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भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी

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भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने पिछले दिनों दावा किया कि भारत प्रशासित कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान से आतंकवादियों की घुसपैठ हो रही है. पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने भारतीय सेनाध्यक्ष के इस बयान की कड़ी निंदा की है.

पाकिस्तानी विदेश कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 13 और 14 जनवरी को भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सेना प्रमुख द्वारा लगाए गए निराधार आरोपों और दावों को पाकिस्तान ख़ारिज करता है.

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सोमवार को सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनरल द्विवेदी ने आरोप लगाया था कि उनका पड़ोसी देश अब भी भारत प्रशासित कश्मीर में आतंकवादियों को भेज रहा है.

उन्होंने दावा किया था कि ‘साल 2024 में मारे गए 73 आतंकियों में से 60 फ़ीसदी पाकिस्तानी थे, जबकि मौजूदा समय में सक्रिय 80 फीसदी या इससे अधिक आतंकी पाकिस्तानी हैं.’

भारतीय सेना प्रमुख के अनुसार, फरवरी 2001 के बाद से नियंत्रण रेखा पर प्रभावी युद्धविराम है. इसके बावजूद, सशस्त्र आतंकवादियों की घुसपैठ जारी है और ‘आतंकवाद का बुनियादी ढांचा’ अब भी मौजूद है.

जनरल द्विवेदी ने कहा, “हाल के महीनों में उत्तर कश्मीर और डोडा-किश्तवाड़ इलाके में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ी हैं.”

सेना प्रमुख ने कहा कि कश्मीर में ‘पर्यटन ने अब आतंकवाद’ की जगह ले ली है.’

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

कश्मीर में सुरक्षा बल

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पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने इस बारे में एक बयान जारी किया है. बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान भारतीय रक्षा मंत्री और चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ के निराधार आरोपों को ख़ारिज करता है.

बयान में कहा गया है, “जम्मू-कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विवादित क्षेत्र है, जिसकी अंतिम स्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार निर्धारित की जानी है. इस संदर्भ में, भारत के पास जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के क्षेत्रों पर काल्पनिक दावे करने का कोई कानूनी या नैतिक आधार नहीं है.”

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारतीय नेतृत्व की इस तरह की बयानबाज़ी से दुनिया का ध्यान जम्मू-कश्मीर में गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और भारत की अवैध कार्रवाइयों से नहीं हट सकता. ये उपाय कश्मीरी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए वैध और निष्पक्ष संघर्ष को दबाते हैं.

बयान में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान इस बात पर भी ज़ोर देता है कि इस तरह के भड़काऊ बयान क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए नुक़सानदेह हैं.

बयान में कहा गया है, “दूसरों के ख़िलाफ़ निराधार आरोप लगाने के बजाय, भारत को टार्गेट किलिंग्स, तोड़फोड़ के कृत्यों और विदेशी धरती पर राज्य प्रायोजित आतंकवादी साजिशों में अपनी भागीदारी का जवाब देना चाहिए.”

भारत और पाकिस्तान ने अतीत में तीन बड़े युद्ध लड़े हैं और ऐसे भी कई मौके आए जब दोनों युद्ध के कगार से वापस आए हैं. दोनों देशों के अधिकारी एक-दूसरे पर आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाते रहे हैं.

पिछले साल दिसंबर के आखिरी हफ्ते में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने दावा किया था कि भारत ने इस साल 25 बार सीजफायर का उल्लंघन किया है.

कितना अहम है जनरल द्विवेदी का बयान?

कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बल (फ़ाइल फोटो)

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विश्लेषक और पर्यवेक्षक भारतीय सेना के प्रमुख जनरल द्विवेदी के बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के नैरेटिव की एक कड़ी बता रहे हैं.

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और लेखक गुलाम रसूल शाह ने बीबीसी उर्दू से कहा, “भारत का सैन्य और नागरिक नेतृत्व कई वर्षों से पाकिस्तान के प्रति नरम रहा है. जनरल द्विवेदी वास्तव में इन आंकड़ों से यह संदेश देना चाहते थे कि अधिकतर कश्मीरियों ने वर्तमान स्थिति को स्वीकार कर लिया है और निर्माण, विकास और पर्यटन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है.”

याद दिला दें कि 5 अगस्त 2019 को तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 को हटा दिया था, इस अनुच्छेद के तहत कश्मीर को विशेष शक्तियां प्राप्त थीं. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.

गुलाम रसूल शाह का कहना है कि अब भारतीय सेना का ध्यान मुख्य रूप से चीन पर है.

गुलाम रसूल कहते हैं, “जनरल द्विवेदी ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वीकार किया कि लद्दाख में चीनी सीमा पर स्थिति संवेदनशील है और भारत में हर कोई इस बात से सहमत है कि भारत एक ही समय में दो मोर्चों पर नहीं लड़ सकता है.”

भारत और चीन के बीच रिश्ते भी पिछले कई सालों से तनावपूर्ण हैं और प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने अपने प्रशासन के तहत कश्मीर के गांदरबल जिले में लद्दाख राजमार्ग पर एक सुरंग भी बनाई है, जिससे भारतीय सेनाएं चीनी सीमा तक जल्दी पहुंच सकेंगी. इसे सबसे महत्वपूर्ण रक्षा परियोजनाओं में से एक माना जा रहा है.

हालांकि दूसरे राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जनरल द्विवेदी के बयान के राजनीतिक मायने को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

पत्रकार हारून ऋषि कहते हैं कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने (भारत प्रशासित कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी) पाकिस्तानी या कश्मीरी हैं. ख़ास बात यह है कि सेना प्रमुख ने संकेत दिया कि कश्मीर में चरमपंथ अब उनके लिए बड़ी चुनौती नहीं है, बल्कि अब असली चुनौती चीन है.

हारून कहते हैं, “यह स्वीकार करना भी ज़रूरी है कि एलओसी के पास के इलाकों में लाखों सैनिकों की मौजूदगी के बावजूद वहां 15,000 अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करने की ज़रूरत पड़ी. इसका मतलब यह है कि चरमपंथ का पूरी तरह से खात्मा अभी तक संभव नहीं हो सका है.”

क्या सचमुच कश्मीर में पाकिस्तानी चरमपंथी मौजूद हैं?

भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा बल (फ़ाइल फोटो)

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इस सवाल का जवाब देते हुए संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद निरोधक कार्यालय से जुड़े रहे मशहूर लेखक लव पुरी कहते हैं कि यह एक गलतफहमी है.

“एलओसी के सबसे करीबी जिले पुंछ में जब चरमपंथ शुरू हुआ, तो पाकिस्तान की ओर से आए सभी चरमपंथी पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से थे. उनकी भाषा, रहन-सहन और संस्कृति पुंछ के लोगों जैसी ही है. उन्हें विदेशी आतंकवादी नहीं कहा जा सकता.”

लव पुरी अपनी पुस्तक ‘मिलिटेंसी इन जम्मू एंड कश्मीर’ में लिखते हैं कि ‘1947 से पहले, पुंछ अंग्रेजों की एक नियमित जागीर थी और यहां के लोगों के संपर्क और संस्कार अविभाजित पंजाब के इलाकों ख़ासकर रावलपिंडी के साथ बहुत गहरे थे. यहां चरमपंथ इसलिए भी पनपा क्योंकि पुंछ श्रीनगर और जम्मू से बहुत दूर है और गरीबी, बेरोजगारी और विकास की कमी ने भी लोगों को चरमपंथ की ओर धकेला.’

इसी तरह, वह राजौरी के बारे में लिखते हैं कि राजौरी का क्षेत्र नौशेरा भारत के विभाजन से पहले पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के मीरपुर जिले का हिस्सा था. लव पुरी के मुताबिक, पुंछ और राजौरी जिलों और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच सांस्कृतिक और भाषाई सद्भाव है.” यही कारण है कि कश्मीर के दूसरी तरफ से लोग बड़ी संख्या में लड़ने के लिए यहां आए थे.’

यहां ये बता दें कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को दावा किया था कि ‘हमने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद को खत्म कर दिया है और मार्च 2026 तक भारत से नक्सलवाद का भी सफाया किया जाएगा.’

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत प्रशासित कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास, यहां तक ​​कि कठुआ और रियासी के हिंदू-बहुल इलाकों में भी सशस्त्र हमले हुए हैं, जिससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ​​चिंतित हैं.

बता दें कि 2024 में जम्मू के 10 में से आठ जिलों में सशस्त्र हमले हुए थे, जिसमें 18 जवानों और 13 हथियारबंद चरमपंथियों समेत 44 लोग मारे गए थे.

इस दौरान भारत प्रशासित कश्मीर में कुछ हमले हुए, लेकिन कुल मिलाकर घाटी में स्थिति शांत रही. सैन्य अधिकारियों का दावा है कि पाकिस्तान की ओर से सशस्त्र घुसपैठ के बिना ऐसे हमले संभव नहीं हैं.

मारा गया चरमपंथी पाकिस्तानी था या कश्मीरी?

भारतीय सुरक्षा बल (फ़ाइल फोटो)

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पिछले चार सालों में भारत प्रशासित कश्मीर में झड़पों में मारे गए चरमपंथियों के शव उनके परिवारों को नहीं दिए जाते हैं, बल्कि उन्हें पुलिस की निगरानी में सीमावर्ती इलाकों में दफनाया जाता है.

एक जाने-माने वकील ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ‘ऐसे में यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि मारे गए चरमपंथी कश्मीरी थे या पाकिस्तानी. जब कोई गैर-कश्मीरी चरमपंथी भी मारा जाता है तो यही कहा जाता है कि विदेशी आतंकवादी मारा गया, कोई पहचान उजागर नहीं की जाती. अब आपको कैसे पता चलेगा कि मारा गया आतंकवादी पाकिस्तानी था या कश्मीरी?’

हालाँकि भारतीय सेना के एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि भारत प्रशासित कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में जनरल द्विवेदी का बयान ज़मीनी हक़ीक़तों पर आधारित है.

उन्होंने कहा कि इस संबंध में जागरूकता पैदा करना सैन्य नेतृत्व का कर्तव्य है ताकि जमीन पर रक्षा मशीनरी सतर्क रहे.

उन्होंने कहा, “जनरल द्विवेदी ने यही किया. यह एक अनुमान है, आप आतंकवादियों की गिनती नहीं कर सकते.”

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