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माता-पिता के साथ बच्ची

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मध्य प्रदेश के इंदौर में ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित तीन साल की एक बच्ची को ‘संथारा’ व्रत कराए जाने का मामला सामने आया है. बच्ची की मौत हो गई है.

‘गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ ने इस बच्ची के नाम सबसे कम उम्र में संथारा का संकल्प लेने का विश्व कीर्तिमान प्रमाण पत्र भी जारी किया है.

जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति या जैन मुनि अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जी लेते हैं और शरीर उनका साथ देना छोड़ देता है तो उस वक्त वो संथारा ले सकते हैं.

लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि इस साढ़े तीन साल की बच्ची ने क्या अपनी मर्ज़ी से संथारा लिया था?

मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस मामले में संज्ञान लिया है और इंदौर के कलेक्टर को नोटिस जारी किया है.

बच्ची की मां ने क्या कहा?

बच्ची की मां वर्षा जैन

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बच्ची के पिता पीयूष जैन ने बताया कि बच्ची का इलाज कराया गया था और इसके बाद भी ठीक नहीं होने पर जैन मुनिश्री के सुझाव पर उन्होंने बच्ची को संथारा दिलाया.

अपनी बेटी वियाना जैन को संथारा दिलाने को मां वर्षा जैन सही ठहराती हैं

वियाना का जन्म 20 नवंबर 2021 को हुआ था. उनकी मां वर्षा जैन ने बताया कि जनवरी 2025 से वियाना के सिर में दर्द रहने लगा था और उसे उल्टियां होनी शुरू हो गई. फिर डॉक्टर से दिखाने के बाद पता चला कि उसके ब्रेन में ट्यूमर है. इसके बाद मुंबई में बच्ची का ऑपरेशन हुआ और वो रिकवर हो गई.

हालांकि, 15 मार्च से फिर उसके सिर में दर्द रहने लगा और इंदौर में जांच के बाद पता चला कि ट्यूमर फिर से हो गया है. वर्षा जैन ने बताया कि डॉक्टरों का कहना था कि दोबारा इतनी जल्दी सर्जरी नहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने दवाइयां दीं.

वर्षा जैन कहती हैं कि बाद में बच्ची की हालत और ख़राब रहने लगी और उसने खाना-पीना लगभग बंद ही कर दिया. 21 मार्च को डॉक्टर की सलाह पर उसे फूड पाइप लगवा दिया गया.

उन्होंने बताया, “21 मार्च को बच्ची को हम गुरुदेव अभिग्रहधारी डॉक्टर राजेश मुनि महाराज के पास ले गए, जहां उन्होंने कहा कि बच्ची का अंत समय नज़दीक है और उसे संथारा व्रत दिला देना चाहिए. इसके बाद रात नौ बजकर 55 मिनट पर संथारा की प्रक्रिया की गई और रात में ही 10 बजकर 5 मिनट पर बच्ची की मौत हो गई.”

बच्ची को संथारा दिलाने की सलाह देने वाले मुनि क्या कहते हैं?

संथारा को लेकर पहले भी विवाद हो चुका है

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अब तक 108 संथारा कराने और संथारा विषय पर पीएचडी करने का दावा करने वाले डॉक्टर राजेश मुनि महाराज से बीबीसी हिंदी ने जब इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा, “जब 3 साल 4 महीने की वियाना मेरे पास लाई गई तो मैं ये देख कर समझ गया था कि अब बच्ची के पास ज़्यादा समय नहीं है इसीलिए मैंने वियाना के माता-पिता से कहा कि इसे संथारा करा देना चाहिए.”

“बच्ची के माता-पिता ने खाने-पीने के कड़े नियमों के बारे में पूछा तो मैंने कहा था कि अगर वियाना कुछ मांगेगी या दवाई देना होगा तो दे देंगे. इस पर बच्ची के माता-पिता राज़ी हो गए.”

बच्ची के पिता पीयूष जैन कहते हैं कि उनकी बेटी को वह अस्पताल ले जाते और वहां उसकी मृत्यु हो जाती उससे अच्छा है कि जैन धर्म के अनुसार उसका संथारा हुआ और उसकी मृत्यु धार्मिक क्रिया के तहत हुई.

रमेश भंडारी ऑल इंडिया जैन समाज के अध्यक्ष हैं. वो इस मामले पर कहते हैं कि ‘संथारा के लिए किसी के ऊपर दबाव नहीं बनाया जाता है. ये तब होता है जब व्यक्ति के लिए हर तरफ से दरवाजे बंद हो जाते हैं और डॉक्टर के पास भी उसका इलाज न हो.’

वो कहते हैं कि हमने तो इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ाई लड़ी है.

संथारा को लेकर पहले भी हुआ है विवाद

संथारा को एक धार्मिक संकल्प माना जाता है

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जैन धर्म में संथारा आस्था का विषय है पर कुछ लोग इस प्रथा का विरोध करते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि मानवतावादी दृष्टिकोण से यह प्रथा आत्महत्या का स्वरूप है.

साल 2006 में संथारा के ख़िलाफ़ एक जनहित याचिका दायर हुई थी. याचिका में कहा गया था कि संथारा की प्रथा आत्महत्या जैसी ही है और इसे आधुनिक समय में मान्यता न दी जाए.

इस याचिका में ये भी कहा गया कि संथारा लिए हुए व्यक्ति के घर का समाज में स्थान बढ़ जाता है और इस वजह से इस प्रथा को परिवार की तरफ़ से भी प्रोत्साहन दिया जाता है.

2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस याचिका पर फ़ैसला सुनाया.

राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को भारतीय दंड विधान की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था.

हालांकि, जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक इकाइयों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी.

सुप्रीम कोर्ट के वकील तनुज दीक्षित इस बारे में कहते हैं, “अगर हम संथारा की बात करें तो जैन धर्म के लोग इसे एक पवित्र प्रक्रिया मानते हैं. इसमें अन्न का त्याग किया जाता है. ये मामला पहले कोर्ट में भी जा चुका है और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में संथारा प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दे दी थी.”

उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा था कि ये धार्मिक विकल्प है, इसे क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.”

तनुज दीक्षित कहते हैं, “इस मामले में हमने ये देखा कि बच्ची ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी और बच्ची के पास समय नहीं था. बच्ची की मौत संथारा के 10 मिनट बाद ही हो गई थी. बच्ची को न तो प्रताड़ित किया गया और न ही भूखा-प्यासा रखा गया.”

पुलिस ने क्या बताया?

संथारा पर पुलिस का क्या है कहना

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इस मामले में पुलिस को अब तक कोई शिकायत नहीं मिली है.

इंदौर पुलिस कमिश्नरेट के एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया ने कहा कि गांधीनगर पुलिस थाना क्षेत्र, एडोरम पुलिस थाना क्षेत्र, धोनी थाना क्षेत्र से जानकारी ली गई है, वहां अभी कोई शिकायत नहीं दर्ज की गई है.

मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने इस मामले में बीबीसी से कहा कि उनके संज्ञान में तीन साल चार महीने की बच्ची के संथारा लेने का मामला सामने आया है.

सवाल यह उठता है कि संथारा में स्वेच्छा से अन्न-जल त्यागा जाता है, लेकिन यह बच्ची तो तीन साल चार महीने की है तो उसकी मर्ज़ी कैसे हो सकती है?

उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश बाल आयोग ने इस मामले में संज्ञान लिया है और इंदौर के कलेक्टर को नोटिस जारी किया है.

उन्होंने कहा कि कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद जांच के आधार पर देखेंगे कि इस मामले में क्या हुआ है और क्या कार्रवाई होनी चाहिए.

संथारा का मतलब क्या है

संथारा लेने की धार्मिक आज्ञा किसी गृहस्थ और मुनि या साधु को है.

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जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति या जैन मुनि अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जी लेता है और शरीर उसका साथ देना छोड़ देता है तो उस वक्त वो संथारा ले सकता है.

संथारा को संलेखना भी कहा जाता है. संथारा एक धार्मिक संकल्प है. इसके बाद वह व्यक्ति अन्न त्याग करता है और मृत्यु का सामना करता है.

जैन धर्म को मानने वाले न्यायमूर्ति टीके तुकोल की लिखी किताब ‘संलेखना इज़ नॉट सुसाइड’ में कहा गया है कि संथारा का उद्देश्य आत्मशुद्धि है. इसमें संकल्प लिया जाता है. कर्म के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष मिलना मनुष्य जन्म का उद्देश्य होता है. इस उद्देश्य में संथारा से मदद मिलती है.

दूसरी शताब्दी में आचार्य समंतभद्र के लिखे हुए ‘रत्नकरंड श्रावकाचार’ ग्रंथ में संथारा का उल्लेख पाया जाता है. श्रावक या साधक का व्यवहार कैसा होना चाहिए उसके बारे में इस ग्रंथ में बताया गया है. इसे जैन धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ माना जाता है.

इसमें कहा गया है कि मुश्किल हालातों में, सूखा पड़ने पर, बुढ़ापे में या लंबी बीमारी में कोई व्यक्ति संथारा ले सकता है.

जो व्यक्ति इसका संकल्प लेता है उसे साफ़ मन से और बुरी भावना छोड़कर, सबकी ग़लतियां माफ़ करनी चाहिए और अपनी ग़लतियां माननी चाहिए.

धर्म के मुताबिक़, धर्मगुरु ही किसी व्यक्ति को संथारा की इजाज़त दे सकते हैं. उनकी इजाज़त के बाद वो व्यक्ति अन्न त्याग करता है. उस व्यक्ति के आसपास धर्मग्रंथ का पाठ किया जाता है और प्रवचन होता है.

उस व्यक्ति को मिलने के लिए कई लोग आते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं. जिसने संथारा लिया है, उस व्यक्ति की मृत्यु को समाधि मृत्यु कहा जाता है.

उनके पार्थिव शरीर को पद्मासन में बैठाया जाता है और जुलूस निकाला जाता है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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