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पोप फ़्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया है

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एक घंटा पहले

पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह वेटिकन सिटी में निधन हो गया. कार्डिनल केविन फेरेल ने पोप के निधन की घोषणा की. वो 88 साल के थे.

फेरेल ने अपनी घोषणा में कहा, ”रोम के स्थानीय समय के मुताबिक़ सुबह 7:35 बजे पोप फ़्रांसिस ने आख़िरी सांस ली. फ़्रांसिस का पूरा जीवन लॉर्ड और चर्च की सेवा में समर्पित था.”

पोप फ्रांसिस को कैथलिक चर्चों में सुधार के लिए भी जाना जाता है. इसके बावजूद पोप परंपरावादियों के बीच भी लोकप्रिय थे. फ्रांसिस लातिन अमेरिका से बनने वाले पहले पोप थे.

पोप फ़्रांसिस के निधन से नया पोप चुनने की सदियों पुरानी चयन प्रक्रिया अब शुरू होगी. आइए आपको बताते हैं कि पोप का चुनाव किस तरह से होता है.

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पोप के निधन के बाद दुनिया भर के सभी कार्डिनल नए पोप के चुनाव के लिए जुटते हैं. ये सभी लोग कॉनक्लेव में बैठते हैं.

एक बार जब कॉनक्लेव शुरू हो जाता है, तो उन्हें तब तक यहीं रहना होता है जब तक नया पोप चुन न लिया जाए.

इस समय दुनिया भर में 252 कार्डिनल हैं, जिनमें से 135 कार्डिनल पोप को चुनने के लिए वोट देंगे.

कॉनक्लेव क्या होता है?

वेटिकन सिटी

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आधुनिक युग में मोबाइल, सेल्युलर फ़ोन और ट्रांसमीटर रेडियो के आने के बाद से कॉनक्लेव को गुप्त रखने पर और अधिक ज़ोर दिया जा रहा है.

जहाँ सारे कार्डिनल बैठते हैं, उस पूरे क्षेत्र की जाँच हो जाती है कि कोई जानकारी यहाँ से किसी भी तरह बाहर न जाए.

सारे कार्डिनल सिस्टीन चैपल में ही खाना खाते हैं, वोट डालते हैं और सोते भी हैं.

सभी रेडियो, टेलीविज़न और संचार के अन्य साधनों को हटा दिया जाता है और उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है.

कार्डिनलों की देखभाल के लिए रसोइए, डॉक्टर और कुछ नौकर होते हैं. कोई भी कार्डिनल अपने किसी सहयोगी को लेकर कॉनक्लेव में नहीं जा सकता.

80 साल से कम उम्र के सभी कार्डिनलों के जमा होने के बाद लैटिन भाषा में आदेश दिया जाता है कि चुनाव प्रक्रिया में जो भी शामिल नहीं है, वो बाहर चले जाएँ.

इसके बाद गेट बंद कर दिया जाता है.

इसके बाद पूरी दुनिया नए पोप के चयन का बस इंतज़ार करती है.

कैसे होता है पोप का चुनाव?

कार्डिनल

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वोट डाले जाने की प्रक्रिया के बारे में वेटिकन ने स्पष्ट जानकारी नहीं दी है.

हर कार्डिनल एक कार्ड पर अपने पोप का नाम लिख कर प्लेट में रख देता है.

इन सभी को एक जगह जमा कर दिया जाता है. इनके बीच कोई बातचीत नहीं होती है.

जब सभी कार्डिनल अपने पसंदीदा पोप का नाम लिख देते हैं. तब दो दौर की गिनती के बाद इन कार्डों को जला दिया जाता है.

साल 1975 में पोप पॉल VI ने चुनाव के तौर तरीक़े तय किए थे. उन्होंने ही तय किया था कि 80 से अधिक उम्र वाले कार्डिनल वोट नहीं देंगे.

पोप जॉन पॉल द्वितीय ने साल 1996 में इसमें थोड़े बदलाव किए.

पहले पोप के चयन के लिए किसी को भी दो-तिहाई बहुमत मिलना आवश्यक था, लेकिन इसे बदल दिया गया है.

अब किसी को भी पोप बनने के लिए आधे से अधिक मतों की ज़रूरत पड़ती है. कॉनक्लेव के दो दौर होते हैं और इनके लिए अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं.

धुएं का संकेत क्या बताता है?

सेंट पीटर्स स्क्वायर पर इंतज़ार

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मतदान पत्रों को परंपरा के अनुसार स्टोव पर जलाया जाता है. ये नए पोप के चुनाव का संकेत होता है.

सेंट पीटर्स स्क्वायर पर इंतज़ार करते लोगों को इन मतपत्रों के धुएं का रंग ही बताता है कि पोप का चुनाव हुआ या नहीं.

अगर धुएं का रंग सफेद होता है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि नया पोप चुन लिया गया है.

लेकिन अगर धुएं का रंग काला होता है, तो मतलब हुआ कि अभी और इंतज़ार करना होगा क्योंकि पोप के नाम पर सहमति नहीं हुई है.

यह धुआं सिस्टीन चैपल की चिमनी से निकलता है.

कॉनक्लेव के नियम हर मामले में बड़े ही कठोर हैं, लेकिन धुएं के रंग को लेकर नियम कुछ भी नहीं कहते.

सिर्फ यह धुआं और इस धुएं का रंग ही बता सकता है कि कॉनक्लेव में अंदर क्या हो रहा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS