Source :- BBC INDIA
सर्द मौसम में उत्तर प्रदेश के बिजनौर में आजकल एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिल रहा है. महिलाएं और पुरुष गन्ने के खेतों में काम कर रहे हैं और उन सबके सिर पर मुखौटा दिख रहा है.
मुखौटा चेहरे पर नहीं, पीछे की ओर लगा है. यह कोई नाटक का हिस्सा नहीं है. यह मुखौटा तेंदुओं के हमले से बचाने की कोशिश है क्योंकि बिजनौर में तेंदुओं का ख़ौफ़ है.
आधिकारिक आकड़ों के मुताबिक़, साल 2023 से अब तक तेंदुए ने बिजनौर ज़िले में ही 17 लोगों की जान ले ली है. मरने वालों में ज़्यादातर बच्चे हैं .
हालाँकि, तेंदुओं के हमले जवान और बुज़ुर्ग सब पर हो रहे हैं.
तेंदुओं के बढ़ते हमलों के कारण वन विभाग ने किसानों के बीच एक ख़ास तरह के मुखौटे बाँटे हैं. इन्हें सिर के पीछे बाँधने की सलाह दी गई है.
देखते-देखते बच्ची को ले गया तेंदुआ
बिजनौर के मलकपुर की सुनीता देवी बताती हैं, “पिछले साल 11 अक्टूबर की बात है. सुबह के आठ बजे थे. मैं अपने चार बेटे-बेटियों के साथ खेत पर जा रही थी.”
“गन्ने के खेत में फ़सल के बीच बनी पगडंडी पर हम चल रहे थे. अचानक हमने अपने पीछे आहट सुनी. बेटी चिल्लाई, माँ देखना कोई जानवर है. मैं सन्न रह गई. सामने तेंदुआ था. वह मेरे परिवार को घूर रहा था.”
आगे की कहानी सुनीता की बेटी सोनिया बताती हैं.
बकौल सोनिया, वह पीछे चल रही थीं. छोटी बहन तान्या बीच में थी. उनकी माँ आगे चल रही थीं. तभी तेंदुए ने हमला किया. वह अपने भाई को लेकर भागीं. इस बीच तेंदुआ उनकी छोटी बहन तान्या को उठाकर ले गया. वह कक्षा तीन में पढ़ती थी.
तान्या के पिता बिलंद ने एक जगह दिखाई. उन्होंने बताया कि तेंदुए ने यहीं उनकी बच्ची के शव को पत्तों और मिट्टी से ढँक दिया था.
यह घटना ज़िले में धामपुर वन रेंज के मलकपुर, नहटौर थाने की है. तान्या को तेंदुए ने गर्दन से पकड़ा था.
बिलंद ने बताया कि बेटी की मौत पर वन विभाग की ओर से पाँच लाख बतौर मुआवज़ा दिया गया है.
‘मुझे लगा अब मैं बच नहीं पाऊँगा’
बिजनौर के अफ़ज़लगढ़ के भिक्कावाला में साल 2024 के 16 अक्टूबर के तक़रीबन दो बजे की बात है.
55 साल के रिटायर्ड फ़ौजी टेकवीर सिंह नेगी पर तेंदुए ने हमला कर दिया. टेकवीर तेंदुए पर भारी पड़े. तेंदुआ मारा गया.
इस संघर्ष में टेकवीर की भी जान पर बन आई थी. हालाँकि, वह समय पर इलाज मिलने से बच गए.
टेकवीर ने बीबीसी हिंदी को बताया, “मैं खेत से घर लौट रहा था. अचानक तेंदुआ मेरे सामने आ गया. मैं कुछ समझता इससे पहले ही उसने मुझ पर हमला बोल दिया. मैंने घूसों और लाठी से वार किया.”
“किसी तरह ख़ुद की जान बचाने की कोशिश की. मेरे सिर पर 80 टाँके आए थे. तकरीबन दस दिन अस्पताल में भर्ती था. अभी तक सिर में दर्द होता है. सरकार की तरफ़ से कोई मुआवज़ा भी नहीं मिला है.”
मुखौटा सिर के पीछे बाँधने का मतलब
नीतू देवी धामपुर तहसील में गन्ने के खेत में काम कर रही हैं. वह कहती हैं, “हमारे इलाक़े में तेंदुए का बहुत डर है. वन विभाग ने बताया है कि तेंदुआ पीछे से हमला करता है.”
“सिर के पीछे मुखौटे से उसे लगेगा कि हम उसे देख रहे हैं. इसलिए वह हमला नहीं करेगा. यह कितना कारगर है, पता नहीं. लेकिन कुछ भी न होने से तो यह बेहतर है.”
वन विभाग के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफ़ओ) ज्ञान सिंह इसकी वजह बताते हैं, “अधिकांश मामलों में हमने देखा है कि तेंदुआ जब इंसान को सामने से देखता है और दोनों की आँखें मिलती हैं तो वह हमले नहीं करता. इसी वजह से हमने किसानों को मुखौटा सिर के पीछे लगाने की सलाह दी है.”
“मुखौटे से तेंदुए को ये भ्रम रहेगा कि कोई उसे देख रहा है. हालाँकि, यह कोई नियम नहीं है कि तेंदुआ इंसानों पर सामने से हमला नहीं करता.”
डीएफओ के मुताबिक़, “बंगाल के सुंदरवन में यह प्रयोग लगभग सफल साबित हुआ है. उसे देखते हुए हमने यहाँ यह प्रयोग शुरू किया है. अभी तक पाँच हज़ार किसानों को ये मुखौटे बाँटे जा चुके हैं.”
तेंदुआ इंसान की गर्दन पर हमला करता है. ऐसे में वन विभाग किसानों के लिए ‘नेक प्रोटेक्टर’ की भी व्यवस्था करने की कोशिश कर रहा है.
किसान टेकचंद चौहान का कहना है कि यह तो नहीं पता कि इसका कितना फ़ायदा होगा. उनका सुझाव है कि मुखौटा अगर शेर या बाघ का होता तो शायद तेंदुआ ज्यादा डरता.
वन्यजीव विशेषज्ञ यादवेन्द्र सिंह झाला ने बीबीसी हिंदी को बताया कि यह बात सही है कि जानवर पीछे से हमला करता है लेकिन हर वक्त मास्क लगाना संभव नहीं है.
इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में नहीं है. यह संघर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में दिख रहा है.
तेंदुए का ख़ौफ़ उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी है.
ख़तरे में जान लेकिन रोज़ी-रोटी की मजबूरी
मलकपुर में ही गन्ने की खेत में काम कर रही सरोज देवी ने बताया कि उनका सामना अक्सर इस जानवर से होता है. ये चार हैं. नर-मादा और उनके दो बच्चे. एक दिन दौड़ा भी लिया था. उन्होंने किसी तरह भागकर जान बचाई.
ये पूछे जाने पर कि उनको अभी तक मास्क मिला या नहीं. उनका जवाब था, “नहीं.”
वो कहती हैं, “इसके बावजूद खेत पर काम करना उनकी मजबूरी है.”
ग्रामीण दावा कर रहे हैं कि यहाँ हर रोज़ तेंदुए अपने शावकों के साथ दिखाई दे रहे हैं. डर बना हुआ है.
बीबीसी हिंदी की टीम को खेत में एक पिंजरा भी दिखा. इसे वन विभाग ने लगा रखा था. हालाँकि, उसका दरवाज़ा बंद था.
दूसरी ओर, डीएफ़ओ ने दावा किया कि पिंजरा गन्ने के खेत में था. उन्होंने यह भी कहा कि जो खेत में काम करते हुए दिखाई देते हैं, उन्हें मास्क देते हैं.
खेतों में काम करने वाले अधिकांश लोग ग़रीब हैं. वे खेतों में मज़दूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. इस दौरान उनके साथ खेतों पर छोटे बच्चे, लड़कियाँ और बुज़ुर्ग भी होते हैं.
पिछले कुछ सालों में बिजनौर के अफ़ज़लगढ़, रेहड़, नहटौर, नगीना आदि इलाक़ों में कई ऐसी घटनाएँ भी हुई हैं, जहाँ तेंदुओं ने घर के भीतर घुसकर इंसानों पर हमले किए थे.
वन विभाग ने कई तेंदुओं को पकड़ा भी है. बाद में उन्हें संरक्षित जगहों पर छोड़ दिया गया. हालाँकि, किसान दावा कर रहे हैं कि आस-पास छोड़ने से वे दोबारा इंसानी बस्ती में आ जाते हैं.
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बीबीसी हिंदी को बताया, ”मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए मंत्रालय की तरफ से एक दिशा-निर्देश मार्च 2023 में जारी किया गया था.”
“वन्यजीव से संघर्ष कैसे रोकना है या संघर्ष के प्रमुख स्थान पर कैसे काम करना है- इस दिशा-निर्देश में विस्तार से बताया गया है. इसमें संघर्ष की जगह की पहचान करना और फौरन कार्रवाई भी शामिल हैं. राज्य सरकारों को इस गाइडलाइन का अनुपालन करना है.”
बिजनौर में क्यों है तेंदुए का डर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर में कई गाँवों में बीबीसी हिंदी की टीम गई. सभी जगहों पर लोगों ने बताया कि अक्सर तेंदुआ देखा जाता है. यहाँ इनकी तादाद भी काफ़ी है.
यहाँ गन्ने के खेत बहुत ज़्यादा हैं. इसमें तेंदुए आसानी से छिप जाते हैं. उन्हें शिकार करने में आसानी होती है. इसलिए ये इलाक़ा तेंदुओं के लिए मुफ़ीद है.
डीएफओ ज्ञान सिंह बताते हैं कि बिजनौर जनपद में अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व है. इस जनपद की सीमा राजाजी नेशनल पार्क और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के ‘बफर ज़ोन’ के साथ है. पास में हस्तिनापुर बर्ड सैंक्चुरी भी है. छोटी-बड़ी नदियाँ भी हैं. कुल मिलाकर ये सब भौगोलिक तौर पर इस जानवर के लिए मुफ़ीद साबित हो रहा है.
हालाँकि, डीएफ़ओ जानकारी देते हैं कि तेंदुए के लिए बिजनौर के नजीबाबाद में एक केंद्र बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा रहा है. वहीं, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के वाइल्ड लाइफ़ विभाग के साथ क़रार हुआ है. विभाग मार्च से बिजनौर के तेंदुओं के बारे में अध्ययन शुरू करेगा.
बिजनौर एक गन्ना पट्टी का क्षेत्र है. यहाँ शुगर मिलों में पेराई सत्र शुरू होने पर गन्ने की कटाई होती है. कटाई के दौरान ही तेंदुओं के हमले बढ़ जाते हैं.
बिजनौर के डीएफओ ज्ञान सिंह बीबीसी हिंदी को बताते हैं, “देखिए, बिजनौर में 150 से 200 के लगभग तेंदुए होने का अनुमान है. हालाँकि, वनों से बाहर इनकी कोई गणना नहीं हुई है.”
उधर, ग्रामीणों का दावा है कि ज़िले में तेंदुओं की संख्या काफ़ी ज़्यादा है.
वन्यजीव विशेषज्ञ यादवेन्द्र सिंह झाला का कहना है कि शिकार और तस्करी कम होने से भी तेंदुओं की तादाद बढ़ी है. जंगल में उन्हें खाने की कमी हो रही है. जंगल भी कम हो रहे हैं. इंसानी बस्तियाँ बढ़ रही हैं. इनको इन बस्तियों में गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते जैसे शिकार आसानी से मिल जाते हैं. इसलिए भी तेंदुओं का सामना इंसानों से हो रहा है.
बिजनौर के वन रेंज अफ़सर महेश गौतम विभाग के प्रयासों के बारे में कहते हैं, “वन विभाग कुछ नहीं कर रहा है, यह आरोप तो दुर्भाग्यपूर्ण है. विभाग की ओर से जनवरी 2023 से अब तक सौ से अधिक तेंदुओं पकड़ा जा चुका है. ज़िले में 82 से अधिक पिंजरे लगे हैं.”
एक सवाल के जवाब में महेश गौतम कहते हैं, “देखिए दो सालों के भीतर 32 लोग तेंदुओं के हमले में घायल हुए हैं. इनमें 11 लोग गंभीर रूप से घायल थे. उन्हें मुआवज़ा राशि भी अदा कर दी गई है. इसके अलावा हादसों, मानवीय संघर्ष आदि में 14 तेंदुओं की मौत भी हुई है.”
ऐसा नहीं है कि तेंदुओं का आतंक किसी एक विशेष गाँव या रेंज तक ही सीमित है. हर रेंज में तेंदुओं के इंसानों पर हमले के मामले सामने आए हैं.
भारतीय किसान यूनियन के ज़िलाध्यक्ष सोनू चौधरी तेंदुए के हमले में हुई मौतों और घायलों की संख्या कहीं अधिक होने का दावा करते हैं.
सोनू चौधरी बीबीसी हिंदी से कहते हैं, “ज़िले में तेंदुए दो दर्जन से अधिक लोगों की जान ले चुके हैं. उनके हमले लगातार जारी हैं. हम लंबे समय से वन अधिकारियों से इस पर उचित क़दम उठाने की बात कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है. ऐसे में हमारे सामने आंदोलन का रास्ता ही बचता है. हम चाहते हैं कि हमारी कृषि भूमि से तेंदुओं को हटाकर वनों में भेज दिया जाए.”
हालाँकि, वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे बचाव का प्रयास कर रहे हैं. स्थानीय लोगों को जागरूक कर रहे हैं. नूरपुर ब्लॉक के एक गाँव में बीबीसी ने देखा कि डीएफओ की क़यादत में मास्क बाँटे जा रहे हैं. डीएफओ ने गाँव वालों को सतर्क किया है कि अकेले खेत में न जाएँ. बच्चे-बच्चियों को अकेला न छोड़ें या फिर समूह में ही जाएँ. इस गाँव में भी तेंदुआ देखा गया था.
सुंदरवन मॉडल क्या है
भारत में सबसे पहले इस तरह मुखौटे का इस्तेमाल सुंदरवन के रिज़र्व फॉरेस्ट में साल 1989 में किया गया था. इसमें बाघ के हमलों से बचने के लिए स्थानीय लोगों को मुखौटा दिया गया था.
वन विभाग के मुताबिक वहाँ इसका प्रयोग सफल रहा है. इसी को देखते हुए प्रयोग को तौर पर तेंदुए के हमले से बचने के लिए बिजनौर में यह शुरुआत की गई है.
हालाँकि, वन्यजीव विशेषज्ञ यादवेन्द्र सिंह झाला का कहना है कि अब सुंदरवन में कोई इसका इस्तेमाल नहीं करता है. यह कितना सफल हुआ है, कहना मुश्किल है.
भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की फ़रवरी 2024 में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, देश में तेंदुओं की आबादी तकरीबन 13 हज़ार 874 है.
सबसे अधिक तेंदुए की आबादी आंध्रप्रदेश के श्रीशैलम में नागार्जुन सागर और मध्यप्रदेश में पन्ना और सतपुड़ा में है.
(रिपोर्ट: साथ में बिजनौर से शहबाज़ अनवर)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
SOURCE : BBC NEWS