रोत, Getty Images
भारत ने दावा किया है कि 8 मई की रात पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलों को भारत के एयर डिफ़ेंस सिस्टम से नाकाम कर दिया गया. ख़ास तौर पर भारत के एस 400 डिफ़ेंस सिस्टम की चर्चा है.
हलांकि पाकिस्तान ने भारत के इस दावे से इनकार किया है और भारत में ड्रोन और मिसाइल हमले करने की बात नकारी है.
किसी भी देश के लिए, दुश्मन के हवाई ख़तरों जैसे कि लड़ाकू विमान, ड्रोन, मिसाइल और हेलीकॉप्टर को नष्ट करने की तकनीक आधुनिक युद्ध कौशल के लिए बेहद ज़रूरी मानी जाने लगी है. भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के संदर्भ में, जहां सीमा पर अक्सर तनाव बना रहता है, इन सिस्टम्स की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है.
एयर डिफ़ेंस सिस्टम किसी देश की रक्षा में बल्कि युद्ध जैसे हालातों में एक रणनीतिक बढ़त हासिल करने में भी मदद करता है.
एयर डिफ़ेंस सिस्टम क्या होता है, कैसे काम करता है, भारत और पाकिस्तान के पास कौन से एयर डिफ़ेंस सिस्टम हैं, इस ख़बर में हम इन सवालों को समझने की कोशिश करेंगे.
एयर डिफ़ेंस सिस्टम क्या होता है?

इमेज स्रोत, Getty Images
वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफ़ेंस सिस्टम) एक सैन्य तंत्र है जो दुश्मन के विमानों, मिसाइलों, ड्रोन और अन्य हवाई खतरों से किसी देश की वायुसीमा की सुरक्षा करता है.
यह प्रणाली रडार, सेंसर, मिसाइल, और गन सिस्टम का उपयोग करके हवाई ख़तरों का पता लगाती है, उन्हें ट्रैक करती है और उन्हें नष्ट करने के लिए जवाबी कार्रवाई करती है.
वायु रक्षा प्रणाली को स्थिर (स्थायी तैनात) या मोबाइल (चलायमान) रूप में तैनात किया जा सकता है, और यह छोटे ड्रोन से लेकर बैलिस्टिक मिसाइल जैसे बड़े ख़तरों तक को रोकने में सक्षम होती है.
इसका मुख्य उद्देश्य हवाई हमलों से नागरिक क्षेत्रों, सैन्य ठिकानों और महत्वपूर्ण ढांचों की रक्षा करना है.
एयर डिफ़ेंस सिस्टम चार मुख्य हिस्सों में काम करता है. रडार और सेंसर दुश्मन के विमानों, मिसाइलों और ड्रोन का पता लगाते हैं. कमांड एंड कंट्रोल सेंटर डेटा प्रोसेस कर प्राथमिकता तय करता है.
हथियार प्रणालियां ख़तरों को रोकती हैं, जबकि मोबाइल यूनिट्स तेजी से तैनाती में सक्षम होती हैं, जो इसे युद्धक्षेत्र में बेहद प्रभावी बनाती हैं.
एयर डिफ़ेंस सिस्टम कैसे काम करता है?

इमेज स्रोत, Getty Images
एयर डिफ़ेंस सिस्टम कई चरणों में काम करता है, जिसमें ख़तरे का पता लगाना, खतरे को ट्रैक करना, और अंततः उसे नुकसान पहुंचाने से पहले समाप्त करना शामिल है.
हर चरण में आधुनिक तकनीक और संचालन बहुत मायने रखता है.
पहले चरण में, रडार और अन्य सेंसर तकनीकों का उपयोग करके हवाई खतरों का पता लगाया जाता है. रडार एक प्राथमिक उपकरण है, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को भेजता है और उनकी वापसी से दुश्मन के विमानों या मिसाइलों की स्थिति का पता लगाता है.
लंबी दूरी के रडार, मध्यम दूरी और कम दूरी के रडार के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक सेंसर्स और इंफ्रारेड सेंसर्स जैसे उपकरण दुश्मन के विमानों से निकलने वाले सिग्नल्स को पकड़कर उनकी सही लोकेशन का पता लगाते हैं.
इसी चरण में खतरे की गति, खतरे का प्रकार जैसे कि किस प्रकार का ड्रोन, या हवाई जहाज़ या मिसाइल हमले में प्रयोग किया गया है इसका पता लगाया जाता है.
दूसरे चरण में खतरे की ट्रैकिंग होती है, जिसमें हमला किए जा रहे उपकरण जैसे कि ड्रोन, मिसाइल या फाइटर जेट्स के मूवमेंट, रास्ते और अन्य गतिविधियों की सटीक जानकारी जुटाई जाती है.
रडार, लेज़र रेंज फाइंडर और डेटा लिंक नेटवर्क के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि दुश्मन के विमानों या मिसाइलों की गति, ऊंचाई, और दिशा पर नजर रखी जा सके.
खतरे की ट्रैकिंग बहुत ज्यादा अहम है, क्योंकि हमले या युद्ध के दौरान ट्रैकिंग सिस्टम दुश्मन द्वारा चलाए गए मिसाइल, ड्रोन या फाइटर जेट्स के साथ ही अपने फाइटर जेट्स या मिसाइल्स को भी ट्रैक कर रहा होता है.
इसलिए यह ज़रूरी है कि ट्रैकिंग सिस्टम पूरी तरह से सुचारू और विश्वसनीय हो ताकि अपने उपकरणों या मिसाइल या फाइटर जेट्स को नुकसान न पहुंचे.
लगातार ट्रैकिंग के बाद एक समय पर खतरे को नष्ट करना पड़ता है.

भारत का एयर डिफ़ेंस सिस्टम कितना ताक़तवर

इमेज स्रोत, Getty Images
बात करते हैं, भारत के एयर डिफ़ेंस सिस्टम एस 400 की, जिसे भारतीय सेना सुदर्शन चक्र के नाम से संबोधित करती है.
भारत का एयर डिफ़ेंस सिस्टम अपनी कई परतों और सिस्टम में विविधता के लिए जाना जाता है. इसमें रूसी, इसराइली और स्वदेशी तकनीकों का मिश्रण है, जो इसे इसके पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक प्रभावी बनाता है.
साल 2018 में भारत ने रूस से पांच एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीदने के सौदे पर हामी भरी थी.
इसकी तुलना अमेरिका के बेहतरीन पैट्रिअट मिसाइल एयर डिफ़ेंस सिस्टम से होती है. भारत और रूस के बीच ये सौदा 5.43 अरब डॉलर में हुआ था.
एस-400 मोबाइल सिस्टम है यानी सड़क के ज़रिए इसे लाया-ले जाया सकता है. इसके बारे में कहा जाता है कि आदेश मिलते ही पांच से 10 मिनट के भीतर इसे तैनात किया जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के मुताबिक़, भारत के पास एस-400 ट्रायम्फ़ के अलावा, बराक-8 और स्वदेशी आकाश मिसाइल सिस्टम भी वायु रक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं. छोटी दूरी के ख़तरों से निपटने के लिए स्पाइडर और इग्ला जैसे सिस्टम का उपयोग किया जाता है.
रिटायर्ड मेजर डॉक्टर मोहम्मद अली शाह ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “मैं हमारे देश की सुरक्षा में तैनात उपकरणों की जानकारी न साझा करते हुए कहूंगा कि भारत और पाकिस्तान के वायु रक्षा तंत्र का अंतर स्पष्ट है.”
“पाकिस्तान के एयर डिफ़ेंस सिस्टम को हमारी सेनाओं ने नुक़सान पहुंचाया है, जबकि भारतीय वायु रक्षा तंत्र ने कई स्थानों पर पाकिस्तानी प्रयासों और जम्मू में उड़ते ड्रोन को सफलतापूर्वक रोका… रूस से एस-400 खरीदते समय प्रतिबंधों का जोख़िम था, लेकिन आज वही प्रणाली अनगिनत भारतीयों की जान बचा रही है.”
जहां भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि पाकिस्तान ने आठ मई को ड्रोन और मिसाइलों का उपयोग कर भारत के कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की. जिन्हें भारत ने नाकाम कर दिया. वहीं पाकिस्तान ने इन हमलों में हाथ होने से इनकार किया है और भारत पर ऐसा ही आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने भारत के 25 ड्रोन्स मार गिराए हैं.
बीबीसी स्वतंत्र रूप से इन दोनों ही दावों की पुष्टि नहीं करता है.
पाकिस्तान का एयर डिफ़ेंस सिस्टम ?

इमेज स्रोत, Getty Images
टाइम्स ऑफ़ इंडिया अख़बार की एक ख़बर के अनुसार, पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली मुख्य रूप से चीन और फ्रांस की तकनीकों पर आधारित है. इसका प्रमुख हिस्सा एचक्यू-9 मिसाइल सिस्टम है, जो 120 से 300 किलोमीटर तक की दूरी तक ख़तरों को रोक सकता है.
इसके अलावा, फ्रांस से आयातित स्पाडा एयर डिफ़ेंस सिस्टम का उपयोग विशेष रूप से हवाई ठिकानों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा के लिए किया जाता है.
पाकिस्तानी वायु सेना के पूर्व वाइस एयर मार्शल इकरामुल्लाह भट्टी ने बीबीसी उर्दू से बातचीत में कहा कि पाकिस्तान के एयर डिफ़ेंस सिस्टम में कम दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की क्षमता है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने अपने डिफ़ेंस सिस्टम चीन द्वारा निर्मित एचक्यू-16 एफई डिफ़ेंस सिस्टम भी शामिल किया, जो सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों, क्रूज़ मिसाइलों और युद्धपोतों के ख़िलाफ़ प्रभावी है.
हालाँकि, जब हवा से ज़मीन पर मार करने वाली मिसाइलों को रोकने की बात आती है, तो ऐसी कोई रक्षा प्रणाली मौजूद नहीं है.
हालांकि एयर डिफ़ेंस सिस्टम बेहद उन्नत हो चुके हैं, फिर भी इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हाइपरसोनिक मिसाइलों और स्वार्म ड्रोन के उभरते ख़तरों ने इन प्रणालियों को और अधिक विकसित करने की आवश्यकता बढ़ा दी है.
भविष्य में, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और लेज़र आधारित हथियार एयर डिफ़ेंस को अधिक कुशल और सस्ता बना सकते हैं. एआई सिस्टम ख़तरे की जल्दी पहचान और प्रतिक्रिया में मदद करेगा, जबकि लेज़र तकनीक मारक हमलों में सटीकता प्रदान करेगी.
SOURCE : BBC NEWS