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शिवसेना के इतिहास में विद्रोह और विभाजन के कई उदाहरण हैं.
जब छगन भुजबल और नारायण राणे जैसे अग्रणी नेताओं ने शिवसेना छोड़ दी थी, तो कुछ समय के लिए पार्टी में अशांति फैल गई थी.
तीन साल पहले एकनाथ शिंदे के विद्रोह के कारण शिवसेना में एक बार फिर विभाजन हो गया था. इससे यह बहस भी शुरू हो गई कि आख़िर कौन-सी शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की है.
लेकिन, अतीत में हुए एक विद्रोह ने शिवसेना में भावनात्मक तूफ़ान पैदा कर दिया था, वह विद्रोह था राज ठाकरे का.

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महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार ये चर्चा रही है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे किसी न किसी समय एक साथ आएंगे.
बीते दिनों दोनों तरफ के नेता, कार्यकर्ता और उनके आसपास के रिश्तेदारों के बयानों से, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि दोनों नेता साथ आ सकते हैं.
हालाँकि, यह पहली बार है जब दोनों नेताओं ने इस मामले पर खुलकर टिप्पणी की है. लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि क्या दोनों सचमुच एक साथ आएंगे?
सवाल ये भी है कि अगर वे साथ आएंगे, तो क्या गठबंधन बनाएंगे या फिर एक ही संगठन में रहकर लड़ेंगे? इस बात को लेकर भी सवाल और संभावनाएं पैदा हो गई हैं कि क्या आगामी नगर निगम चुनावों में दोनों एक-दूसरे की मदद करेंगे?
अचानक क्यों शुरू हुई चर्चा?

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19 अप्रैल को इन दोनों नेताओं के एक साथ आने की चर्चा फिर से शुरू होने का कारण दोनों नेताओं के दिए बयान हैं.
राज ठाकरे ने अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक महेश मांजरेकर के यूट्यूब चैनल को एक इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने इस बारे में सकारात्मक बात की.
राज ठाकरे ने इस दौरान कहा, “किसी भी बड़ी बात के लिए, हमारे विवाद और झगड़े बहुत छोटे और मामूली हैं. महाराष्ट्र बहुत बड़ा है. इस महाराष्ट्र के अस्तित्व के लिए, मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए, ये विवाद और झगड़े बहुत महत्वहीन हैं. इस वजह से, मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना बहुत मुश्किल है.”
उन्होंने कहा, “लेकिन, यह इच्छा का मामला है. यह केवल मेरी इच्छा का मामला नहीं है. हमें महाराष्ट्र की पूरी तस्वीर को देखना होगा. मुझे लगता है कि सभी पार्टियों के मराठी लोगों को एक साथ आकर एक पार्टी बनानी चाहिए.”
उद्धव ठाकरे ने भी इस बयान पर तुरंत और सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. परंतु यह एक सशर्त प्रतिक्रिया है.
उद्धव ने कहा, “मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने को तैयार हूं. मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं. लेकिन, एक तरफ उनका (बीजेपी का) समर्थन करना और बाद में समझौता करना और उनका विरोध करना, इससे काम नहीं चलेगा.”
शनिवार को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “पहले ये तय कर लें कि आप महाराष्ट्र के रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति का स्वागत नहीं करेंगे और उनके जैसा व्यवहार नहीं करेंगे. मैंने मेरे स्तर पर मतभेदों को सुलझा लिया है, लेकिन पहले इस मामले पर निर्णय किया जाना चाहिए.”
उद्धव ने कहा, “मराठी लोगों को यह तय करना चाहिए कि हिंदुत्व के हित में मेरे साथ रहना है या बीजेपी के साथ. हमें सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने शपथ लेनी चाहिए कि हम चोरों से नहीं मिलेंगे और जाने-अनजाने उन्हें बढ़ावा नहीं देंगे. इसके बाद हमें ख़ुशी जाहिर करनी चाहिए.”

राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ते वक्त कहा था कि उन्हें विट्ठल से कोई शिकायत नहीं है, बल्कि उनके आसपास मौजूद बुरे लोगों से शिकायत है.
यहां विट्ठल से उनका आशय तत्कालीन शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे से था.
इसके बाद, राज ठाकरे ने शिवसेना के लिए ‘जय महाराष्ट्र’ का नारा दिया और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया.
अपने शुरुआती वर्षों में शिवसेना की तरह, मनसे ने भी मराठी भाषा का मुद्दा, मराठी बोर्ड का मुद्दा आदि जैसे मुद्दों को उठाकर सफलता हासिल की.
2009 के विधानसभा चुनावों में 13 मनसे विधायक चुने गए और मनसे-बीजेपी गठबंधन को लोकसभा में भी झटका लगा.
तब शिवसेना प्रमुख ने साक्षात्कारों में यह भी कहा कि राज ठाकरे को नज़रअंदाज़ किया गया है और उनके जाने से वे निश्चित रूप से दुखी हैं. लेकिन, फिर भी उद्धव और राज एक साथ नहीं आ सके.
इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव के दौरान ही शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का निधन हो गया. इसके बाद से उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अपने-अपने संगठन का प्रबंधन करते रहे हैं.
चुनाव के दौरान भी वे एक-दूसरे पर सीधे हमले करते रहे.
राज ठाकरे ने बयान दिया था कि जब बालासाहेब ठाकरे बीमार थे, तो उन्हें तेल वाले वड़े खिलाए गए थे और मैं उन्हें चिकन सूप पिला रहा था. इसके बाद भी शिवसेना ने जवाब देना जारी रखा.
चंदूमामा ने की कोशिश

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वैसे दोनों दलों के बीच या संगठनों के बीच कोई वास्तविक संघर्ष नहीं था. लेकिन मनसे पर शिवसेना का हमला और उस पर मनसे की प्रतिक्रिया, ये लगातार जारी रही.
फिर भी चर्चा थी कि दोनों नेता किसी न किसी समय एक साथ आ जाएंगे. भले ही दोनों पार्टियों के उम्मीदवार एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े हों, लेकिन चर्चा यह रही कि वे एक साथ आएंगे.
दोनों ठाकरे भाइयों के मामा चंदूमामा ने भी कहा था कि वह दोनों को साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं.
लेकिन दोनों के एक साथ आने का मुद्दा परिवार, पार्टी, ईर्ष्या, आरोप-प्रत्यारोप, राजनीतिक संगठन और भावनाओं के चक्र में घूमता रहा.
बेशक, दोनों नेता पारिवारिक विवाहों या इसी तरह के अन्य आयोजनों में शामिल होते रहे. दोनों नेताओं और उनके परिवारों को हाल ही में एक पारिवारिक समारोह में भाग लेते देखा गया.
शरद पवार की उपस्थिति

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इस दौरान जो सबसे महत्वपूर्ण बात हुई, वह यह थी कि दोनों भाई कुछ समय के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार के क़रीब आ गए.
2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन शरद पवार की पार्टी के ख़िलाफ़ लड़ रहा था.
जैसा कि चुनावों के दौरान होता है, उद्धव ठाकरे ने चुनाव प्रचार के दौरान शरद पवार पर हमला किया था, जबकि राज ठाकरे, शरद पवार के क़रीबी हो गए थे.
इस चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ आक्रामक प्रचार में शरद पवार, असदउद्दीन ओवैसी, छगन भुजबल और राज ठाकरे ने प्रमुख भूमिका निभाई थी.
हालांकि, नतीजों के बाद शरद पवार और राज ठाकरे के बीच नजदीकियां ज़्यादा दिन तक नहीं रहीं.
मराठी मुद्दे के साथ-साथ राज ठाकरे ने अचानक हिंदुत्व का मुद्दा भी उठा लिया. बालासाहेब ठाकरे की तरह भगवा शॉल पहने हुए उनकी तस्वीरें भी अख़बारों में प्रकाशित हुईं.
उन्होंने शरद पवार की भी आलोचना शुरू कर दी, जिनकी कुछ वक्त पहले तक वो साक्षात्कारों और कार्यक्रमों में प्रशंसा करते थे. उन्होंने कहा कि शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठन के बाद महाराष्ट्र में जातिवाद बढ़ गया.
इस वर्ष विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने वाली कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना चुनाव परिणाम के बाद एक साथ आ गईं.
राज ठाकरे ने चुनाव के बाद पार्टियों के इस तरह एक साथ आने की कड़ी आलोचना की थी. आज भी वो अक्सर इस मुद्दे का ज़िक्र करते हैं.
एकनाथ शिंदे ने छोड़ी थी पार्टी

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तीन साल पहले एकनाथ शिंदे और उसके साथ कई पार्टी नेताओें ने शिवसेना छोड़कर, बीजेपी के साथ सरकार बनाई. इस घटना के बाद संगठन में काफी हलचल मची थी.
नेताओं, पार्टी कार्यालयों, चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम से जुड़े विवाद अदालत में सुने गए. दोनों पक्ष असल शिवसेना पार्टी होने का दावा करते रहे.
हालाँकि, इस दौरान भी एकनाथ शिंदे और मनसे के बीच रिश्ते अच्छे बने रहे. एकनाथ शिंदे के क़रीबी नेताओं ने राज ठाकरे से मिलना, चर्चा करना और साथ लंच करना जारी रखा.
अभी इसी सप्ताह एकनाथ शिंदे के साथ घूमने गए उदय सामंत कभी राज ठाकरे से मिलते रहे हैं, तो कभी दादा भूसे राज ठाकरे के घर जाते रहे हैं. यह सिलसिला नियमित गति से चलता रहा है.
अब तो यहां तक चर्चा होने लगी है कि एकनाथ शिंदे और मनसे नगर निगम चुनाव में एक साथ उतर सकते हैं.
हालाँकि, उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के ख़िलाफ़ तलवार को और अधिक धार देने का फ़ैसला किया है.
उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को ‘एसामशी’ (एकनाथ संभाजी शिंदे) कहना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं, राज ठाकरे को जवाब देते हुए भी उद्धव ने शिंदे को ‘एसामशी’ बताया.
क्या यह जोड़ी साथ रह पाएगी?

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भले ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने बीते दिनों साथ आने को लेकर सकारात्मक बयान दिए हों, लेकिन पिछले 20 वर्षों में बहुत पानी बह चुका है. इस बीच, दोनों के संगठनों के बीच कटु आलोचना और संघर्ष जारी रहा है.
इन दोनों नेताओं के बेटे 2024 का विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे. दोनों के निर्वाचन क्षेत्र भी पास-पास ही थे.
वर्ली निर्वाचन क्षेत्र में आदित्य ठाकरे को मनसे के संदीप देशपांडे ने कड़ी चुनौती दी, लेकिन आदित्य जीत गए. माहिम निर्वाचन क्षेत्र में अमित ठाकरे को शिवसेना (यूबीटी गुट) के महेश सावंत ने हराया.
लेकिन क्या ये नेता चुनाव लड़ने के बाद अपने घर तक एक साथ आ पाएंगे? ये सवाल अभी भी कायम है.
राज ठाकरे के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मनसे नेता और पूर्व नगरसेवक संदीप देशपांडे ने कहा कि 2017 के नगर निगम चुनावों के अनुभव को देखते हुए यह असंभव लगता है.
देशपांडे ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी को भी गठबंधन का प्रस्ताव नहीं दिया गया है.
इस बीच, एकनाथ शिंदे के क़रीबी नेता उदय सामंत ने राज ठाकरे को लेकर राय व्यक्त की.
उन्होंने कहा, “उनके राजनीतिक स्वभाव को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि वह किसी की शर्तों के अधीन निर्णय लेंगे. वह स्वतंत्र सोच रखते हैं. अगर कोई उनसे कहता है कि मेरी शर्त मानकर मेरे पास आ जाओ, तो मुझे नहीं लगता कि वह ऐसी बात मानेंगे.”

राज्यसभा सांसद संजय राउत ने दोनों नेताओं के रुख़ पर प्रतिक्रिया दी है.
मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र विरोधी ताकतों का साथ होना सही नहीं है. बीजेपी और उसके साथी, छत्रपति शिवाजी महाराज और बालासाहेब ठाकरे का अस्तित्व मिटाना चाहते हैं.”
“वे ठाकरे नाम को ख़त्म करना चाहते हैं. ऐसी स्थिति में यदि दोनों ठाकरे ने प्रतिक्रिया दी है और बात की है तो महाराष्ट्र इसका स्वागत करेगा. लेकिन, हम इंतज़ार करेंगे और देखेंगे कि अब क्या होता है.”
उन्होंने कहा, “हम निश्चित रूप से इसे सकारात्मक दृष्टि से देख रहे हैं. अभी हमारी भूमिका इंतज़ार करने और हालात पर नज़र रखने की है.”

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उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने के सकारात्मक संकेत दिए जाने पर वरिष्ठ शिवसैनिक रहे छगन भुजबल (मौजूदा वक्त में एनसीपी नेता), ने उन्हें बधाई दी है. उन्होंने कहा है कि साथ आने से ठाकरे बंधुओं की ताकत निश्चित रूप से बढ़ेगी.
इसके साथ ही एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के बीच हुई मुलाक़ात को लेकर भुजबल ने कहा, “मुंबई महानगर पालिका चुनाव के चलते हर कोई राज ठाकरे के साथ होने का फ़ायदा चाहता है.”
भुजबल ने कहा, “2014 में दोनों ठाकरे के पास एक साथ आने का मौक़ा था, उस समय सभी अलग-अलग लड़ रहे थे. कई लोग और शिवसैनिक चाहते हैं कि दोनों ठाकरे एक साथ आएं.”
“मुझे नहीं लगता कि यह इतनी जल्दी होगा. लेकिन, अगर हम पिछले कुछ सालों की राजनीति देखें तो कुछ भी हो सकता है, दोनों के साथ आने पर निर्भर है, यह देखना बाकी है कि स्थितियां स्वीकार्य हैं या नहीं.”
वहीं महाराष्ट्र कांग्रेस नेता हुसैन दलवाई कहते हैं कि दोनों भाई इकट्ठा आते हैं और परिवार एक होता है, तो उसका विरोध करने का कोई सवाल ही नहीं है.
उन्होंने कहा, “पहला तो ये कि राज ठाकरे को अलग होनी ही नहीं चाहिए था. दोनों के इकट्ठा रहकर महाराष्ट्र को बचाना चाहिए दूसरा आज महाराष्ट्र के ऊपर ख़तरा है, महाराष्ट्र के एयरपोर्ट और इंडस्ट्रीज़ गुजरात जा रहे हैं.”
“दोनों के विचार तो एक ही हैं. लेकिन राज ठाकरे बीच में थोड़ा उनके (बीजेपी) साथ थे. अभी अगर उनको ध्यान में आया होगा कि महाराष्ट्र बचाना है, मराठी बचाना है तो उन्हें साथ आना चाहिए. उन्हें एक साथ मिलकर इंडिया गठबंधन की तरफ से लड़ना चाहिए और बीजेपी को हराना चाहिए.”
झुकना है या नहीं झुकना है?

छगन भुजबल ने कहा, “जब केंद्र में बीजेपी जैसी आक्रामक और राष्ट्रीय पार्टी सत्ता में होती है, तो हर राज्य में क्षेत्रीय दलों के लिए चुनौती खड़ी हो जाती है. बीजेपी यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि देश में हर जगह उसकी सत्ता हो.”
वरिष्ठ पत्रकार संदीप प्रधान कहते हैं, “ऐसी स्थिति में अगर क्षेत्रीय दल अलग-अलग लड़ेंगे, तो इसका भी असर होगा. अगर महाराष्ट्र में स्थानीय पार्टियों का अस्तित्व अब ख़त्म हो गया है तो राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को यह एहसास हो गया होगा कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे.”
लेकिन, अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ आएं या ऐसा कोई राजनीतिक प्रयोग करने की कोशिश करें, तो उनके सामने कई चुनौतियां आएंगी.
संदीप प्रधान कहते हैं, “अब तक हमने उन दोनों ही नेताओं से काफ़ी बातें की हैं. दोनों का कहना था कि जब हम साथ आएंगे तो यह सबसे ज़्यादा ज़रूरी होगा कि हम एक-दूसरे को स्थान दें.”
“उद्धव ठाकरे की संगठनात्मक कुशलता और राज ठाकरे का करिश्मा दोनों दलों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है. उद्धव ठाकरे को उनकी राजनीतिक असुरक्षा की भावना से भी पार पाना होगा. वहीं राज ठाकरे को भी 24 घंटे राजनीति के बारे में सोचना होगा.”
तीन ‘सेनाओं’ को साथ लाने का प्रयोग?

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एक तरफ राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने की अटकलें लगाई जा रही हैं तो दूसरी तरफ शिवसेना के दोनों गुटों के साथ आने को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है.
हाल के वक्त में शिवसेना में हुए विभाजन के बाद की घटनाओं का क्रम किसी से छिपा नहीं है.
पत्रकारों ने अब तक शिवसेना के दोनों गुटों से यही सवाल पूछे हैं कि क्या इसके बाद दोनों शिवसेना पार्टियां भी एक साथ आएंगी?
लेकिन, दोनों समूहों की एक-दूसरे को लेकर की गई तीखी आलोचना और आरोप-प्रत्यारोप के बाद, यह सवाल उठ रहा है कि निकट भविष्य में ऐसा होने की कितनी संभावना है.
लेकिन हाल में राज ठाकरे ने इंटरव्यू में जो बयान दिया वो और उसकी टाइमिंग भी महत्वपूर्ण है.
कुछ दिन पहले 15 अप्रैल को उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, राज ठाकरे के आवास पर लंच के लिए गए थे. इसके बाद शिवसेना शिंदे गुट और मनसे के बीच गठबंधन को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई थीं.
चूंकि, राज ठाकरे का बयान इस बैठक के तुरंत बाद आया, तो ये चर्चा शुरू हो गई कि इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति तो नहीं है? या फिर किसी नये राजनीतिक प्रयोग की चर्चा शुरू हो गयी है.
इस संबंध में संदीप प्रधान ने कहा, “हाल ही में एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे के साथ लंच किया था. इसके बाद यह इंटरव्यू आया. क्या इसमें बीजेपी या कोई और राजनीतिक एजेंडा है?”

राज ठाकरे गठबंधन बनाएं, कुछ सीटें जीतें, कुछ सीटों पर उम्मीदवार न उतारें, तो इसका असर उद्धव ठाकरे पर पड़ सकता है.
संदीप प्रधान कहते हैं, ”इसकी भी जांच होनी चाहिए कि यह राजनीतिक चाल है या नहीं, या फिर राज ठाकरे को स्पष्ट रुख़ अपनाना चाहिए.”
“इसका दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि अगर मुंबई महानगर पालिका में मनसे और दोनों शिवसेना पार्टियों को बहुमत मिलता है, तो तीनों एक साथ महानगर पालिका का नेतृत्व कर सकती हैं.”
प्रधान ने कहा, “अगर तीनों एक साथ आ जाएं तो शिवसेना आगे बढ़ सकती है. यह राजनीतिक प्रयोग सफल हो सकता है यदि राज ठाकरे तीन-पक्षीय गठबंधन के केंद्र में रहें, और राज ठाकरे को बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने का श्रेय भी मिल सकता है.”
बेशक, ये सभी राजनीतिक संभावनाएं हैं. लेकिन, मुंबई महानगर पालिका चुनाव के लिए शिवसेना-मनसे के एक साथ आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
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SOURCE : BBC NEWS