Source :- BBC INDIA
प्रयागराज का त्रिवेणी संगम स्थल सज धजकर तैयार है. तंबुओं का एक पूरा शहर यहां रूप ले चुका है, जिसकी आबादी अगले कुछ दिनों में दुनिया के बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ देगी.
आस्था के इस संगम में डुबकी लगाने को लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.
त्रिवेणी से नज़र उठाओ तो एक तरफ नौकाओं की लंबी कतार, दूसरी तरफ तंबुओं का अनंत संसार और बीच बीच में जहां नज़र ठहरे, वहां मुस्तैद खड़े पुलिस वाले दिखाई देते हैं.
प्रयागराज में आज, 13 जनवरी से शुरू हो रहा कुंभ, सिर्फ आस्था का ही संगम नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक क्षमता का भी इम्तिहान है. कुंभ का समापन महाशिवरात्रि के दिन, 26 फरवरी को होगा.
उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि इस बार कुंभ में 40 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. जिन योजनाओं पर महीनों से काम चल रहा था उन्हें ज़मीन पर परखने का वक्त आ गया है.
कैसा है माहौल
शहर में हर तरफ कंधे पर सामान लादे संगम की तरफ बढ़ते श्रद्धालु, सुरक्षाकर्मी और सफाईकर्मी नजर आते हैं. चप्पे-चप्पे पर पुलिस ने बैरिकेडिंग की हुई है.
वज्रवाहन, ड्रोन, बम निरोधक दस्तों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) तक को तैनात किया गया है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ का संदेश देती होर्डिंग्स जगह-जगह लगी हुई है.
दोनों नेताओं के अलावा पूरे कुंभ में किसी दूसरे नेता की तस्वीर लगा कोई पोस्टर बमुश्किल ही दिखाई देता है. इसके अलावा शहर अलग अलग साधु संतों के पोस्टरों से पटा पड़ा है.
अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत राजशी शानो-शौकत के साथ कुंभ में प्रवेश कर रहे हैं. इस दौरान उनके साथ हाथी, घोड़े, ऊंट और नाच गाना करते सैकड़ों की संख्या में भक्त हैं.
संतों के दर्शन करने के लिए सड़कों पर जगह-जगह लोगों की भीड़ जुटी हुई दिखाई देती है, जिसकी वजह से एक किलोमीटर का रास्ता तय करने में गाड़ियों को कई-कई घंटों का वक्त लग रहा है.
मुंबई की रहने वाली गीता कई लोगों के साथ कुंभ आई हैं. वे कहती हैं, “हम पांच दिनों के लिए आए हैं. यह मेरा पहला कुंभ है. 14 जनवरी को शाही स्नान करने के बाद हम घर जाएंगे. फिलहाल हम महाराज जी के आश्रम में रह रहे हैं.”
उनके साथ आईं जयश्री भरत पुंजानी कहती हैं, “मैं 12 साल पहले जो कुंभ लगा था, तब भी आई थी. इस बार पहले से अच्छी व्यवस्था है. देखते ही देखते इतनी बड़ी दुनिया सज गई है, विश्वास नहीं होता.”
वहीं बिहार में भागलपुर की रहने वालीं 25 साल की नूतन बूंदाबांदी के बीच सड़क किनारे एक पॉलिथीन की मदद से छत बनाकर रह रही हैं.
वे कहती हैं, “हमारे गांव से 30 से ज्यादा लोग आए हैं. यहां रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. जहां जाते हैं पुलिस वाले भगा देते हैं. हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि टेंट में रह पाएं. सोचा था कि कुंभ जाकर चाय की एक दुकान लगाएंगे, लेकिन अभी बहुत मुश्किल हो रही है.”
ऐसा ही हाल बंगाल से आए महिलाओं के एक ग्रुप का भी है. संजीता शारदा कहती हैं, “हम 20 से ज्यादा महिलाएं कुंभ में गंगा स्नान करने आई हैं, लेकिन रहने के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है. दो-तीन दिन ऐसे ही सड़क पर रह लेंगे.”
अखाड़ों में बढ़ने लगी है भीड़
सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग अखाड़ों ने अपने भव्य टेंट लगाए हैं. कुछ तो कई एकड़ में फैले हुए हैं. यहां साधु संतों ने अपने-अपने टेंट लगाए हुए हैं, जहां रहकर वे पूजा पाठ कर रहे हैं.
कुंभ में अखाड़ों की तरफ ज्यादा भीड़ देखने को मिल रही है. पंच दशनाम जूना अखाड़ा में नागा साधु शरीर पर भस्म और गले में रुद्राक्ष की मालाएं पहने बैठे हैं.
कड़ाके की ठंड में कुछ नागा साधु अखाड़ों के बाहर सड़क पर अपने अपने टेंट में आग जलाकर बैठे हैं. जहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर उनका आशीर्वाद ले रहे हैं तो बहुत सारे लोग तस्वीरें खिंचवा रहे हैं.
बीबीसी से बातचीत में एक नागा साधु कहते हैं, “जब साधना में आ जाते हैं तो ठंड की कोई बात ही नहीं रह जाती. भक्ति में बहुत शक्ति होती है, फिर ठंड नहीं लगती.”
वे कहते हैं, “हम अघोरी बाबा हैं. हम कपड़ों की जगह शरीर पर भस्म लगाते हैं. इससे ठंड थोड़ी कम लगती है.”
वहीं एक दूसरे नागा साधु कहते हैं, “भस्म ही हमारा अंग वस्त्र है. लगातार बारह घंटे बैठते हैं तो शरीर दर्द करने लगता है, लेकिन यही साधना है.”
इसके अलावा कई ऐसे बाबा भी कुंभ में आए हैं, जिनका दावा है कि उन्होंने कई सालों से अपना एक हाथ ऊपर उठा रखा है. वे खुद को ‘उर्दबाहू’ कहते हैं.
ऐसी ही एक असम के कामाख्या पीठ से आए गंगापुरी महाराज हैं, जिनसे मिलने दूर-दूर से लोग आ रहे हैं.
3 फीट 8 इंच कद वाले इन बाबा का कहना है कि वे 32 सालों से नहीं नहाए हैं. हालांकि जब हम उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने मिलने से मना कर दिया.
पास के ही टेंट में रहने वाली महिला से जब हमने पूछा कि गंगापुरी महाराज कहां हैं? उन्होंने कहा, “वे अभी गंगा से नहाकर आए हैं और अपने टेंट में बैठे हैं.”
संगम कैसे आएं
एक दिन बाद यानी 14 जनवरी (मकर संक्रांति) को कुंभ का पहला शाही स्नान है. ऐसा अनुमान है कि करीब एक करोड़ श्रद्धालु इस दिन प्रयागराज पहुंच सकते हैं.
शहर के एडीजी भानु भास्कर के मुताबिक मेला क्षेत्र में प्रवेश के लिए अलग-अलग दिशाओं से आने वाले कुल सात मुख्य मार्ग तय किए गए हैं. इन रूटों पर वाहनों के लिए मेला क्षेत्र के करीब 100 से ज्यादा पार्किंग बनाई गई है.
इनमें जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, रीवा-चित्रकूट, कानपुर-फतेहपुर-कौशांबी, कौशांबी और लखनऊ-प्रतापगढ़ मार्ग शामिल है.
इसके अलावा श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को संभालने के लिए 13 हजार ट्रेनें प्रयागराज को दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों से जोड़ने के लिए चलाई गई हैं. इनमें कई हजार विशेष ट्रेनें भी चलाई जा रही हैं.
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम भी करीब 7 हजार बसें चला रहा है.
गंगा के एक छोर को दूसरे से जोड़ने के लिए पीपा पुल यानी पांटून पुल बनाए गए हैं. इस बार इनकी संख्या को बढ़ाकर 30 कर दिया गया है. हर पुल का अपना अलग नाम है.
एक दिन का किराया एक लाख के पार
कुंभ को पांच क्षेत्रों में बांटा गया है- परेड ग्राउंड, संगम क्षेत्र, तेलियरगंज, झूसी और अरैल. हर क्षेत्र को भी कई सेक्टरों में बांटा गया है. पूरे कुंभ में कुल 25 सेक्टर हैं.
कुंभ में ठहरने के लिए कई लाख लोगों के रुकने की व्यवस्था की गई है. इनमें फ्री रैन बसेरों से लेकर पांच सितारा लग्जरी कैंप तक मौजूद हैं, जिनका एक रात का किराया लाख रुपये से भी ज्यादा है.
भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) ने अरैल क्षेत्र के अंदर सेक्टर 25 में महाकुंभ ग्राम नाम से एक टेंट सिटी बसाई गई है. यहां श्रद्धालुओं के लिए सुपर डीलक्स कमरे और विला बनाए गए हैं.
इन कमरों का प्रतिदिन किराया 16 हजार से 20 हज़ार रुपये है. यहां नाश्ता, लंच और डिनर की सुविधा के साथ-साथ गर्म पानी की व्यवस्था है.
इसके अलावा अरैल घाट के पास एक डोम सिटी बनाया गया है. यहां शीशे के गुंबदनुमा कमरे बनाए गए हैं, जो जमीन से करीब 18 फीट ऊपर हैं.
इसे बनाने वाली कंपनी इवोलाइफ के डायरेक्टर भानु प्रसाद सिंह ने बताया, “एक पांच सितारा होटल में जो सुविधा होती है, वो सभी सुविधाएं हमने देने का प्रयास किया है. देश विदेश से श्रद्धालु प्रयागराज आते हैं. भीड़ की वजह से वो घाट तक नहीं आ पाते. इसलिए हमने इस प्रोजेक्ट को डिजाइन किया है.”
बीबीसी से बातचीत में सिंह बताते हैं, “हमारे यहां शाही स्नान के दिन एक कमरे का प्रतिदिन किराया 1 लाख 11 हजार, वहीं आम दिनों में 81 हजार रुपये है. इसमें महाराजा बेड के साथ-साथ टीवी और अलग से अटैच बाथरूम भी बनाया गया है. इस पूरे प्रोजेक्ट में हमारे करीब 51 करोड़ रुपये लगे हैं.”
इसी सेक्टर में संगम की तरफ बढ़ते हुए प्रयागराज के रहने वाले बृजेश कुमार पाण्डेय ने अलर्कपुरी कैंप बनाया है. यहां बांस की मदद से अलग अलग डिजाइन के कमरे तैयार किए गए हैं.
पाण्डेय बताते हैं, “कुंभ में सात दिन शाही स्नान होंगे. उन दिनों में हमारे यहां एक डबल बेड वाले कमरे का किराया 20,000 और आम दिनों में 10,000 हजार रखा है. “
वहीं दूसरी तरफ शहर में नगर निगम ने जगह-जगह पर अस्थाई रैन बसेरे बनाए हैं. यहां नि:शुल्क रहने की व्यवस्था की गई है.
प्रयागराज बस स्टैंड के पास बने एक पिंक रैन बसेरे की सहायक अनुपा देवी कहती हैं, “बाहर से आने वाले यात्री यहां सात दिनों के लिए ठहर सकते हैं. गद्दा, रजाई और साफ पानी के साथ-साथ दवा की भी व्यवस्था प्रशासन ने की है.”
इसके अलावा शहर में दर्जनों लग्जरी होटल हैं. कुंभ को देखते हुए होटलों का किराया आसमान छू रहा है. जो होटल आम दिनों में दो हजार का मिलता था, वो आज की तारीख में दस-दस हजार से कम नहीं मिल रहा है.
कुंभ में ‘कल्पवासी’
कुंभ में लाखों की संख्या में लोग कल्पवास करते हैं, जिन्हें ‘कल्पवासी’ कहते हैं. पिछले कई दिनों से इन लोगों के प्रयागराज पहुंचने का सिलसिला जारी है.
ये लोग माघ के पूरे महीने तंबू लगाकर पूजा पाठ करते हैं और अपने साथ जरूरत का सभी सामान घर से लेकर आते हैं.
एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी इस बार कुंभ में कल्पवास करने पहुँची हैं.
प्रयागराज में पिछले 25 सालों से ज्योतिष के साथ-साथ श्रद्धालुओं को कल्पवास करवाने वाले पंडित रमेश पाण्डेय का कहना है कि कल्पवास एक मास यानी 30 दिनों का ही होता है.
बीबीसी से बातचीत में पाण्डेय कहते हैं, “हर साल माघ महीने में जब मकर राशि में सूर्य आते हैं, तो कल्पवास शुरू होता है. हम सांसारिक माया मोह और भौतिक चीजों से दूर रहें. बस भोजन और भजन करें, ठंडी और गर्मी का अहसास ना हो, यही कल्पवास है.”
वे कहते हैं, “कल्पवास के नियम काफी कठिन है. इसमें सूर्योदय से पहले गंगा स्नान, 24 घंटे में एक बार बिना लहसुन प्याज वाले भोजन के साथ-साथ ब्राहाचार्य का पालन करना होता है.”
प्रयागराज की रहने वाली श्यामलि तिवारी पिछले सात सालों से कल्पवास कर रही हैं. वे ‘मां गंगा’ का नाम लेते हुए रोने लगती हैं.
श्यामलि कहती हैं, “यहां गंगा जी नहाने आए हैं, जो गलतियां हुई हैं, उन्हें गंगा मां माफ करेंगी. हम यहां एक महीने रहेंगे. शुद्ध भोजन करेंगे. लहसुन प्याज और सरसों के तेल का इस्तेमाल तो दूर हम नमक भी सेंधा खाते हैं.”
इसी कैंप में अपने परिवार के साथ कल्पवास करने आईं संगीता तिवारी कहती हैं, “घर में रहते हैं, तो फिर भी तकलीफ हो जाती है, लेकिन यहां दर्द पीड़ा जैसा कुछ नहीं है. एक महीना कल्पलास कर हम घर लौट जाएंगे.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
SOURCE : BBC NEWS