Source :- LIVE HINDUSTAN

रिश्तों का हमारे जीवन में क्या महत्व होता है, ये बात सभी अच्छी तरह जानते हैं। मधुर रिश्ते ना केवल हमारी मानसिक सेहत सुधारते हैं बल्कि हमें सामाजिक रूप से एक-दूसरे के साथ खड़े रहना भी सिखाते हैं। वहीं, खराब रिश्ते ऐसी बीमारी की तरह होते हैं, जो धीरे-धीरे आपकी खुशियों को लील लेते हंै। रिश्तों में आई कड़वाहट का सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है क्योंकि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वो हर हाल में रिश्तों में तालमेल बैठा कर चलेंगी। पर, जब हालात असहनीय होने लगते हैं तो अपनी मानसिक शांति की खातिर ना चाहते हुए भी आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं। हालांकि यह कोई सरल काम नहीं है क्योंकि संभव है आपके द्वारा उठाई गई आवाज बाकि के घरवालों को विद्रोह का स्वर लगे, लेकिन विषाक्त रिश्तों का बोझ ढोने से बेहतर यही है कि उनसे दूरी बना ली जाए।

क्या है विषाक्त रिश्तों की पहचान

आपके अंदर इतनी परिपक्वता होनी चाहिए कि आप सच्चे और दोगले रिश्तों में अंतर समझ सकें। सच्चे रिश्ते अच्छे और बुरे दोनों ही समय साथ रहते हैं और आपकी अनुपस्थिति में भी आपके सम्मान का ध्यान रखते हैं। जबकि विषाक्त रिश्ते सामने तो मीठे होने का दिखावा करते हैं, लेकिन मौका मिलते ही आपकी छवि खराब करने का प्रयास करने लगते हैं। ऐसे रिश्ते खुशी देने की बजाय तकलीफ और तनाव बढ़ाते हैं। इसलिए, जब भी महसूस हो कि परिवार का कोई सदस्य बार-बार आपकी भावनाओं को जान-बूझकर आहत कर रहा है तो समझ जाएं कि वो रिश्ता आपके लिए सही नहीं है। ऐसे रिश्तेदारों से सतर्क रहने में ही भलाई है।

मानसिक मजबूती है जरूरी

ऐसा जरूरी नहीं कि आपकी बातों से सभी घरवाले सहमत हो जाएं, इसलिए अपनी बात रखने से पहले खुद को मानसिक रूप से पूरी तरह मजबूत बना लें। ऐसा करने से शुरुआती हंगामे और तनाव का सामना आप मजबूती से कर पाएंगी। परिवार को साथ लेकर आगे बढ़ना अच्छी बात है, लेकिन याद रखिए आपकी मानसिक शांति भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिसे हमेशा नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। हो सकता है कि आपकी बातें सुनकर परिवार में बहुत हलचल मच जाए और आपको ही बुरा समझ लिया जाए। लेकिन ऐसी स्थिति में भी आपको संयम और मजबूती के साथ अपनी बात रखनी होगी।

सीमाएं निर्धारित करें

महिलाओं का स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि वह अपनी खुशी से पहले दूसरों की खुशी का ध्यान रखती हैं। लेकिन हर बार खुद को नजरअंदाज करना भी ठीक नहीं है। यदि आपको लगता है कि आपकी अच्छाई का फायदा उठाया जा रहा है या आपको परिवार में महत्वपूर्ण ही नहीं समझा जा रहा है, तो अपनी सीमाएं निर्धारित करना बहुत जरूरी है। यह स्पष्ट करें कि आप क्या सहन करेंगी और क्या नहीं करेंगी। मसलन, यदि बार-बार आपको उपहास का पात्र बनाया जाता है, तो साफ शब्दों में सबको बता दें इससे आपकी भावनाएं आहत हो रही हैं।

संयम का साथ

पारिवार से खुद को पूरी तरह अलग-थलग रख पाना ना तो संभव है और ना ही उचित। सिर्फ अपने बारे में सोचना आपको प्रियजनों से दूर कर सकता है, पर खुद को बार-बार दुखी करने वाली स्थितियों में डालना भी समस्या का हल नहीं है। बेहतर होगा कि अपने किसी करीबी के सामने अपनी परेशानी रखकर उसे अपने विश्वास में लें, ताकि सारे परिवार के सामने वह आपकी बातों से सहमत हो सके। बिना बहस किए अपनी समस्या पूरे परिवार के सामने रखें। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि संयम के साथ अपना तर्क रखना ज्यादा प्रभाव डालता है। संभव है कि इससे सामने वाले का व्यवहार सुधर जाए वरना आप उस व्यक्ति से दूरी बना सकती हैं।

(अपोलो स्प्केट्रा हॉस्पिटल, दिल्ली में साइकोलॉजिस्ट कृपा खन्ना से बातचीत पर आधारित)

शरीर के संकेत समझें

हमारा शरीर माहौल के हिसाब से प्रतिक्रिया देने में माहिर होता है। जैसे परीक्षा के समय घबराहट महसूस होती है, तो परिणाम अच्छा आने पर रोमांच और खुशी का भी अनुभव होता है। यही बात रिश्तेदारों के व्यवहार पर भी लागू होती है। मधुर रिश्तों में स्वयं को साबित करने के प्रयास नहीं करने पड़ते हैं। लेकिन किसी रिश्तेदार से मिलने पर खुशी की जगह सिर दर्द होने लगे या नाहक तनाव महसूस हो तो समझ जाएं कि वो रिश्ता आपके लिए ठीक नहीं है।

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