Source :- LIVE HINDUSTAN
आसिम मुनीर ने शहबाज शरीफ सरकार से खुद को यह पद दिलाया है। पाकिस्तान की सत्ता के गलियारों में कहा जा रहा है कि आसिम मुनीर ने खुद ही यह पद लिया है ताकि अपनी ताकत बढ़ा लें। ऐसा इसलिए भी हुआ है ताकि भविष्य में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की हार को लेकर उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल न हो सके।

पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का पद मिल गया है। वह पाकिस्तान के 78 सालों के इतिहास में ऐसे दूसरे सेना प्रमुख हैं, जिन्हें यह तमगा मिला है। उनसे पहले सैन्य तानाशाह जनरल अयूब खान को यह पांच सितारा सम्मान मिला था। फर्क इतना है कि अयूब खान ने तख्तापलट के बाद खुद ही यह पद ले लिया था, जबकि आसिम मुनीर ने शहबाज शरीफ सरकार से खुद को यह पद दिलाया है। पाकिस्तान की सत्ता के गलियारों में कहा जा रहा है कि आसिम मुनीर ने खुद ही यह पद लिया है ताकि अपनी ताकत बढ़ा लें। ऐसा इसलिए भी हुआ है ताकि भविष्य में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की हार को लेकर उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल न हो सके।
इसके अलावा वह एक तरह से पाकिस्तान की सत्ता के शीर्ष पर इसके जरिए पहुंच गए हैं। फिर सवाल है कि जब वह इतने पावरफुल हैं कि खुद ही अपने लिए फील्ड मार्शल का पद तय कर लेते हैं और शहबाज शरीफ की सरकार को भी रिमोट कंट्रोल कर रहे हैं तो फिर सत्ता की बागडोर क्यों नहीं संभाल लेते। यूं भी पाकिस्तान में सैन्य तानाशाहों का एक लंबा इतिहास रहा है। आसिम मुनीर की जिन जिया उल हक की तानाशाही के दौर में भर्ती हुई थी, तब से अब तक कई तानाशाह पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज रहे हैं। यही नहीं जब कथित चुनी हुई सरकारें भी पाकिस्तान में यदा-कदा आईं तो भी सेना ही उन्हें संचालित करती रही।
ऐसे में आसिम मुनीर क्यों खुद सत्ता की बागडोर सीधे अपने हाथ में लेने से हिचक रहे हैं? जानकार मानते हैं कि इसकी वजह जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ हुई बगावत है। जनरल परवेज मुशर्रफ ने शहबाज शरीफ के ही बड़े भाई नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कराके कमान संभाल ली थी। उनका शासनकाल करीब 8 साल चला, लेकिन मार्च 2007 में उन्हें तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। इसकी वजह थी कि उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को निलंबित कर दिया था। उनके इस फैसले के खिलाफ पंजाब से सिंध और खैबर तक खूब विरोध हुआ था। बड़े पैमाने पर वकीलों ने आंदोलन किए थे और इसे अदलिया बचाओ मूवमेंट कहा गया था।
जनरल परवेज मुशर्रफ की सैन्य तानाशाही इसके बाद भी 2008 तक चली, लेकिन माना जाता है कि उनके खिलाफ विरोध की नींव इस आंदोलन ने ही रखी थी। उनके बाद से अब तक पाकिस्तान में टूटी-फूटी नाम मात्र की लोकतांत्रिक सरकारें ही चल रही हैं, जो सेना के मुखौटे की तरह काम करती हैं। लेकिन तब से अब तक राहील शरीफ, कमर जावेद बाजवा जैसे सेना प्रमुखों ने भी तख्तापलट के बारे में नहीं सोचा। यही वजह है कि आसिम मुनीर भी सीधे सत्ता हाथ में लेने से बच रहे हैं। इसके अलावा दुनिया भर में लोकतंत्र के मामले में पाकिस्तान की छवि खराब है। फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स की लिस्ट में भी पाकिस्तान नीचे है। ऐसे में लोकतंत्र बहाली के नाम पर जो फायदा मिल रहा है, उसे आसिम मुनीर खोना नहीं चाहते।
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