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पहलगाम हमले में बाल-बाल बचे इस परिवार के दस लोग, कैसे बची जान

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Source :- BBC INDIA

शुभम के पिता और बहन

बीते 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई. इनमें कानपुर के रहने वाले शुभम द्विवेदी भी शामिल थे.

शुभम और उनके परिवार के सदस्य पहलगाम घूमने गए थे. उनके साथ उनकी पत्नी, माता-पिता, बहन, बहनोई और ससुराल के कुछ रिश्तेदार भी थे.

30 साल के शुभम की कुछ दिनों पहले ही शादी हुई थी. वो कानुपर में सीमेंट का व्यापार करते थे.

इस हमले में सुरक्षित बच निकले शुभम के परिवार ने बीबीसी को बताया कि कैसे उन सबकी जान बच सकी.

शुभम की बहन और पिता ने बताया कि उनके एक फ़ैसले की वजह से यह संभव हुआ.

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ऐसे बची शुभम के परिवार की जान

शुभम की बहन आरती द्विवेदी बताती हैं कि उनके परिवार और रिश्तेदारों को मिलाकर कुल 11 लोग पहलगाम गए हुए थे.

जिस दिन ये घटना हुई वो उनके ट्रिप का आख़िरी दिन था. इसके बाद सबको वापस आना था.

वो कहती हैं, “हम लोगों का आख़िरी दिन था. हम लोग बहुत ख़ुश थे. वास्तव में बहुत ज़्यादा ही ख़ुश थे क्योंकि ये हमारी पहला ट्रिप था.”

आरती बताती हैं, “भइया की नई शादी हुई थी और भाभी का परिवार भी साथ में था, तो हमें बहुत अच्छा लग रहा था. हमारा ये ट्रिप बहुत अच्छा चल रहा था. हम दोबारा लौटने का प्लान बना रहे थे.”

बैसरन की तरफ़ जाने की घटना का ज़िक्र करते हुए शुभम की बहन आरती बताती हैं कि उनके एक फ़ैसले की वजह से उनकी और परिवार के बाकी लोगों की जान बच गई.

वो बताती हैं, “हम ऊपर जा रहे थे, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. मुझे घोड़े पर बैठकर जाना पसंद नहीं है. इसलिए मैंने कहा कि मैं नहीं जाऊंगी.”

आरती बताती हैं कि उनके इस फ़ैसले की वजह से परिवार के छह लोग वापस आ गए थे.

उन्होंने बताया, “हम लोग आधे रास्ते तक पहुंच गए थे. वहां से मैं पापा, अपने पति और कुछ लोगों को वापस ले आई.”

घोड़े वाले ने की थी ज़िद फिर भी वापस लौटे

आरती द्विवेदी

आरती बताती हैं, “पता नहीं क्यों, लेकिन मैं डर रही थी. मैंने कहा कि मैं नहीं जाउंगी. मुझे अंदर से घबराहट हो रही थी और पसीना आ रहा था.”

वो कहती हैं, “वहां मौसम ठंडा था और मैंने ज़्यादा कपड़े भी नहीं पहने थे, फिर भी मुझे पसीना आ रहा था. इसलिए मैंने कहा मैं नहीं जाऊंगी.”

“लेकिन वो लोग (घोड़े वाले) कहने लगे कि आप क्यों डर रही हो, मैं लेकर चलूंगा. उन्होंने मेरे से 10 मिनट बहस की कि आप चलिए.”

आरती बताती हैं, “मैंने उन्हें सीधा कहा कि मैं आपको पूरे पैसे दूंगी, आपका एक भी पैसा नहीं काटूंगी. लेकिन ये मेरी मर्जी है मैं नहीं जाउंगी.”

आरती कहती हैं कि वो जबरदस्ती अपने परिवार के कुछ लोगों के साथ वापस आ गईं.

वो कहती हैं. “अच्छा हुआ उनको लेकर आ गए. अगर नहीं आते तो ना मेरे पापा बचते, ना मेरे पति बचते, कोई नहीं बचता.”

कोट कार्ड

पिता बोले- ‘एक फ़ोन ने सब ख़त्म कर दिया’

संजय कुमार द्विवेदी

शुभम के पिता संजय कुमार द्विवेदी इस घटना के बारे में बताते हैं कि वो और उनके परिवार के लोग ट्रैवलर से पहलगाम पहुंचे.

वहां से सभी 11 लोगों के लिए उन्होंने घोड़े का इंतज़ाम किया.

संजय बताते हैं, “हम सभी 11 लोग एक साथ चले. हमने 11 घोड़े किए हुए थे. जब हम फ़र्स्ट पॉइंट पर पहुंचे तो सबकी फ़ोटो ली.”

“उसके बाद मेरी बेटी (आरती) ने कहा कि हमारी इच्छा नहीं है इसके आगे जाने की. हम वापस जाएंगे. अच्छा नहीं लग रहा है.”

संजय कहते हैं, “पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था. तो मैंने कहा ठीक है हम वापस चलेंगे. फिर हम वहां से वापस हो गए.”

“इसके बाद मेरे दामाद भी कहने लगे कि मैं भी नहीं जाउंगा. फिर मेरी बेटी के सास-ससुर ने भी कहा कि हम नहीं जाएंगे. मेरी पत्नी ने भी कहा कि नहीं जाउंगी. इस तरह से क़रीब छह लोगों ने कहा कि ऊपर नहीं जाएंगे.”

शुभम के पिता बताते हैं कि इसके बाद सभी छह लोग फ़र्स्ट पॉइंट से नीचे आ गए.

वो कहते हैं, “हम लोग चाय वगैरह पी रहे थे तभी मेरे बेटे का फ़ोन आया कि वो पहुंच गया है. इसमें 20-25 मिनट लगे होंगे.”

“मैंने उससे कहा कि जल्दी आ जाना ज़्यादा देर तक इंतज़ार नहीं कराना. हम लोग इंतज़ार कर रहे हैं. इसके पांच मिनट बाद फिर फ़ोन आया. मुझे लगा कि वो वहां से निकल रहा होगा.”

यह सब बताते हुए शुभम के पिता भावुक हो जाते हैं.

वो कहते हैं, “यह एक फ़ोन ऐसा था, जिसने सब कुछ ख़त्म कर दिया.”

कोट कार्ड

शुभम की बहन सदमे में

शुभम द्विवेदी

शुभम की बहन आरती बताती हैं कि वो किस स्थिति में हैं ये बता पाना बहुत मुश्किल है. उनका दिमाग़ सही से काम नहीं कर पा रहा है.

वो कहती हैं, “पता नहीं मेरे मां-बाप, भाभी और हम लोग उनके (शुभम) बिना कैसे रहेंगे? इस देश में ये सब चीज़ें क्यों हो रही हैं? लोग एक-दूसरे को मार रहे हैं.”

आरती कहती हैं, “सबके अंदर इंसानियत होती है. अगर किसी अनजान को भी चोट लग जाए तो हम लोग उसके बारे में सोचते हैं.”

“हम लोग जानवरों को इतना प्यार करते हैं, लेकिन यहां तो इस समय इंसान ही इंसान को मार रहा है, वो भी अपने ही देश में.”

वो आगे कहती हैं, “हम कहीं बाहर नहीं गए हैं, ना ही पाकिस्तान या कोई अन्य मुस्लिम देश में गए कि हिंदू-मुस्लिम पूछ कर मार दिया गया हो. हम हिंदुस्तान में ही हैं, अपने ही देश में मर गए.”

पहलगाम हमला

भारतीय सेना

इमेज स्रोत, Getty Images

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते हफ़्ते मंगलवार को पर्यटकों पर चरमपंथी हमला हुआ था. अधिकारियों ने बीबीसी को बताया था कि पर्यटकों पर बंदूकधारियों ने फ़ायरिंग की.

इस हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘आतंकवादी हमला’ बताते हुए कहा था कि हमले के ज़िम्मेदारों को बख्शा नहीं जाएगा.

वहीं राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने इसे हाल के वर्षों में आम नागरिकों को निशाना बनाते हुए किया गया बड़ा हमला बताया था.

इस हमले में मारे गए कानपुर के शुभम द्विवेदी के परिवार से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बात की थी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS